उर्दू शायरी में ‘चेहरा’ : 4

तरुण प्रकाश श्रीवास्तव, सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप 

कितना ज़रूरी होता है हर एक के लिये एक अदद चेहरा यानी सूरत यानी शक्ल यानी रुख़। कभी- कभी सोचता हूँ कि अगर यह दुनिया ‘बेचेहरा’ होती तो क्या होता। इस बेचेहरा दुनिया में कौन किसको पहचानता और कौन किसको याद रखता।

भला बिना पहचान की वह दुनिया कैसी होती। कितनी दुर्घटनाएं होतीं, कितने हादसे होते। सवेरे कोई किसी के साथ होता तो शाम को किसी के साथ। सिलीब्रटीज़ के बड़े-बड़े पोस्टर्स में आखिर क्या दिखाया जाता? पुलिस भला किसकी रपट लिखती और किसको पकड़ती? रिंद किसकी आँखों के मयखाने में डुबकियाँ लगाते और शायर किसके लबों में ‘दो पंखुड़ी गुलाब की’ ढूंढते? शायद हम एक दूसरे की गंध से एक दूसरे को पहचानते लेकिन जहाँ लोग चेहरे बदलने में उस्ताद हो गये हैं वहाँ भला गंध की क्या बिसात। दिन में चमेली की खुश्बू लुटाने वाले रात में गुलाब में सराबोर होने से क्या भला गुरेज़ करते? हमारी भिन्नताओं और हमारे अलग-अलग व्यक्तित्व की सबसे बड़ी पहचान हमारा चेहरा ही है। हमारा चेहरा ही मनुष्य व जानवरों के बीच का सबसे बड़ा अंतर भी है। हर मनुष्य का अपना एक चेहरा है जो उसका नितांत अपना है जबकि हर जानवर का चेहरा लगभग एक जैसा है।

चेहरे में भी तमाम तिलिस्म छिपे हैं। किसी के पास चेहरों की भीड़ है तो कोई चेहरा भीड़ में भी अकेला है। कोई चेहरा किताब जैसा पढ़ा जा सकता है तो कोई ऐसा भी है जिसके भावों को समझने के लिये हज़ारों किताबों को पढ़ना पड़ता है। कोई चेहरा आपको अपने अंदर तक झाँकने की अनुमति देता है तो किसी का चेहरा दर्पण जैसा है जो सिर्फ़ आपका ही अक़्स आपके सामने पेश करता है।

चेहरों और सूरतों की यह दुनिया विचित्र है। कोई चेहरा सपनों में भी आकर डराता है तो किसी एक दूसरे चेहरे की एक झलक के लिये कोई ताकयामत इंतज़ार करने को तैयार है। इन्हीं चेहरों पर परी देश का सम्मोहक जादू तैरता है और इन्हीं पर किसी तांत्रिक का मरणसिद्ध तंत्र भी।

दुनिया की हर कहानी में कोई न कोई हसीन चेहरा है, कोई न कोई भयानक चेहरा है, कोई न कोई मुस्कराता हुआ चेहरा है और कोई न कोई रोता हुआ चेहरा है। सच है, चेहरों के बगैर कहानियाँ नहीं होतीं, चेहरों के बगैर सपने नहीं होते, चेहरों के बगैर ज़िंदगी नहीं होती और हाँ, ….. चेहरों के बिना शायरी भी नहीं होती। दुनिया का कोई भी साहित्य हो, वह चेहरों से भरपूर है। शेक्सपियर ने तो यहाँ तक कहा है कि ‘फ़ेस इज़ दि इंडेक्स ऑफ माइंड’ और इसी तरह उर्दू शायरी में शायर के तसव्वुर में जो चीज़ सबसे ज़्यादा ताजगी से भरी और सबसे चमकदार है वह है महबूब का चेहरा। आधुनिक शायरी में कहीं-कहीं यह चेहरा आम आदमी का चेहरा है, मासूमियत का चेहरा है, धूर्तता का चेहरा है, लालच का चेहरा है, मक्कारी का चेहरा है, क्रूरता का चेहरा है और बेबसी का चेहरा है।

उर्दू के हर छोटे-बड़े शायर ने अपने-अपने फ़न से इन चेहरों की पड़ताल की है और हर बार किसी चेहरे या सूरत के ज़रिये उन्होंने ख़यालों के बेमिसाल मंज़र सृजित किये हैं। कितना मज़ेदार और दिलचस्प होगा इन बेहतरीन शायरों की शायरी में तमाम चेहरों से बातें करना और उन्हें परखना। चलिये, इस बार हम-आप उर्दू शायरी के इस नये सफ़र में ढेर सारे चेहरों से मुलाकात करते है, ढेर सारी सूरतों को निहारते हैं और उन्हें दिल में बसाने की कोशिश करते हैं।

