शिशु की देखभाल सर्दी के मौसम में

डॉ. नौशीन अली ( ब्यूरो चीफ ICN-मध्य प्रदेश )
भोपाल। सर्दी का मौसम है, सभी लोग अपना ध्यान रखते है, पर मौसम के बदलाव के साथ ही बीमारिया भी पनपने लगती है, ऐसे में घर में मौजूद एक नन्हे बच्चे को देखभाल की बहुत ज़रुरत है, क्युकी शिशु  जल्दी बीमार पड़ जाते है, एहतियात बहुत ज़रूरी है, नवजात की देखभाल बेहद आवश्यक है क्योंकि यह मां और बच्चे दोनों के स्वास्थ्य के विकास का समय होता है, जन्म से लेकर जब तक वो किशोर नहीं हो जाता, बहुत से टीके भी लगवाना ज़रूरी है ताकि वो बीमारी से बचा रहे।
जन्म के तुरन्त बाद  जन्म के बाद बच्चे की श्वसन क्रिया व्यवस्थित व चालू होनी चाहिए। तत्पश्चात् उसे कुनकुने स्वच्छ पानी और मुलायम तौलिए से साफ करके,साफ-सूती कपड़े में लपेटकर नरम बिछौने पर सुलाएं। उसकी दोनों आंखों को अलग-अलग फाहों से साफ करें। इसी प्रकार बच्चे के दोनों कान, नाक, मुंह, फाहों से साफ करने चाहिए। इसके बाद उसका वजन नोट कर लें। एक बात नहीं भूलनी चाहिए कि इतनी प्राथमिक सुश्रुषा करने के बाद उसे माता के पास ही सुलाना चाहिए।
त्वचा की देखभाल रू यदि शिशु समय से पहले जन्मा हो, तब तो उसकी त्वचा की अत्यधिक देखभाल रखनी पड़ती है। ऐसे बच्चे को मुलायम कपड़े और स्वच्छ रूई की तह में लपेटकर रखा जाता है। यदि उसकी त्वचा खुश्क मालूम हो, तो उसके शरीर पर तेल से हलके हाथों मालिश करें।
आंखों की देखभाल  बच्चे की दोनों आंखों को उबाले हुए कुनकुने स्वच्छ पानी से रूई से अलग-अलग फाहों से प्रतिदिन साफ करें। यदि आंखें चिपचिपाती मालूम हों या उनमें कीचड़ दिखाई दें, तो उबालकर स्वच्छ किए हुए पानी से मुंह-कान की देखभाल  किसी-किसी बच्चे के लिए सिर पर तालू के भाग में रूसी जैसी पपड़ियां जमी हुई दिखाई देती हैं। इससे घबराने की आवश्यकता नहीं है। समय बीतने के साथ वे खुद-ब-खुद ही अदृश्य हो जाती है। आवश्यकतानुसार उस पर अरण्डी का तेल हलके हाथों रगड़ें। बच्चे के कान में यदा-कदा रूई वाली सलाई हलके हाथों घुमाएं, ताकि कान में मैल न जमने पाए।
नाभि- की देखभाल  प्रारम्भ में हरकुछ घंटे पर नवजात शिशु की नाल की जांच करना आवश्यक है। यदि उसमें से रक्त निकलता हुआ मालूम हो, तो उसे पुनरू डोरी से बांधा जा सकता है। फिर भी यदि रक्त का बहना जारी रहे, तो बाल रोग विशेषज्ञ की सलाह लें। सामान्यतरू स्पिरिट या कीटाणुनाशक दवा (डेटॉल या सेवलोन) के फाहे से नाल साफ करके ‘सेओरलिन डस्टिंग पाउडर’ या साधारण कैलेण्डुला अथवा गनपाउडर लगाकर स्वच्छ कपड़े की पट्टी बांध दें। ऐसा करने से पांच-दस दिनों में नाल सूखकर झड़ जाती है। नाल झड़ जाने के बाद यदि वह स्थान बहुत खुश्क और खुरदुरा मालूम हो तथा त्वचा खिंचती हो, तो उस स्थान पर ‘कैलेण्डुला’ मलहम लगाया जा सकता है।
शुरू के छ महीने तो माता का दूध ही शिशु बहुत सी बीमारियों से बचता एंटीबाडीज होती है  माँ के दूध में  छ; महीनो के बाद कुछ खाना दे सकते है शुरू के छ महीने तो माता का दूध ही शिशु बहुत सी बीमारियों से बचता एंटीबाडीज होती है  माँ के दूध में छ; महीनो के बाद कुछ खाना दे सकते है।
टीके लगवाना  सामान्यत जिन बच्चों का जन्म अस्पताल या प्रसूतिगृह में हुआ हो, उन्हें तो छुट्टी देने से पहले अस्पताल के डाक्टर आवश्यक टीके लगाते ही हैं। उस समय बी.सी.जी. (क्षय रोग) का टीका लगाया जाता है। तीसरे महीने से डी.पी.टी. और पोलियो के टीकों की पहली खुराक देकर इन टीकों का कोर्स शुरू किया जाता।
6 महीने के बाद बच्चे का आहार  बच्चों का खाना 
आलू का दलिया
विधि .आलू को पानी में उबाल लें। अब चावल के आटे को भूनकर आलू के साथ पकाएं। फिर गुड़ तथा केला मिलाकर कुछ देर और पकाएं।
गेहूं की खीर
विधि .सूजी और मूंग की दाल को अलग-अलग तत्पश्चात् दोनों को मिलाकर पकाएं। जब वे आधे पक जाएं, तो उसमें गुड़ मिलाकर खूब हिलाएं।
गाजर का हलवा
विधि .गाजर को किसी कद्दूकस में कसकर पानी में उबालकर घोटें। तत्पश्चात् चने की दाल और भुनी मूंगफली के आटे में गुड़ की चाशनी डालें। अब इसमें थोड़ा-सा पानी मिलाकर अच्छी तरह पकाएं। फिर गाजर मिलाकर कुछ देर पकाकर आंच से अलग रख दें।
ज्वार का मीठा दलिया
विधि .ज्वार के आटे को भूनकर अलग रख दें। अब गुड़ को पानी में भिगोकर पिसी हुई मूंगफली मिलाएं। फिर सभी सामग्री मिलाकर आंच पर रख दें। जब वह उबलने लगे, तो आटे को धीरे-धीरे मिलाएं और बराबर हिलाती रहें।

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