जेपी सिंह, असिस्टेंट एडिटर ICN ग्रुप
लखनऊ। आधुनिकता और उत्तर आधुनिकता के समय में भारतीय शिक्षा व्यवस्था पुरानी सोच पर आधारित है। गाँव में प्राथमिक विद्यालय उच्च प्राथमिक विद्यालय अपने पुराने ढर्रे पर है। एक एक प्राथमिक विद्यालय पर सरकार का 3 लाख से 4 लाख प्रतिमाह वेतन पर खर्च होता है लेकिन ग्रामीण प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था का हाल बहुत बुरा है।
उच्च प्राथमिक विद्यालयों में भी हकीकत ठीक वैसी ही जैसे प्राथमिक विद्यालय है। इन विद्यालयों में गाँव के गरीब मजदूर और मजबूर लोगों के बच्चे पढ़ते हैं, इनके भविष्य के प्रति खिलवाड़ क्यों इसके लिए जवाबदेही किसकी है? राज्य सरकार इन विद्यालयों एवं केंद्रीय शिक्षा व्यवस्था के मानक पर कब खड़ा करेगी? इनके छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ क्यों हो रहा है?
प्राथमिक शिक्षा और उच्च प्राथमिक शिक्षा कब सुधरेगी? इसके लिए जवाबदेही किसकी है? केंद्र सरकार और राज्य सरकार, गाँवों की शिक्षा व्यवस्था की तरफ ध्यान दे तभी बढ़ेगा उ0प्र0| बेसिक शिक्षा मंत्री, मुख्यमंत्री और प्रमुख सचिव बेसिक शिक्षा, अपनी जबाब देही सुनिश्चित करें कि ग्रामीण प्राथमिक और उच्च प्राथमिक शिक्षा को केंद्र सरकार की प्राथमिक और उच्च प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था के समान खड़ा करने में कितना समय लगेगा? जबाबदेही हर मंत्री और प्रमुख सचिव की सुनिश्चित हो कि उ0प्र0 की बदहाल प्राथमिक और उच्च प्राथमिक शिक्षा कब सुधरेगी?
गाँवों की शिक्षा व्यवस्था को बदहाली पर छोड़ने वालों के खिलाफ शासन प्रशासन कब कार्यवाही करेगा? शिक्षक एवं छात्र उपस्थिति के लिए बायोमीट्रक उपस्थिति की मशीन कब लगायी जायगी? यह सब प्रश्न विचारणीय है, सोचनीय है| बेसिक शिक्षा विभाग की कछुआ चाल ग्रामीण शिक्षा व्यवस्था की बदहाली के लिए जिम्मेदार है। जबाबदेही सुनिश्चित करने के साथ-साथ विभाग को लापरवाह शिक्षा व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए बहुत जल्द कदम उठाने होंगे और सख़्त कार्यवाही के लिए निर्देश देने होंगे ।