लखनऊ। उत्तर प्रदेश में राज्यसभा की दस सी़टों पर हुए चुनाव में बीएसपी के उम्मीदवार भीमराव आंबेडकर की हार के बावजूद समाजवादी पार्टी और मायावती के बीच हुए गठबंधन पर कोई खतरा नहीं दिख रहा है। एक ओर जहां बीएसपी ने इस हार के बाद भी अखिलेश यादव के चुनावी मैनेजमेंट की सराहना की है, वहीं पार्टी के जश्न को स्थगित कर अखिलेश ने गठबंधन के धर्म को लेकर बीएसपी के शीर्ष नेतृत्व को एक खास संदेश पहुंचाने का प्रयास किया है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि प्रदेश के चुनावी हालात को देखते हुए फिलहाल मायावती और अखिलेश के बीच कोई भी मतभेद होता नहीं दिख रहा है।
दरअसल, शुक्रवार को हुए राज्यसभा चुनाव में बीएसपी प्रत्याशी भीमराव आंबेडकर की हार के बाद से ही बीएसपी और एसपी का गठबंधन टूटने के कयास जताए जा रहे थे। इस स्थिति को भांपते हुए अखिलेश ने भी अपनी प्रत्याशी जया बच्चन की जीत पर पार्टी कार्यालय में होने वाले जश्न को स्थगित कर दिया।
वहीं चुनाव के परिणाम घोषित होने के बाद बीएसपी की ओर से पार्टी महासचिव सतीश चंद्र मिश्र ने भी अखिलेश की निष्ठा पर विश्वास करते हुए कहा कि एसपी अध्यक्ष ने चुनाव में बीएसपी की मदद के लिए अपना सर्वाधिक प्रयास किया। दोनों पक्षों के इस निष्ठापूर्ण व्यवहार के बाद अब यह माना जा रहा है कि मायावती और अखिलेश लोकसभा चुनाव से पूर्व गठबंधन को किसी भी स्थिति में तोडऩा नहीं चाहते हैं। साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि दोनों पार्टियां आने वाले लोकसभा चुनाव में यूपी की तमाम सीटों पर संयुक्त रूप से अपने उम्मीदवार उतार सकती हैं।
गठबंधन के लिए 2019 और 2022 के चुनाव लक्ष्य
माना जा रहा है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में एसपी और बीएसपी प्रदेश की आधी आधी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार सकती है, लेकिन सीटों का बंटवारा कैसे होगा यह दोनों ही पार्टियों के लिए एक बड़ी चुनौती होगी। इसके अलावा अगर 2019 के लोकसभा चुनावों का गठबंधन 2022 के विधानसभा चुनाव तक कायम रहता है तो यह देखना दिलचस्प होगा कि अपनी अपनी पार्टी के शिखर में बैठे दोनों नेताओं में से कौन सीएम पद पर अपना दावा छोड़ता है?
माया को केंद्र और अखिलेश को प्रदेश की कमान
दोनों दलों से जुड़े नेताओं का कहना है कि एसपी के नेता मायावती को केंद्र की राजनीति का हिस्सा बनाना चाहते हैं और गठबंधन की स्थिति में अखिलेश को स्टेट लेवल पॉलिटिक्स में रखने का निर्णय हो सकता है। इसके लिए मायावती को लोकसभा के चुनाव में ज्यादा सीटें भी दी जा सकती है।
सूत्रों के मुताबिक समाजवादी पार्टी के नेता बीएसपी को लोकसभा के चुनाव में गठबंधन की 55 फीसदी सीटों पर चुनाव लडऩे देने और खुद 45 फीसदी सीट पर चुनाव लडऩे की स्थिति पर राजी हैं। हालांकि शर्त यह है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में एसपी को 55 फीसदी विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने का मौका दिया जाए। फार्म्यूले की यह गणित नेता प्रतिपक्ष राम गोविन्द चौधरी के उस बयान से भी पुष्ट होती है जिसमें उन्होंने पिछले दिनों यह कहा था, हम चाहते हैं कि बहन जी केंद्र में पीएम बनें और अखिलेश जी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनकर राज्य की सेवा करें।
एसपी के प्रस्ताव पर राजी हो सकती हैं मायावती!
एसपी के इस प्रस्ताव पर मायावती के राजी होने की पूरी संभावनाएं भी जताई जा रही हैं। दरअसल, अब तक हुए लोकसभा चुनाव में एसपी मुलायम सिंह यादव को पीएम बनाने की मांग के साथ विपक्ष के गठबंधन का हिस्सा बनती रही है। चूंकि अब मुलायम हाशिये पर हैं ऐसे में यह अखिलेश के भी हालिया वक्त में पीएम उम्मीदवार होने को लेकर कोई भी स्थिति बनती नहीं दिख रही है। इसके अलावा बीएसपी को अब भी राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा प्राप्त है और जनसंख्या में दलित वोटों के लिहाज से अब भी पार्टी के वजूद को नकारा नहीं जा सकता है। ऐसे में यह माना जा रहा है कि अगर प्रदेश की 50 से अधिक सीटों पर एसपी-बीएसपी के गठबंधन को जीत मिलती है, तो आने वाले वक्त में विधानसभा चुनाव के दौरान एसपी को गठबंधन में ज्यादा सीट देकर प्रदेश में और मजबूती दी जा सकती है।