प्राचीन बौद्ध प्रतिमा का अनावरण कर पाक ने याद की अपनी सैकड़ों साल पुरानी विरासत

बौद्ध प्रतिमा

नई दिल्ली । अभी कल तक अपनी धरती के इतिहास की शुरुआत 1947 या फिर सिंध में मोहम्मद बिन कासिम के हमले से होने को प्रचारित करने वाले पाकिस्तान को यकायक अपनी सैकड़ों साल पुरानी विरासत याद आने लगी है। इसी क्रम में बीते बुधवार को पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के हरिपुर में 1700 साल पुरानी 48 फीट की बुद्ध की प्रतिमा का सार्वजनिक प्रदर्शन पर्यटन को बढ़ावा देने और साथ ही धार्मिक सहिष्णुता को रेखांकित करने के इरादे से किया गया। इस दौरान प्रतिमा के उत्खनन स्थल-भामला को पाकिस्तान की विरासत का हिस्सा बताया गया। इस स्थल का दौरा करते हुए तहरीके इंसाफ पार्टी के प्रमुख और जाने-माने क्रिकेटर इमरान खान ने कहा कि यह विश्व विरासत स्थल है और हमें उम्मीद है कि लोग यहां धार्मिक पर्यटन के लिए भी आएंगे।

बौद्ध प्रतिमा

भामला आर्कियोलाजी एंड म्यूजियम डिपार्टमेंट के प्रमुख अब्दुल समद के मुताबिक यह क्षेत्र हमारी विरासत का हिस्सा है। खैबर पख्तूनवा में बुद्ध प्रतिमा के अनावरण और उसके सार्वजनिक प्रदर्शन की पहल को पाकिस्तान की राजनीति और सोच में एक अहम बदलाव के तौर पर देखा जा रहा है, क्योंकि अभी तक पाकिस्तान के तमाम नेता, इतिहासकार, विद्वान और मौलाना आदि इस पर जोर देते रहे हैं कि उनके मुल्क का उस दौर से कोई लेना-देना नहीं जब उनकी धरती पर हिंदू और बौद्ध सभ्यता फल-फूली। वे अपने इस अतीत को खारिज करने के लिए यहां तक कहते थे कि पाकिस्तान के बनने की प्रक्रिया तो उस समय से शुरु हुई जब मोहम्मद बिन कासिम ने सिंध पर हमला किया था। पाकिस्तान में हिंदू और बौद्ध सभ्यता के प्रतीकों जैसे मठ-मंदिरों, बुद्ध प्रतिमाओं और बौद्ध स्तूपों के प्रति नफरत का ही यह नतीजा रहा कि वे खंडहर में तब्दील हो गए हैं। पाकिस्तान में सैकड़ों मठ- मंदिर ऐसे हैं जो धर्मशाला, दुकानों में तब्दील हो चुके हैं। यह सिलसिला अभी भी कायम हैं।

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