आलोक सिंह, न्यूज़ एडिटर, आई.सी.एन. ग्रुप
मेरे मोहल्ले का अजीब सा हाल हुआ
जब दरवाज़े पर खड़े नीम का क़त्ल हुआ
मायूस बैठा है तबसे नीम का तोता देखो तो
उसे फिर वही हरियाली छाँव दे दो…
सूखी सड़के, बन्द दरवाज़े और ग़ुम उल्लास
और न तपती धूप में ठंडक का अहसास
जलते हैं ये पाँव मेरे बाहर उनसे ज़रा कह दो
उसे फिर वही हरियाली छाँव दे दो…
अब न दादी के किस्से हैं और न कहानियां
पसरा सन्नाटा है और खामोश किलकारियां
बड़ी मनहूसियत है गली में उनके बगैर कह दो
उन्हें फिर वही हरियाली छाँव दे दो…
घरों में दुबकी बैठीं हैं बेटियाँ हमारी
सावन के झूलों की थी उनकी तैयारी
नीम की लचकती वो डाल उन्हें फिर दे दो
इन्हें फिर वही हरियाली छाँव दे दो…
अब तो गली के पौधे भी मुरझाये से रहते हैं
सूखते चंद फूल भी कसमसाये से रहते हैं
कहते हैं दरमियाँ कुछ पौधे फिर से बो दो
उन्हें फिर वही हरियाली छाँव दे दो…