उत्तर प्रदेश शासन के मंत्री तथा जलसे के मुख्य अतिथि मोहसिन रज़ा ने कहा कि सुहैल काकोरवी की इस पुस्तक का नाम “ग़ालिब :एक उत्तरकथा” ही यह बताता है कि यह पुस्तक लखनऊ की गंगा-जमुनी संस्कृति की प्रतीक है।
लखनऊ /8 अप्रैल,2018: आज लखनऊ नगर की लोकप्रिय साहित्यिक संस्था ‘अदबी संस्थान’ के तत्वाधान में हिन्दी, उर्दू, फारसी एवं अंग्रेजी में समान रूप से दखल रखने वाले प्रसिद्ध साहित्यकार एवं मशहूर शायर ‘सुहैल काकोरवी’ की नई पुस्तक का लोकार्पण उत्तर प्रदेश के मंत्री मोहसिन रज़ा के शुभ हाथों से सम्पन्न हुआ। लोकार्पित पुस्तक एक ही जिल्द में हिन्दी, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषा में है जिसका हिन्दी में नाम ‘ग़ालिब : एक उत्तर कथा’, उर्दू में ‘अर्ज़ियात-ए-ग़ालिब’ एवं अंग्रेजी में ‘Remnants of Ghalib’ हैं। इस पुस्तक में सुहैल काकोरवी ने महान् शायर ग़ालिब की सौ ग़ज़लों की ज़मीन, बह्र, रदीफ और काफियों को अपनी सौ ग़ज़लों में प्रयोग किया है।
कार्यक्रम के प्रारंभ में अदबी संस्थान के अध्यक्ष तरुण प्रकाश ने बताया कि अदबी संस्थान की स्थापना लगभग तीन दशक पूर्व अदबी मंच के नाम से हिन्दी एवं उर्दू साहित्य को एक साथ मंच देने की दृष्टि से किया गया तथा वर्ष 2012 में इस संस्था का पुनर्गठन ‘अदबी संस्थान’ के रूप में किया गया। सुहैल काकोरवी के विषय में बताया कि वे अदबी संस्थान के महासचिव हैं तथा विगत वर्षों में उन्होंने अनेक पुस्तकों के साथ ‘आमनामा’ एवं ‘नीला चाँद’ जैसी महत्वपूर्ण पुस्तकें साहित्य को दीं। आमनामा विश्व की पहली पुस्तक है जो किसी एक ही फल पर पद्य में लिखी गयी है तथा उक्त पुस्तक को लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में शामिल किया गया है।नीला चाँद भी उनकी एक विशिष्ट पुस्तक है जिसमे छह सौ से अधिक शेर हैं और प्रत्येक शेर में दो या दो से अधिक मुहावरों का प्रयोग किया गया है।
डॉ सुरेन्द्र विक्रम (हिन्दी विभागाध्यक्ष, लखनऊ क्रिश्चियन कालेज एवं वरिष्ठ साहित्यकार) ने कहा कि सुहैल काकोरवी की यह पुस्तक साहित्य में एक नया आविष्कार है और यह पुस्तक ग़ालिब के साहित्य को वहाँ से फिर एक नई यात्रा प्रदान करती है जहाँ से ग़ालिब ने उसे छोड़ा था और इसलिये सुहैल काकोरवी के इस करिश्मे का नाम ‘ग़ालिब : एक उत्तरकथा’ से अधिक उपयुक्त कोई और नहीं हो सकता। प्रोफेसर रमेश दीक्षित ने कहा कि ग़ालिब केवल भारत के शायर ही नहीं थे बल्कि वे पूरी एशियाई सभ्यता एवं संस्कृति के प्रतिनिधि थे और ऐसे शायर के काम को सुहैल काकोरवी जी द्वारा और आगे ले जाने का कार्य हर दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
प्रसिद्ध पत्रकार संतोष वालमीकि ने कहा कि ग़ालिब और सुहैल काकोरवी के व्यक्तित्व के बीच अनेक समानतायें भी हैं। तत्पश्चात अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के प्रोफेसर शाफे किदवई ने कहा कि उर्दू में पैरोडी का चलन कोई नया नहीं है लेकिन अब तक यह वैयक्तिक तौर से इक्का-दुक्का रूप से होता रहा है लेकिन सुहैल काकोरवी ने ग़ालिब की सौ ग़ज़लों का रूपांतर कर एक नया कारनामा अंजाम दिया है।शायर सुहैल काकोरवी ने बताया कि अभी उनका काम समाप्त नहीं हुआ है और वे अभी ग़ालिब की कुछ और शेष रह गयी ग़ज़लों पर कार्य कर रहे हैं।
लोकार्पण कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार प्रोफेसर शारिब रुदौलवी ने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि ग़ालिब उर्दू के एकमात्र शायर हैं जिनकी ज़मीनों पर शेर कहना सबसे मुश्किल रहा है और सुहैल काकोरवी ने यह मुश्किल काम भी बड़ी खूबसूरती से कर दिखाया। उन्होंने यह भी कहा कि सुहैल जी की सारी की सारी ग़ज़लें सिर्फ़ ग़ालिब की ज़मीन पर ही नहीं लिखी गई हैं बल्कि ये अपने आप में मुकम्मल ग़ज़लें भी हैं और सारी ग़ज़लों में सुहैल काकोरवी की अपनी मौजूदगी साफ दिखाई देती है। उत्तर प्रदेश शासन के मंत्री तथा जलसे के मुख्य अतिथि श्री मोहसिन रज़ा ने कहा कि सुहैल काकोरवी की इस पुस्तक का नाम “ग़ालिब :एक उत्तरकथा” ही यह बताता है कि यह पुस्तक लखनऊ की गंगा-जमुनी संस्कृति की प्रतीक है।
मशहूर शायर हसन काज़मी साहब ने कार्यक्रम का संचालन न केवल बड़ी खूबसूरती से किया बल्कि सुहैल काकोरवी की दो ग़ज़लों को तरन्नुम के साथ प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम में वरिष्ठ शायर अनीस अंसारी , उर्दू अकादमी की चेयर परसन आसिफा ज़मानी, प्रसिद्ध रंगकर्मी नवाब ज़ाफर मीर अब्दुल्लाह, मशहूर उस्ताद शायर संजय ‘शौक’, शायर अशर अलिग, आई०सी०एन० के एडीटर प्रोफेसर सत्येन्द्र कुमार सिंह, प्रतिष्ठा फिल्म्स एण्ड मीडिया के निदेशक अमरेश कुमार सिंह, वरिष्ठ फिल्मकार व मशहूर व्यंग्य रचनाकार अखिल आनंद, कपिल श्रीवास्तव, वरिष्ठ शायर राजीव प्रकाश ‘सहर’, अब्दुल वली अंसारी, रिज़वान हैदर व अरुण दबंग व लखनऊ के साहित्यिक समाज के अनेकों नामी गिरामी शोरा ने शिरकत की। कार्यक्रम के अंत में अदबी संस्थान की ओर से अनवर हबीब अलवी ने सारे मेहमानों के प्रति धन्यवाद ज्ञापन किया।