गोरखपुर महोत्सव में एक बार फिर गूंजेंगे सुर, सजेगी शायरों की महफ़िल

तीन दिवसीय इस आयोजन के लिए 11, 12 और 13 जनवरी की तारीख तय की गई है। जिला प्रशासन ने स्थानीय स्तर पर इस आयोजन की जिम्मेदारी पर्यटन विभाग को सौंपी है।
गोरखपुर। एक बार फिर देश के नामचीन गायकों के सुर गूंजेंगे, कवि व शायरों की महफिल सजेगी, हास्य कलाकार गुदगुदा कर ठहाके लगाने को मजबूर करेंगे। दरअसल डेढ़ वर्ष से अधिक के अंतराल के बाद गोरखपुर में एक बार फिर गोरखपुर महोत्सव का आयोजन होने जा रहा है। प्रदेश के पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय के निर्देश पर संभावित तिथि तय करके जिला प्रशासन ने इसे लेकर तैयारी भी शुरू कर दी है।
तीन दिवसीय इस आयोजन के लिए 11, 12 और 13 जनवरी की तारीख तय की गई है। जिला प्रशासन ने स्थानीय स्तर पर इस आयोजन की जिम्मेदारी पर्यटन विभाग को सौंपी है। विभाग ने भी कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार करनी शुरू कर दी है। आयोजन स्थल का निर्णय नहीं हो सका है, लेकिन जिला प्रशासन की पूरी कोशिश है कि महोत्सव वहीं आयोजित किया जाए, जहां जनता की पहुंच आसान हो। कार्यक्रम के स्वरूप और कलाकारों के चयन को लेकर भी मंथन शुरू हो गया है।
कार्यक्रम में राष्ट्रीय कलाकारों के साथ- साथ स्थानीय कलाकारों को भी मंच दिए जाने पर विचार किया जा रहा है। इसे लेकर प्रशासनिक बैठकें आयोजित होने लगी हैं, हालांकि निकाय चुनाव को लेकर जारी आचार संहिता के चलते इसकी आधिकारिक पुष्टि जिला प्रशासन द्वारा नहीं की जा रही है। यह भी उम्मीद की जा रही है कि आयोजन के दौरान सभी तीन दिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ शहर में मौजूद रहेंगे और प्रतिदिन के कार्यक्रम में बतौर अभिभावक उनकी मौजूदगी रहेगी।
शायद ही कोई होगा, जिसके जेहन में करीब डेढ़ वर्ष पहले गोरखपुर विश्वविद्यालय परिसर में आयोजित गोरखपुर महोत्सव-2016 की यादें ताजा नहीं होंगी। 29 जनवरी से एक फरवरी तक चलने वाले इस चार दिवसीय आयोजन ने शहर के माहौल को सांस्कृतिक बना दिया था। अनूप जलोटा के भजनों ने आध्यात्म की धारा बहाई थी तो कल्पना के भोजपुरी गीतों ने लोक परंपराओं की मजबूती का बोध कराया था। अहसान कुरैशी, वीआइपी और सुरेश अलबेला के चुटकुले आज भी गुदगुदा कर मुस्कुराने के लिए मजबूर कर देते हैं।
कवि सम्मेलन और मुशायरा में निंदा फाजली, वसीम बरेलवी, अशोक चक्रधर, अनवर जलालपुरी जैसे मशहूर शायरों और कवियों की मौजूदगी ने शहर की साहित्यिक इतिहास को समृद्ध कर दिया था। अंतिम दिन वालीवुड नाइट में सुनीधि चौहान और जावेद अली के सुरेले नगमों ने शहर को लोगों को खूब झुमाया था। स्थानीय कलाकारों को मंच देकर इस महोत्सव ने अपनी स्थानीय सांस्कृतिक जिम्मेदारी भी बखूबी निभाई थी। इसे लेकर तत्कालीन कमिश्नर पी गुरुप्रसाद की प्रतिबद्धता भी लोगों को खूब याद है।

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