By: Suhail Kakorvi सुहेल काकोरवी की ग़ज़ल (ज़मीने ग़ालिब पर) चेहरे पे आरज़ू के अजब रंगो नूर था इख़फ़ा का आज वादए हुस्ने ज़हूर था Upon the face of desire, there were unique colors and light The Latent Divine intends to expose what is excessively bright कुछ भी कहे वो इसलिए उलझन में ही रहा वो चाहता नहीं था मगर मुझसे दूर था Let her say anything bit different is the reality Remains away from me when does not wish she उसके करम से दीद हुई मेरी कामयाब हिम्मत शिकन…
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माँ की सूचना।
By: C.P. Singh, Literary Editor-ICN Group मेरे- आंसू, दूर देश में, जब गिरे धरती- माँ पर । बिन- चिट्ठी, दुःख- सूचित-माँ का, घर में भीगा- आँचल । माँ, मेरी-जननी- बनि, दुख- सहती- जीवन- भर । संतति को खुशियाँ मिलें, जप- करती- जीवन- भर । निज- उसका, कुछ भी नहीं,सब- निर्भर- जातक- पर । बच्चे का –मन- मुदित देखकर, खुश रहती ममता भर । मेरे- आंसू, दूर देश में, जब गिरे धरती- माँ पर । धरती- माँ, धरती हमें, निज- अंकन- जीवन- भर । हम कुछ भी उस पर करें, सब…
Read Moreसुनों बसंती हील उतारो,अपने मन की कील उतारो
आकृति विज्ञा ‘अर्पण’, असिस्टेंट ब्यूरो चीफ-ICN U.P. सुनों बसंती हील उतारो अपने मन की कील उतारो नंगे पैर चलो धरती पर बंजर पथ पर झील उतारो जिनको तुम नाटी लगती हो उनकी आँखें रोगग्रस्त हैं उन्हें ज़रूरत है इलाज की ख़ुद अपने से लोग ग्रस्त हैं सच कहती हूँ सुनो साँवली तुमसे ही तो रंग मिले सब जब ऊँचे स्वर में हँसती हो मानो सूखे फूल खिले सब बिखरे बाल बनाती हो जब पिन को आड़ा तिरछा करके आस पास की सब चीज़ों को रख देती हो अच्छा करके मुझे…
Read Moreसमय का गीत: 2
तरुण प्रकाश श्रीवास्तव, सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप मैं समय के सिंधु तट पर आ खड़ा हूँ, पढ़ रहा हूँ रेत पर, मिटते मिटाते लेख, जो बाँचे समय ने। 2 हैं हवा में कुछ पुराने पृष्ठ पीले फड़फड़ाते। फट चले कुछ पृष्ठ,रह-रह,थरथराते-कंपकंपाते।। ग्रीस के विस्तार की वे सिर उठाती सभ्यतायें। और बेबीलोन की अद्भुत निराली सर्जनायें।। नील की जलधार पर हँसते विचरते रंग यौवन। और तट पर साँस लेता मुक्त वैभवयुक्त जीवन।। मिस्र की वह सभ्यता, रंगीनियों की वह कहानी। रह गयी इतिहास में ही शेष फ़ारस की निशानी।। सिंधु घाटी…
Read Moreकिशोरों की जिंदगी का सबसे खतरनाक ज़हर: “अवसाद”
डॉ. संजय श्रीवास्तव आज कल प्रायः अखबारों में ,टेलीवीजन में ,सोशल साइट्स पर या अन्य खबरों में आये दिन किसी न किसी व्यक्ति के आत्महत्या द्वारा म्रत्यु की खबरे हमारे संज्ञान में आती रहती है | इन खबरों में मरने वालो में ज्यादातर खबरे नई उम्र के नवयुवको एवं नवयुवतियो की होती है | बड़ा अजीब सा लगता है यह देख कर कि जिस उम्र में अभी तक इन बच्चो ने ,इन किशोरों ने इस जिंदगी के सफ़र को अच्छे से देखा नहीं है , समझा नहीं है और अभी उनके उपर किसी ज़िम्मेदारी का बोझ नहीं है…
