प्रो. सत्येन्द्र कुमार सिंह, एडिटर-आई.सी.एन.
आज़ादी के इतने वर्ष बाद अगर हम भारत बंद की बात कर रहे हैं तो मुद्दा तो ज़रूर गम्भीर ही होगा| कोई २ अप्रैल को तो कोई १० अप्रैल को भारत बंद करवा रहा है| वैसे अब पता चला कि बंद भी दो प्रकार के होते हैं- एक २ अप्रैल वाला और एक १० अप्रैल वाला|
बंद का आह्वाहन भी उस फैसले के पक्ष और विपक्ष में जो माननीय उच्चतम न्यायालय ने दिया है| तो अब न्यायालय के फैसले पर सवाल उठाने का तरीका हिंसात्मक होगा| वाह! बढ़िया है| किसी की जान जाए तो मुझे क्या, उसे क्या? देश की अर्थव्यवस्था की अर्थी उठे तो उसे क्या और मुझे क्या?
वैसे दीगर बात यह है कि १९ मई २००७ को तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती को जब यह पता चला कि एससी-एसटी एक्ट के झूठे मुक़दमों में हज़ारों लोग जेल में है तो उन्होंने अगले ही दिन इस पर नये आदेश जारी करवा दिए तथा जिलों के एसपी से कहा गया कि एससी-एसटी एक्ट में झूठे मुक़दमे न लिखे जाएं| सामान्य अपराध के मुक़दमों को दलित एक्ट में न लिखने का आदेश हुआ|
तो मसला तो पूरा राजनैतिक ही लगता है| खैर, एक छोटा सा मानवीय एवं सामाजिक सवाल, अगर देश के अमीर लोग गरीबों की परवाह करें और उनका उत्थान करें तो क्या यह भेद भाव खत्म नही हो जायेगा? पर अगर ऐसा हो तब ना!
भेदभाव का आलम यह कि अब जाति सूचक शब्द गाली बन गई है और लोग धर्म परिवर्तन कर रहे हैं| किन्तु क्या धर्म परिवर्तन के बाद भी आरक्षण के लाभ का त्याग भी हो रहा है? क्रीमी लेयर को आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए या नहीं, यह एक अलग सवाल है किन्तु क्या ही बेहतर होता कि यह क्रीमी लेयर स्वयं ही इसका लाभ लेने से मना कर देती|
किन्तु, इन सब बातों से हमें और आपको उतना सरोकार नहीं है जितना मीडिया को टी.आर.पी. बढाने का है| जिस पुरानी बातों को मूल बना कर यह कार्य हो रहा है उसे निष्पक्ष हो कर देखा जाए तो रामायण का लेखक और महाभारत का लेखक कौन है? राम को नाव पार कराने वाला कौन था? शबरी कौन थी? राम को मानने वाले राम की नीतियों को क्यों भूल जाते हैं? भीम राव अम्बेडकर की आरक्षण नीति क्या थी?
क्या अब सामाजिक समरसता हमें स्वीकार्य नहीं? ये देश ना २ अप्रैल वालों का है और ना ही १० अप्रैल वालों का| यह देश उन पंथ निरपेक्ष लोगों का भी है जिनको इस बंद से फर्क पड़ता है| तो फैसले को सही से पढने का फैसला कीजिये| माननीय अदालत को माननीय ही रहने दीजिये| मेरे देश को मत बांटिये वरना मेरा भारत बिखर जायेगा|
सावधान, भारत बंद सामाजिक समरसता को खत्म कर रहा है|