और हाँ, एक और बात को समझना बहुत ज़रूरी है कि जब ढेर सारे शायर हों तो उन्हें एक क्रम तो देना ही पड़ता है। किसी शायर की वरिष्ठता अथवा श्रेष्ठता तय करने की न तो मुझमें योग्यता ही है और न ही कभी मैंने इसका प्रयास ही किया है। मुझे तो सारे शायर दिल से पसंद हैं और मेरे लिये गुलाब और रातरानी, दोनों की खुश्बू दिल को सुकूं पहुँचाने वाली हैं। मैंने मात्र अपनी व पाठकों की सुविधा की दृष्टि से शायरों का क्रम उनकी जन्मतिथि के आधार पर रखने का प्रयास किया है। ये सूचनायें भी मैंने उपलब्ध पुस्तकों व सूचना के अन्य स्रोतों जैसे इंटरनेट पर उपलब्ध विवरण से प्राप्त की हैं इसलिये यदि सूचनाओं का कोई विवरण अथवा उसका कोई अंश गलत है तो मैं उसके लिये आपसे प्रारंभ में ही क्षमाप्रार्थी हूँ और आपसे निवेदन है कि यदि आपके पास प्रमाणिक सत्य सूचना है तो कृपया मुझसे अवश्य शेयर करें ताकि ऐसी त्रुटि का सुधार किया जा सके। कुछ पुराने शायरों व अनेक नये शायरों की जन्मतिथि उपलब्ध न होने के कारण उन्हें क्रम में समुचित स्थान मैंने स्वयं ही दिया है जिसका आधार मेरी अपनी सुविधा मात्र है। सत्यता यह है कि मेरी स्पष्ट धारणा हेै कि प्रत्येक शायर व फ़नकार स्वयं में अनूठा है और उस जैसा कोई दूसरा हो ही नहीं सकता।

