यशवंत सिन्हा ने फिर साधा सरकार पर निशाना

नई दिल्ली। अर्थव्यवस्था में गिरावट को लेकर यशवंत सिन्हा के मोदी सरकार पर हमले जारी हैं। लेख में मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों की धज्जियां उड़ाने के एक दिन बाद गुरुवार को सिन्हा ने फिर सरकार पर हमला बोला। सिन्हा ने कहा कि पिछले डेढ़ साल से अर्थव्यस्था में लगातार गिरावट का दौर जारी है और इसके लिए पिछली सरकारों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। उन्होंने कहा कि 40 महीने सरकार में रहने के बाद हम पिछली सरकारों पर दोष नहीं डाल सकते। यशवंत सिन्हा ने कहा कि यूपीए के वक्त पॉलिसी पैरालिसिस था और उम्मीद थी कि मोदी सरकार के आने के बाद यह खत्म होगी। उन्होंने कहा कि हम कुछ आगे बढ़े लेकिन वह गति नहीं दिखी जो होनी चाहिए थी। अर्थव्यवस्था में गिरावट से बेरोजगारी भी बढ़ी है। बैंकों के फंसे कर्जों पर चिंता जताते हुए सिन्हा ने कहा कि बैंकों के 8 लाख करोड़ रुपये फंसे हुए हैं। एनपीए की वजह से बैंकों ने ऋण देना बंद कर दिया, जिससे प्राइवेट इन्वेस्टमेंट नहीं हो रहा। सिन्हा ने कहा, ‘एनपीए को काबू किये जाने की जरूरत है लेकिन अभी तक सरकार ने इस दिशा में कुछ खास नहीं किया है। 40 बड़ी कंपनियों के खिलाफ दिवालियापन की प्रक्रिया चल रही है। बैंकों की हालत में सुधार का इंतजार था जिसका अब भी इंतजार है। सिन्हा ने नोटबंदी और जीएसटी की टाइमिंग पर सवाल उठाते हुए कहा कि लोग अभी एक झटके से उबरे भी नहीं थे कि दूसरा झटका दे दिया गया। सिन्हा ने कहा, ‘डेढ़ साल से अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी है…पिछले 6 तिमाहियों से अर्थव्यवस्था में लगातार गिरावट आ रही है…नोटबंदी बीच में आई है…उसे ऐसे वक्त में नहीं लाया जाना चाहिए था जब अर्थव्यवस्था चरमराई हुई थी…नवंबर में लाया गया…उससे अभी उबरे भी नहीं थे कि जुलाई में जीएसटी ला दिया…हो सकता है नोटबंदी से आगे चलकर अच्छे परिणाम निकले….लेकिन सरकार को उसके तात्कालिक असर का अध्ययन करना चाहिए।सिन्हा ने कहा, ‘जीएसटी का अगर किसी ने सबसे मुखर समर्थन किया तो वह मैं था, लेकन उसे जिस तरह लागू किया गया उससे चीजें गड़बड़ हुईं…नोटबंदी के झटके के बाद जीएसटी के तौर पर एक और झटका दे दिया गया…हमने 1 अक्टूबर को लागू करने को कहा था…वैसे भी 1 अप्रैल से नए वित्त वर्ष में लागू किया जा सकता था। जीएसटीएन फेल हो रहा है….परेशानियां बढ़ रही हैं। यशवंत सिन्हा ने केंद्रीय मंत्रियों द्वारा अपनी आलोचना पर भी तंज कसा। उन्होंने कहा, ‘मैं हो सकता है कि उतना अर्थशास्त्र नहीं जानता हूं जितना केंद्र के कुछ मंत्रियों को पता है। हो सकता है कि राजनाथ और पीयूष गोयल मुझसे ज्यादा अर्थशास्त्र समझते हैं…लेकन मैं इस विचार के साथ नहीं हूं।

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