चुनाव के दौर में गैर राजनीतिक इंटरव्यू की आवश्यकता क्यों ?

राणा अवधूत कुमार  पटना।  बॉलीवुड के मशहूर कलाकार अक्षय कुमार ने हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू लिया। घोषित तौर पर यह गैर राजनैतिक इंटरव्यू था. लेकिन किसी देश के प्रधानमंत्री का इंटरव्यू बीच चुनाव में एक फिल्मी कलाकार का लेना देश के विद्वान पत्रकारों के लिए भी दुखद है. अक्षय कुमार एक बेहतरीन कलाकार हैं, और इंटरव्यू की चर्चा देश-विदेश में हुई है. जहां विश्व के तमाम बड़े पत्रकारों ने अपने कॉलम में लिखा है. इसके बाद इस इंटरव्यू की परिकल्पना भी साफ़ नहीं हैं. मसलन इंटरव्यू के लिए कैमरा किसका…

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मुफ्तखोरी को बढ़ावा देती हमारी सरकारें

होशियार सिंह, संवाददाता दिल्ली, ICN पिछले तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का कर्जा माफ़ का दावा कामयाब होने के साथ ही केवल भाजपा द्वारा ही नही बल्कि कांग्रेस द्वारा भी मुफ्त खोरी को बढ़ावा देने की योजनओं को चुनावी वायदो के रुप मे सामने लाया जा रहा है। जैसे ही केंद्र सरकार द्वारा गरीब किसानों को प्रतिवर्ष छ हजार रुपये देने की योजना को क्रियान्वित किया गया उसी को देखते हुए राहुल गांधी ने पूर्व कांग्रेस अध्यक्षों की तरह गरीबो हटाओ का नारा देते हुए प्रतिवर्ष गरीब परिवार…

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बांग्लादेश एवं उसके चुनाव का मुस्लिम दुनिया के लिए महत्व

डा. मोहम्मद अलीम, एडिटर-ICN ग्रुप  अभी चंद दिनों पहले ही हमारे पड़ोसी देश बांग्लादेश में लोकसभा के चुनाव संपन्न हुए हैं जिसमें आशा के अनुरूप वर्तमान प्रधानमंत्री शैख हसीना को काफी बड़ी कामयाबी हासिल हुई है। उन्हें तीसरी बार वहां के शासन की बागडोर संभालने का सुनहरा मौका नसीब हुआ है। नई दिल्ली। मगर ऐसा नहीं है कि बांग्लादेश का चुनाव बिना किसी कड़वाहट और रूकावट के सुगमता के साथ संपन्न हो गया। 50 से अधिक बाहरी आबजर्वर की कड़ी नजर के बावजूद चुनावी हिंसा में 20 के करीब लोग…

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लोन पॉलिसी, कितनी राजनीतिक, कितनी व्यवहारिक

सुरेश ठाकुर एक किसान की समृद्धि का अर्थ है उसके परिवार की, गाँव की, बैंक की तथा पूरे देश की अर्थव्यवस्था की समृद्धि |  बरेली: आँख मूँद कर लोन बँटवाते जाना और समय समय पर उसे माफ़ करते रहना सरकारी नीति का एक स्थाई हिस्सा बन गया है | कम से कम किसानों के सन्दर्भ में तो ये अक्षरशः सत्य है | खैरात की तरह बाँटे जाने वाला लोन उनकी कृषि को कितनी वृद्धि दे पा रहा है उन्हें आर्थिक रुप से कितना आत्मनिर्भर बना पा रहा है इसके संज्ञान और…

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लालमन मियां वाली दिवाली

सत्येन्द्र कुमार सिंह, एग्जीक्यूटिव एडिटर-ICN ग्रुप हुआ यूँ कि इस दिवाली जब मै दिए खरीदने गया तो फ़िज़ा में कुछ अलग ही रंग बिखरा हुआ था| या यूँ कहें कि रंग तो कुछ सदाबहार सा ही था पर शायद इस बार कुछ दूजे से चश्में से देखने की इच्छा थी मेरी| इस बार देश में २०१९ के चुनाव के मद्देनज़र त्यौहार पर ध्रुवीकरण की राजनैतिक उठापटक से परे इस चीनी झालर पर कोई विशेष ट्रोल नही हुआ| हाँ, इस बार लोगों ने पटाखे ख़रीदे भी और जलाये भी पर एक जागरूकता…