सुहैल काकोरवी उर्दू साहित्य में एक स्थापित और चमकदार नाम है। वे शेर कहते ही नहीं हैं बल्कि बाक़ायदा शायरी को जीते भी हैं। उर्दू के साथ उन्होंने हिंदी, अंग्रेज़ी व फ़ारसी साहित्य को भी  मालामाल किया है। 7, जुलाई, 1950 में लखनऊ में जन्मे इस शायर के सृजन की कोई सीमा नही है। ‘निग़ाह, ‘आमनामा’ते, गुलनामा, नीला चाँद, ग़ालिब:एक उत्तर कथा, आदि-इत्यादि उनकी मशहूर पुस्तकें हैं। चेहरे पर उनके ये हसीन अशआर देखिये –
“उसके चेहरे पर है हुस्न-ए-इब्तिदाय ज़िंदगी।
मेरे पैकर से नुमाया इंतहा-ए-ज़िंदगी॥”
और एक यह अशआर –
“चेहरे से उम्मीद की किरनें जारी थीं,
उसकी ज़ुल्फ़ अचानक बिखरी, रात हुई।”
सुहैल काकोरवी ने चेहरे पर एक मुकम्मल ग़ज़ल भी कही है। उस ग़ज़ल के कुछ शेर आपके हवाले –
जेहने कुदरत मे था छुपा चेहरा।
मेरे दिल मे बसा हुआ चेहरा॥
देखना इसको ऐने ईमा है,
ये तजल्ली का इरतिका चेहरा।
कही गड़बड़ कोई जरूर है आज,
जो धुऑ  है जनाब का चेहरा।
दिन बहोत हो गये मिले उस्से,
याद है उसका ख्वाब सा चेहरा।
मेरे रद्दे अमल से खिल उठ्ठा,
उस हसी का वो गमजदा चेहरा।
उसपे आखे है जो कि बागी है,
उनसे डरता है बेवफा चेहरा।
इश्क गुस्ताख से परेशा है,
हुस्न का ये हया नुमा चेहरा।
वही है हर तरफ वही है ‘सुहैल’
जो रहेगा वही सदा चेहरा।”
राजेन्द्र वर्मा का जन्म 8 नवम्बर 1957, बाराबंकी ज़िले में हुआ और कालांतर में उन्होंने लखनऊ को अपना स्थायी निवास बना लिया।  ‘लौ’, ‘अंक में आकाश’, ‘वाणी पर प्रतिबंध है’ और ‘हम लघुत्तम हुए’ उनके ग़ज़ल संग्रह हैं। वे अनेक विधाओं में साधिकार अपनी कलम चलाते हैं। उनका व्यक्तित्व बहुआयामी है। उपरोक्त पुस्तकों के अतिरिक्त भी उनकी अनेक विधाओं में अनेक पुस्तकें मंज़र-ए-आम पर आ चुकी हैं और पाठकों की प्रशंसा हासिल कर चुकी है। बड़ी बात को कम शब्दों में सफलतापूर्वक कह देना उनका हुनर है। चेहरे पर उनके खूबसूरत अशआर देखिये –
“आईना भी उन्हें देख हैरान है,
उनके चेहरे पे आयी हँसी किसलिए।”
एक शेर यह भी –
“उनका चेहरा ही भोला-भाला है,
वार उनका न जाता है ख़ाली।”
और एक शेर चलते-चलते –
“हमने उसको ही चुन लिया रहबर,
जिसके चेहरे पे ख़ूब चेहरे हैं।”
हिना रिज़वी लखनऊ से ताल्लुक रखती हैं और वर्तमान में पटना (बिहार) में निवास कर रही हैं। ‘रंग-ए-हिना’ उनका एक खूबसूरत दीवान है। चेहरे पर कुछ एक उनके आशआर क़ाबिले गौर हैं –
“कितना मासूम नज़र आता था बचपन में मिरे,
आईने में मेरा फिर से वही चेहरा हो जाये।”
और
“वक़्त की आँच से उड़ जाती है रौनक सारी,
हाल दीवार का चेहरों की तरह होता है।”
और एक यह शेर भी –
“सबकी तशरीह नहीं करते हैं चेहरे के नुक़ूश,
दर्द कुछ दिल में भी होते हैं छुपाने वाले।”
शबाब मेरठी का वास्तविक नाम दिनेश कुमार स्वामी है। उनकी शायरी में धार है और पाठकों को प्रभावित करती है। चेहरे पर क्या खूबसूरत अशआर हुआ है उनकी कलम से –
“उस एक चेहरे के पीछे हज़ार चेहरे हैं,
हज़ार चेहरों का वो क़ाफ़िला सा लगता है।”
असअ’द बदायुनी का असली नाम असअ’द अहमद था। उनका जन्म 25 फरवरी, 1952 को बदायूं में एवं मृत्यु 5 मार्च, 2003 को अलीगढ़ में हुई। वे प्रख्यात उत्तर-आधुनिक शायर एवं साहित्यिक पत्रिका ‘दायरे’ के संपादक थे। ‘धूप की सरहद’, ‘जुनूँ किनारा’ व ‘खेमा-ए-ख़्वाब’ उनके चर्चित दीवान हैं। चेहरे पर उनका एक बहुत प्यारा शेर देखिये –
“जिसे पढ़ते तो याद आता था तेरा फूल सा चेहरा,
