वॉशिंगटन। एक अमेरिकी अध्ययन के मुताबिक दुनियाभर में वायु प्रदूषण से जो भी मौते होती हैं उनमें से आधी मौतें सिर्फ भारत और चीन में होती है। अमेरिका स्थित हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टिट्यूट की स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर स्टडी मंगलवार की जारी की गई जिसमें यह भी पाया गया कि बढ़ते वायु प्रदूषण के साथ उम्रदराज आबादी की वजह से भारत और चीन खराब वायु के मामले में एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी बन गए हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक, चीन में पीएम2.5 प्रदूषण का स्तर अब स्थिर होना शुरू हो गया है और लोगों का इससे संपर्क भी घट रहा है लेकिन भारत में भारी बढ़ोतरी देखी जा रही है। हालांकि, प्रति लाख पर मृत्यु दर दोनों देशों में घट रही है।
साल 1990 में चीन में प्रदूषण के कारण प्रति एक लाख लोगों पर 146 मौतें हुई थीं। यह घटकर साल 2016 में 80 हो गई है। दूसरी तरफ, भारत में साल 1990 से 2010 के बीच मृत्यु दर लगातार गिरकर 150 से 123 हुई। लेकिन यह दर साल 2010 से 2016 के बीच 6 सालों में बढ़ी।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत और चीन जल्द ही घर के बाहर के वायु प्रदूषण और घर के वायु प्रदूषण की वजह से दोहरा बोझ झेल सकते हैं। साल 2016 में 2.45 अरब लोग (वैश्विक आबादी का 33.7 प्रतिशत हिस्सा) घर के अंदर के प्रदूषण के संपर्क में थे।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत और चीन की क्रमश: 43 प्रतिशत और 30 प्रतिशत आबादी खाना बनाने के लिए मिट्टी का तेल, कोयला आदि जैसे ठोस ईंधन का इस्तेमाल करता है जिसकी वजह से अधिकांश लोग घरों में भी वायु प्रदूषण के संपर्क में आते हैं। साल 2016 में भारत में यह संख्या 56 करोड़ और चीन में 41.6 करोड़ थी।
रिपोर्ट में यह भी माना गया है कि भारत सरकार ने वायु गुणवत्ता सुधारने के लिए ऐक्शन लेने शुरू कर दिए हैं लेकिन यह भी कहा गया है कि भारत को कड़े कदम उठाने होंगे ताकि प्रदूषण कम हो सके। रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया की 7 अरब यानी 95 प्रतिशत से ज्यादा आबादी खराब वायु वाले इलाकों में रहती है।