जीएसटी का लाभ ग्राहकों को न देने वाली कंपनियों पर होगी कार्यवाही

नई दिल्ली । वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के तहत मुनाफाखोरी रोधी अथॉरिटी के गठन पर केंद्रीय मंत्रिमंडल बुधवार को मुहर लगा सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल इस अथॉरिटी के लिए चेयरमैन और चार तकनीकी सदस्यों के पद को भी स्वीकृति दे सकता है। जीएसटी के तहत कई वस्तुओं पर पहले की तुलना में कर की दर कम हुई है। कई कारोबारी ऐसे भी हैं जो यह लाभ ग्राहकों तक नहीं दे रहे हैं। ऐसे मुनाफाखोरों पर नकेल कसने के लिए जीएसटी काउंसिल पांच सदस्यीय राष्ट्रीय मुनाफाखोरी रोधी अधिकरण के गठन को मंजूरी दे चुका है। इस अथॉरिटी का गठन चेयरमैन की नियुक्ति के बाद से दो वर्ष के लिए होगा। इसमें चेयरमैन और सदस्यों की उम्र अनिवार्य रूप से 62 वर्ष से कम रहेगी। चेयरमैन को सचिव स्तर के अधिकारी का दर्जा दिया जाएगा। उसे 2.25 लाख रुपये प्रति माह का वेतन और इसके अतिरिक्त अन्य भत्ते दिए जाएंगे। उसे वे सभी सुविधाएं मिलेंगी, जो इस रैंक के अधिकारी को मिलती हैं। यदि किसी सेवानिवृत्त अधिकारी को चेयरमैन बनाया गया तो उसको मिलने वाली पेंशन की राशि को 2.25 लाख रुपये की वेतन राशि में से कम कर दिया जाएगा। तकनीकी सदस्यों को प्रतिमाह 2.05 लाख रुपये का वेतन और साथ ही अन्य भत्ते दिए जाएंगे। उसकी रैंक अतिरिक्त सचिव स्तर के अधिकारी के बराबर रहेगी। राज्य या केंद्रीय कर विभाग के वर्तमान या पूर्व कमिश्नर और एक्साइज, कस्टम्स या वैट के तहत इसके समकक्ष पदों के पूर्व या वर्तमान अधिकारी इस नई अथॉरिटी में तकनीकी सदस्य बनने के योग्य होंगे। डायरेक्टरेट जनरल ऑफ सेफगार्डस (डीजीएस) के अतिरिक्त महानिदेशक इस अथॉरिटी के लिए सचिव की भूमिका निभाएंगे। जीएसटी व्यवस्था में तय संरचना के अनुसार, स्थानीय स्तर की शिकायतें सबसे पहले राज्य स्तर की स्क्रीनिंग कमेटी के पास जाएंगीं। वहीं राष्ट्रीय स्तर की शिकायतें स्टैंडिंग कमेटी के सुपुर्द होंगी। अगर शिकायतों में दम होगा तो संबंधित कमेटियां उस मामले को विस्तृत जांच के लिए डीजीएस के पास भेजेंगी। डीजीएस मामले की जांच में अमूमन तीन महीने का समय लेगा। इसके बाद रिपोर्ट मुनाफाखोरी रोधी अथॉरिटी को सौंपी जाएगी। अगर अथॉरिटी ने पाया कि कंपनी ने जीएसटी से मिलने वाला लाभ ग्राहकों को नहीं दिया है तो उसे वह लाभ 18 फीसद ब्याज और जुर्माने के साथ ग्राहकों को देने को कहा जाएगा। किसी स्थिति में यदि लाभार्थियों की पहचान संभव नहीं होगी तो कंपनी को वह राशि उपभोक्ता कल्याण कोष में जमा करानी होगी। इसके लिए समयसीमा निर्धारित की जाएगी। अथॉरिटी के पास किसी भी कंपनी का रजिस्ट्रेशन रद करने का अधिकार होगा। हालांकि नियमों के उल्लंघन के मामले में अथॉरिटी इसे आखिरी कदम के तौर पर इस्तेमाल करेगी।

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