हमारी सब किताबों में इक ऐसा बाब रहता था।”
‘बाब’ का अर्थ है – “अध्याय”।
मेराज नक़वी एक नौजवान शायर हैँ और अपने सुनने वालों में खासे चर्चित हैं। उनके अशआर में मोहब्बत की खुशबू हेै, एक अलग सी कमसिनी है जो चेहरे को और पाकीज़ा करती है। ज़रा देखिये तो –
“नींद में भी है शर्म चेहरे पर,
ख़्वाब में मुझसे मिल रही हो क्या।”
मंजुल मिश्र मंज़र का जन्म 1 मार्च, 1965 को लखनऊ में हुआ। वे नौजवान शायर हैं और तेज़ी से अपने आप को स्थापित कर रहे हैं। वे बेहतर अशआर कहते भी हेैं और बेहतर ढंग से पढ़ते भी हैं। उनसे साहित्य को बहुत आशायें हैं और उनका भविष्य चमकदार दिखाई पड़ता है। ‘काव्य-कलश’, ‘खुश्बू-ए-ग़ज़ल’ और ‘परवाज़-ए-ग़ज़ल’ साझा ग़ज़ल संग्रहों में उनकी साझेदारी है और उनका एकल ग़ज़ल संग्रह ‘ज़बाँ आतिश उगलती है’ मंज़र-ए-आम पर आने की तैयारी में है। चेहरे पर उनके ये अशआर देखिये –
“मुझे  तो  दिन में  जो चेहरा गुलाब लगता है।
जो   रात   आए   वही  माहताब  लगता है।
मैं  ज़ाविया भी बदल लूँ तो कोई फ़र्क़ नहीं,
वो इश्क़ की ही मुक़म्मल किताब लगता है।”
तश्ना आज़मी का जन्म 10 जून, 1970 को आज़मगढ़ में हुआ और ज़िंदगी के कारोबार उन्हें लखनऊ खींच लाये और फिर वे लखनऊ के ही होकर रह गये।। वे एक ऐसे भारतीय शायर हैं जिनके लिये ज़िंदगी का मतलब शायरी और शायरी का मतलब ज़िंदगी है। उनकी शायरी कभी अंगड़ाई लेती हुई, कभी मुस्कुराती हुई, कभी लजाती हुई और कभी दर्द में सिसकियां लेती हुई महसूस होती है। अक्सर उनकी शायरी में तसव्वुरात का पर्सोनीफ़िकेशन अथवा मानवीकरण दिखाई देता है। वे अलग मिजाज़ व लहज़े के शायर हैं। ‘क़ातिल लम्हे’, चाँद की गवाही’ और ‘सदा-ए-फ़िरागाँ’ उनके दीवान हैं। चेहरे पर उनके चंद अशआर देखिये –
“जिसकी सूरत देखकर कुछ लोग पागल हो गये,
૪कुछ न कुछ हम पर भी उसका है असर,कहते हैं लोग।”
सच्चाई आखिर सच्चाई ही होतीहै –
“चेहरे से अपने चांद का ग़ाज़ा उतारिये,
झूठी चमक दमक के परस्तार हम नहीं।”
और यह शेर तो कमाल का है –
“जिनको इक ज़माने से आइना समझते थे,
आजकल वही चेहरे दाग़दार मिलते हैं।”
अमिताभ दीक्षित में अनेक कलाओं का संगम है। वे कभी साहित्य की खिड़की खोलते हैं, कभी चित्रकला के नाया नमूने से झांकते हैं तो कभी संगीत के नर्म मुलायम सुनहरे आकाश से उतरते हैं। वे फ़िल्मकार भी हैं और लेखक भी। बात कुछ भी हो लेकिन कहने का सलीका ऐसा कि दूर से उनकी खुश्बू आ जाये। चेहरे पर
“तुम ख्वाबों में, ख्वाब सुहाना लगता है।
रात का नींद को ये नज़राना लगता है॥
इस बस्ती से किसी जनम का रिश्ता है,
हर चेहरा जाना पहचाना लगता है॥”
राज तिवारी नौजवान शायर हैं जिनका जन्म 14 अक्टूबर, 1997 को उमरिया, मध्य प्रदेश में हुआ तथा वर्तमान में वे कोतमा, अनूपनगर, मध्यप्रदेश में रहते हैं । बेहतर ढंग से बात कहने का फ़न है उनमें। उनकी शायरी यह यक़ीन दिलाती है कि शायरों की यह नस्ल भविष्य में उर्दू शायरी को बहुत कुछ देने वाली है। चेहरे पर उनका यह देखिये –
“यूँ  मेरे  हाल  का  अंदाज़ा  लगाने  वाले,
कुछ भी चेहरे से उजागर नहीं होने वाला।”
सज्जाद अख़्तर एक बेहतरीन शायर हैं। आईना ही हमारे चेहरे के होने की गवाही देता है। लेकिन अगर आईना ही अपनी ज़िम्मेदारी से मुकर जाये तो हम बस अपना चेहरा ढूंढते रह जायेंगे। जितना शानदार ख़याल है, उतनी ही खूबसूरती से ज़ाहिर भी किया गया है उनके इस अशआर में –
“अपने चेहरे से नहीं आज कोई भी वाक़िफ़,
