पानी

आलोक सिंह ( न्यूज़ एडिटर-आई.सी.एन. ग्रुप ) 

आज के समाज की दुखद है कहानी

न बाहर और न आँख में बचा है पानी

चाँद पर पानी का पता लगा इतराते हैं

और घर के खोते पानी का होश नही

न मालूम कौन सा शैतान सवार है हम पर

कालीदास सा कुल्हाडी लिए काट रहे हैं

निसहाय पड़े हैं दरख्त बुझाते लालच की प्यास

और नदियाँ ताकती हैं आसमाँ लिए प्यासी आँख

सूखे कुँए और तरसते पोखर मायूस हैं अब तो

सबके हक़ के पानी पर रूपयों की जिल्द देख

आज के समाज की बस यही है कहानी

न बाहर और न आँख में बचा है पानी।।

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One Thought to “पानी”

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