मोहम्मद सलीम खान, सीनियर सब एडिटर-आईसीएन ग्रुप सहसवान/बदायूं: इस वक्त लगभग दुनिया के सभी बड़े और ताकतवर देश कोरोना वायरस के संक्रमण के खौफ के साए मे ज़िन्दगी गुज़ार रहे हैं। दुनिया मैं वायरस का संक्रमण लगभग 785,000 लोगों को हो चुका है और पूरी दुनिया मैं लगभग 37000 लोगों की मौत हो चुकी है और लगभग 165000 लोगों को इस महामारी से बचा लिया गया है।अमेरिका जैसा महाशक्तिशाली राष्ट्र मे सबसे अधिक लगभग 163000 लोग इस महामारी से पीड़ित हैं। आज इस महामारी के इतना विशाल रूप धारण करने…
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कोरोना वायरस : त्रासदी में शगुन-1
तरुण प्रकाश श्रीवास्तव , सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप विश्व आज भयानक त्रासदी की ओर फिसल रहा है। हम सब संभव-अंसभव के मध्य खिंची महीन रेखा पर बार बार असंतुलित होते संतुलन को बनाये रखने के अथक प्रयास में जी जान से लगे हैं। मनुष्य की विकृति ने आज उसे उसकी औकात बता दी है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि आज संपूर्ण विश्व उस बिंदु पर खड़ा है जहाँ मात्र हमारी समझदारी, आत्मविश्वास, सतर्कता, सावधानी और अनुशासन ही हमारे सुरक्षा कवच हैं। जहाँ विश्व के बड़े-बड़े एवं पूर्ण विकसित देश कोरोना…
Read Moreजब इंसान से इंसान डरने लगे
लेखक : डॉक्टर मोहम्मद अलीम, संपादक, आइसीएन ग्रुप नई दिल्ली। आज देश व्यापी लोक डाउन का पांचवां दिन है। यह सिलसिला अगले १५ अप्रैल तक जारी रहने वाला है। आज तक के आंकड़े के मताबिक भारत में अबतक तीस लोगों की मौत कोरोनावायरस से हो चुकी है और एक हजार से ज़्यादा लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं। पूरी दुनिया में यह आंकड़ा तीस हजार को पार कर चुका है। बड़े बड़े शक्तिशाली देश इसके आगे पस्त दिखाई दे रहे हैं जैसे अमेरिका, फ्रांस, चाइना, इटली, स्पेन और इंग्लैंड वगैरह।…
Read Moreकोरोना वायरस : मैं समय हूँ
तरुण प्रकाश श्रीवास्तव , सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप मेरे बच्चों, जब से सृष्टि बनी हेै, मैं उपस्थित हूँ । मैं तो सृष्टि के निर्माण से भी पहले अपना अस्तित्व प्राप्त कर चुका था क्योंकि महा अंधकारमय शून्य में महाविस्फोट से गाडपार्टकिल की व्युत्पत्ति का भी तो अकेला मैं ही प्रत्यक्षदर्शी हूँ। ये अनंत आकाश गंगायें, ये सहस्रों ब्रह्माण्ड, ये सूरज, ये ग्रह, ये चांद, ये सितारे और यह धरती, मैं सबके निर्माण व विकास का अकेला साक्षी हूँ। मैं कभी नहीं ठहरा। ठहरना मेरी नियत ही नहीं हेै। सदेैव चलते रहना…
Read Moreमशाल बनाम कुल्हाड़ी
तरुण प्रकाश श्रीवास्तव , सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप आखिर एक समाज में पत्रकारिता की क्या भूमिका होनी चाहिए? क्या मात्र तथ्य को तथ्य रूप में प्रस्तुत से और सत्य को सत्य कहने से पत्रकारिता की भूमिका का निर्वहन हो जाता है अथवा पत्रकारिता इससे भी आगे की चीज है? ‘समाज कैसे यात्रा करता है?’ प्रश्न रोचक था लेकिन अत्यंत गंभीर भी। जब यह प्रश्न मेरे सामने आया था तो कुछ देर तक तो मैं मात्र प्रश्न को समझने और उसकी तह में जाने की कोशिश करता रहा और कुछ पलों के…