आईने हो गए सब खौफ़ के मारे पत्थर।”
किसी अज्ञात शायर का यह शेर है लेकिन जब भी इससे रूबरू होता हूँ, इस तेज़ रफ़्तार ज़िंदगी कि सच्चाई सामने आ कर खुद ब खुद खड़ी हो जाती है –
“घर से निकलो तो पता जेब में रख कर निकलो,
हादसे चेहरे की पहचान मिटा देते हैं।”
  यह शेर भी किसी अज्ञात शायर का है लेकिन चेहरे को कितनी खूबसूरती से परिभाषित करता है –
“चेहरा खुली किताब है उनवान जो भी दो,
जिस रुख़ से भी पढ़ोगे मुझे जान जाओगे।”
यह खूबसूरत शेर भी किसी नामालूम शायर का है। मोहब्बत तो फिर मोहब्बत ही है। अगर एक बार मोहब्बत के साथ महबूब नज़र में बस गया तो ये आँखें कुछ और देखना ही बंद कर देती हैं। उन्हें तो हर तरफ़ फिर महबूब का चेहरा ही दिखाई देता है। यह शेर कुछ यही कहता है कि महबूब का चेहरा देखने के लिये यह ज़रूरी नहीं है कि महबूब भी सामने हो –
“किताब खोल के देखूँ तो आँख रोती है,
वरक़ वरक़ तिरा चेहरा दिखाई देता है।”
चेहरा हमारे होने की पहचान है। यदि हमारा चेहरा हमसे खो जाये तो हम अपने आप को भी नहीं पहचान पायेंगे। दुनिया की सारी भावनायें, सारे ख़यालात चेहरों के इर्द गिर्द ही मंडराते हैं और जब कोई ख़याल मोहब्बत बन कर दिल में घर कर जाता है तो उस मोहब्बत की पैकिंग पर किसी का चेहरा ही नक्श होता है। चाहे वो प्यार हो, नफ़रत हो, ममता हो, वात्सल्य हो, मित्रता हो या सम्मान अथवा श्रृद्धा हो, सबके साथ कोई न कोई चेहरा ही जुड़ा हुआ है।
हज़ारों लोग माज़ी में खो गये क्योंकि उन्होंने अपनी ज़िंदगी में सिर्फ़ वक़्त बिताया और मौत आने पर फ़ना हो गये। कहने का मतलब है कि ऐसे ही कितने लोग अपनी ज़िंदगी बेचेहरा गुज़ार देते हैं और आने वाले वक़्त में उनका कोई नाम-ओ-निशान नहीं मिलता लेकिन कुछ मुट्ठी भर लोग कारनामे अंजाम कर अपने चेहरे के भविष्‍य में भी ज़िंदा रहने की तरकीब निकाल लेते हैं और अपनी जिस्मानी मौत के बाद भी सदियों तक मीर, ग़ालिब और इक़बाल की तरह जिंदा रहते हैं।
एक अदद चेहरा बहुत ज़रूरी है क्योंकि चेहरा मनुष्य रूपी किताब का फ्रंट कवर है। दुनिया के पुस्तकालय में अरबों किताबें हैं और हर किताब का एक फ्रंट कवर है, एक नाम है। बगैर फ्रंट कवर व टाइटिल के आप किसी किताब की शिनाख्त नहीं कर सकते। सच कहें तो जिस्म खाक हो जाते हैं लेकिन कुछ चेहरे हमेशा ज़िंदा रह जाते हैं इसलिये आपका चेहरा आपकी पहचान है, आपकी दौलत है और अगर आपने अपने चेहरे का ईश्वरीय मिशन समझ लिया तो यह चेहरा मौत से भी परे ज़िंदा रह सकता है। आखिरी बात – दुनिया का कोई शख़्स ऐसा नहीं है जिसमें एक अदद दिल न हो और दुनिया में कोई ऐसा दिल नहीं है जिसमें एक अदद चेहरा न हो।
चलते-चलते ‘चेहरे’ पर कुछ शेर मेरे भी आपके लिये ‘रिटर्डं तोहफ़े’ के रूप में –
“नर्म हाथों में गुनगुना चेहरा।
दिल पे है अक़्स आपका चेहरा॥
कर रहा हूँ तलाश मुद्दत से,
खो गया मुझसे है मिरा चेहरा।
चाँद तारे सभी हुये धुंधले,
उसका पल भर भी जो बुझा चेहरा।
फिर से मुस्काई भोर की किरनें,
फिर से उतरा है रात का चेहरा।
चाहे पर्तों में हो छिपा जितना,
राज़ खोलेगा शर्तिया चेहरा।
तेज़ ज़ालिम हवा चमन में है,
उसका चेहरा हेेै फूल सा चेहरा।
पढ़ सको तो खुली किताब फ़क़त,
देख पाओ तो आईना चेहरा।
सिर्फ़ मतलब यही है सेल्फ़ी का,
अपने चेहरे को देखता चेहरा।
हर नज़र बन गई है परवाना,
उसका चेहरा चिराग़ सा चेहरा।
तरुण प्रकाश श्रीवास्तव

Share and Enjoy !

Shares

Related posts