ज़िन्दगी की जंग में जूझता मुक्केबाज़।

प्रिंस विशाल दीक्षित ( खेल संवाददाता-ICN ग्रुप )

जिंदगी और मौत की लडाई लड़ रहे हैं दिंको सिंह, सरकार नहीं कर रही सहायता |

लखनऊ।  शायद उसने पैसा नहीं कमाया शायद वो शोहरत के पीछे नहीं भागा एक समय में भारतीय मुक्केबाजी का नायक था वो आज ज़िन्दगी के प्रहारों के आगे बेबस है और इस लड़ाई में सिर्फ अपनो ने ही नहीं बल्कि सरकार ने भी हाथ खींच लिए।

आज बेबसी में मौत की राह देखता मुक्केबाज कोई और नहीं बल्कि एशियाई खेलों में भारत का परचम लहराने वाला मुक्केबाज दिंको सिंह है दिंको को देखकर मैरीकॉम जैसे दिग्गज खिलाडियों को बॉक्सिंग के लिए प्रेरणा मिली और मुक्केबाजी में पदार्पण किया।

1 जनवरी 1979 को इम्फाल के सकता में जन्मे दिंको सिंह 1998 के एशियन खेलों में भारत के लिए स्वर्ण पदक पाने वाले एकमात्र मुक्केबाज थे यही नहीं इससे पहले भी ये किंग्स कप में भी भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए चैंपियन बने थे।

इसके बाद लगातार वे राष्ट्रीय खेलों में अपना प्रदर्शन जारी रखा और भारतीय जल सेना को अपने प्रदर्शन से गौरवान्वित किया इसी दौरान उन्हें कई मौके प्रोफेशनल बॉक्सिंग खेलने को मिले परंतु उन्होंने नकार दिए और देश के लिए खेलना पसंद किया वे वर्ष 2013 में पद्मश्री से भी नवाजे गए।

आज ये मुक्केबाज जिंदगी से अकेला लड़ रहा न तो भारत सरकार ने कोई सुध ली न भारत के लोगों ने ,कहते है कि अगर खिलाड़ी मैदान पर खेलता है तो सिर्फ वह ही नही खेलता बल्कि पूरा देश और देश के लोगों का सम्मान दाँव पर लगा होता है लोग उस खिलाड़ी से सपने जोड़ लेते है।

इस खिलाड़ी ने न सिर्फ सपनों को जीता बल्कि देश के युवाओं को खेल और मुक्केबाजी की ओर आकर्षित किया है परंतु आज ये मुक्केबाज कैंसर के खिलाफ जिंदगी की जंग हारता सा दिख रहा है। जिस देश का मान उसने अंतरराष्ट्रीय मंच पर बढ़ाया है आज उसी देश से मदद की उम्मीदें लगाए है, कैंसर की वजह उसका फेफड़े खराब हो गए है जिसके इलाज के लिए दिंको सिंह का घर तक बिक गया है। इसके बावजूद सरकार अपने हाथ सिकोड़ती नजर आ रही है अब ऐसे में आसरा अब अपनो से है वे अपने जिनके सम्मान को उसने अंतरराष्ट्रीय मंच पर बढ़ाया है ।

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