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लोकतंत्र और लोकशक्ति

सुरेश ठाकुर “लोकतंत्र सबसे निकृष्ट शासन पद्दति है” | ये कथन करते समय विंस्टन चर्चिल के मष्तिष्क में शासक और प्रजा के अंतर्सम्बंधों का विसंगतियों से परिपूर्ण दृश्य अवश्य विद्यमान होगा | शासक और शासित के बीच के अन्तर को संकीर्ण करती इस पद्दति को मैं श्रेष्ठतर मानता हूँ | किंतु इस के साथ एक बड़ी शर्त भी लागू है | शर्त है लोक शक्ति का विवेकशील होना | एक ऐसी व्यवस्था जहाँ प्रजा स्वयं परोक्षतयः शासक होती हो वहाँ उस में एक शासक की दृष्टि होना अति आवश्यक है…

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बाज़ार और हम

सुरेश ठाकुर विश्व गुरु होने का दवा करता भारत जहाँ धार्मिक आध्यात्मिक आश्रमों, संदेश और शिक्षा प्रदाताओं की भरमार है | आपसी प्रेम, सद्भाव, सदाचार और पाप/पुण्य की व्याख्या करते अनेक पर्व हैं | नैतिकता, सदाचार और धर्म की शिक्षा देती पुस्तकों से दुकानें और पुस्तकालय पटे पड़े हैं | फिर भी अपराध और भ्रष्टाचार की सूची में हमारा स्थान विश्व के शीर्ष देशों में है | देश के पुलिस स्टेशन गंभीर अपराधों की आख्याओं से भरे पड़े हैं (बावजूद इसके कि वे अपराधों की रिपोर्ट दर्ज करने में उत्साह…

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समय और हम

तरुण प्रकाश श्रीवास्तव, सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप हमारा ‘मैं’ तो सदैव हमारे साथ रहता है। वह न कभी व्यतीत होता है, न कभी उसका जन्म होता है और न ही कभी उसकी मृत्यु होती है। इस बात को और अधिक स्पष्ट करने के लिए यदि मैं आपसे पूछूँ – बचपन तो बीत गया, युवा अवस्था व्यतीत हो रही है एवं वृद्धावस्था भी आयेगी । वह कौन है आपके अंदर जो ‘बचपन’ में भी था, ‘आज’ भी है और ‘कल’ भी रहेगा। न वह कहीं गया और न ही कहीं से आएगा।…

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समय और हम

तरुण प्रकाश श्रीवास्तव, सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप कल का बीता हुआ जीवन पराजित जीवन है। यदि हमने बीते कल में कोई उपलब्धि प्राप्त भी कर ली है तो आज का जीवन उसमें कुछ और जोड़ सकता है। हम वर्तमान की खिड़की से भविष्य के नए रास्ते निकाल सकते हैं। मैं और मेरी बेटी प्रतिदिन के प्रारंभ में एक दूसरे से कहते हैं “हैप्पी बर्थडे।” यदि कोई तीसरा व्यक्ति (मेरे परिवार के अतिरिक्त) इस वार्तालाप को सुनता है तो प्रायः चौंक पड़ता है – कभी कभी उपहास के भाव भी उभरते हैं…

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भगवा, हरा और काला और अन्य पवित्र धार्मिक रंगों एवं प्रतीकों से हमें डर क्यों लगने लगा है ?

डा. मोहम्मद अलीम, चीफ न्यूज़ एडिटर, ICN ग्रुप नई दिल्ली। हिंदू और बौद्ध धर्म में भगवा तथा मुस्लिमों में हरा, काला और सफ़ेद रंग को पवित्र माना जाता है। (जैसा कि हम ने वर्तमान में पृथ्वी पर सबसे डरावने समूह आईसीस का झंडा देखा है क्योंकि पश्चिमी मीडिया, आई.एस.आई.एस द्वारा ऐसा ही पेश किया गया है। )। इसी प्रकार, कुछ कपड़े और झंडे और दाढ़ी और टोपी पहनने के तरीके जो कि मुस्लिम या यहूदी या ईसाईयों में राएज हैं, लोगों के बीच एक विषेश प्रकार का भय उत्पन्न करते…

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