Read Moreचोट के कारण को पहचाने नयी चोट को पुरानी न होने दे
डॉ. नौशीन अली, ब्यूरो चीफ-ICN मध्य प्रदेश ‘गिरना संभलना फिर उठकर खड़े हो जाना कभी हिम्मत न हारना’’ भोपाल।आज कल की इस भाग–दौड़ भरी लाइफ में इंसान इतना व्यस्त हो गया है, कि उसे अपनी सेहत की परवाह किये बिना ही बस दौड़े जा रहा है। इस भाग–दौड़ में उसको चोट भी लग जाती है या खेलते वक़्त जिसे हम स्पोर्ट्स इंजरी कहते है पर वो उसको नजरअंदाज़ कर देता है। हमें ऐसी चोटों को नजरअंदाज़ नहीं करना चाहिए। कई बार ऐसी चोटे बड़ा रूप ले लेती है।चोट या इंजरी सिर्फ जवान को नहीं बच्चे बूड़ो को भी लग जाती है सबके अपने…
Read Moreसमय का गीत: 1
तरुण प्रकाश श्रीवास्तव, सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप मैं समय के सिंधु तट पर आ खड़ा हूँ, पढ़ रहा हूँ रेत पर, मिटते मिटाते लेख, जो बाँचे समय ने। 1 शून्य से उपजा समय या फिर समय से शून्य आया। यह जगत, ब्रह्माण्ड सारा सत्य है या सिर्फ़ माया।। हम सहज ही हैं मनुज या सिर्फ़ हम परछाइयाँ हैं। मात्र मिथ्या स्वप्न हैं हम या अटल सच्चाइयाँ हैं।। हम अधर के चक्र में हैं या अधर हम में कहीं है। हम यहाँ पर है, वहाँ पर हैं, यहीं हैं या वहीं…
Read Moreग़ज़ल–दिल को बहलाने की आदत हो गई है ….
“घर पर रहें – घर पर सुनें” हर रोज़ नए गाने ग़ज़ल – दिल को बहलाने की आदत हो गई है …. गायक – डॉ हरि ओम (लखनऊ) संगीतकार – केवल कुमार गीतकार – अशोक हमराही डॉ हरि ओम का नाम सभी के लिए जाना पहचाना है। IAS अधिकारी का गुरुतर दायित्व निभाते हुए भी उन्होंने अपने दिल की आवाज़ को कभी अनसुना नहीं किया तथा लेखन और गायन को बदस्तूर जारी रखा। वह जितने जनप्रिय अधिकारी हैं, उतने ही लोकप्रिय शायर और गायक भी हैं। अपनी शायरी को…
Read Moreगीताख्यान 1
आकृति विज्ञा ‘अर्पण’, असिस्टेंट ब्यूरो चीफ-ICN U.P. अपनी आँखें अपना चश्मा अपने ऐंगल से देखा है जीवन के इस चक्रव्यूह को गीतों ने हद तक भेदा है। गीतों के मंदिर देखे हैं गीतों की मधुशाला देखी गीत अश्रु से खारे भी हैं मदमाती सुरबाला देखी नरगिस बेला जूही चंपा गीत गंध से ताल मिलाती कोयल भी देखी है हमने इक बिरहन को गीत सुनाती एक व्याहता को पाया है विरह भाव में चैता गाते एक मजूरन को देखा है प्रियतम के संग धान कटाते जातां चक्की के जब दिन थे…
Read Moreगर्भवती स्त्री …..
आकृति विज्ञा ‘अर्पण’, असिस्टेंट ब्यूरो चीफ-ICN U.P. गोरखपुर: गर्भवती स्त्री ….. यह शब्द सुनकर गांव सीवान याद आ जाता है। जेठ की दुपहरी हो या पूस की रात ,गांव की महिलाओं को अगर तनिक भी सूचना मिलती थी की कोई गर्भवती स्त्री गांव के डीह को पार कर रही थी तो ‘नून पानी ‘की व्यवस्था भर को वह तत्क्षण सामर्थ्यवती हो जाती थीं। कल का ट्रेनिंग सेशन बाराबंकी की कुछ स्वयंसेवी जनों के साथ बीता ,जिसमें श्रीमती अंचुल (बदला नाम) बता रही थीं कि इन दिनो बेटे (10 बरस)की आनलाइन…
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