Read Moreप्यारे हो सकने वाले ससुर जी
अमरेश कुमार सिंह, असिस्टेंट एडिटर ICN भारतीय रीति रिवाज परंपरा प्रतिष्ठा के अनुसार मैं भी शादी के योग्य होता जा रहा हूं। वैसे परंपराओं के अनुसार मुझे अपने दिखावटी पद पर अब काम करना शुरू कर देना चाहिए। जैसे कि मैं किसी कंपनी में मैनेजर हूं तो मुझे खुद को कंपनी का मालिक बता देना चाहिए। मेरी कमाई ₹10000 हो तो माहौल ऐसा बनाना चाहिए कि वह 1000000 लगे। आन, बान, शान इतनी शानदार बतानी चाहिए की मानो आपकी बेटी मेरी पत्नी बन कर नहीं आपकी वन टाइम इन्वेस्टमेंट बनकर…
Read Moreलोकतंत्र और लोकशक्ति
सुरेश ठाकुर “लोकतंत्र सबसे निकृष्ट शासन पद्दति है” | ये कथन करते समय विंस्टन चर्चिल के मष्तिष्क में शासक और प्रजा के अंतर्सम्बंधों का विसंगतियों से परिपूर्ण दृश्य अवश्य विद्यमान होगा | शासक और शासित के बीच के अन्तर को संकीर्ण करती इस पद्दति को मैं श्रेष्ठतर मानता हूँ | किंतु इस के साथ एक बड़ी शर्त भी लागू है | शर्त है लोक शक्ति का विवेकशील होना | एक ऐसी व्यवस्था जहाँ प्रजा स्वयं परोक्षतयः शासक होती हो वहाँ उस में एक शासक की दृष्टि होना अति आवश्यक है…
Read Moreसमय और हम
तरुण प्रकाश श्रीवास्तव, सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप हमारा ‘मैं’ तो सदैव हमारे साथ रहता है। वह न कभी व्यतीत होता है, न कभी उसका जन्म होता है और न ही कभी उसकी मृत्यु होती है। इस बात को और अधिक स्पष्ट करने के लिए यदि मैं आपसे पूछूँ – बचपन तो बीत गया, युवा अवस्था व्यतीत हो रही है एवं वृद्धावस्था भी आयेगी । वह कौन है आपके अंदर जो ‘बचपन’ में भी था, ‘आज’ भी है और ‘कल’ भी रहेगा। न वह कहीं गया और न ही कहीं से आएगा।…
Read Moreमानसून की दस्तक
गर्मी से झुलसते उत्तर भारत को मानसून की फुहारों से भीगने में कुछ वक्त और लगेगा मगर यह खबर सुकून देने वाली है कि मानसून ने केरल में दस्तक दे दी है। भले ही उसके आने में देरी हुई है मगर फिर भी मानसून की बाट जोहती करोड़ों आंखों में उम्मीदें पुख्ता हुई हैं। लेट लतीफ मानसून इनसानी तरक्की के तमाम दावों के बावजूद आज भी भारत की जीवनरेखा बना हुआ है। गर्मी की तपिश से राहत दिलाने, पेड़-पौधों में नये जीवन का संचार करने के साथ ही खेती का…
Read Moreक्या हिंदी राष्ट्र भाषा है ?
सत्येन्द्र कुमार सिंह, एडीटर-ICN 26 जनवरी 1950 को भारत का अपना संविधान बना तब यह माना गया कि धीरे-धीरे हिंदी अंग्रेजी का स्थान ले लेगी और अंग्रेजी पर हिन्दी का प्रभुत्व होगा किन्तु कानून के अनेक मूल भावनाओं की तरह यह भी अपना उचित स्थान नहीं प्राप्त कर सका है| ये प्रश्न बड़ा अटपटा लग सकता है कि देश की सबसे ज्यादा बोले जानी वाली भाषा हिंदी (४१%-जनगणना २००१) भारत की राष्ट्रभाषा तो है ही नहीं| जी हाँ, यह सच है| गुजरात उच्च न्यायालय ने सन २०१० में यह स्वीकारते हुए कि…
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