गीत-गीता : 6

तरुण प्रकाश श्रीवास्तव , सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप 

(श्रीमद्भागवत गीता का काव्यमय भावानुवाद)

द्वितीय अध्याय (सांख्य योग)

(छंद 1-7)

 

संजय : (श्लोक -1)

 

शोकाकुल अर्जुन बैठे,

व्याकुल आहत निष्क्रिय से।

नयनों में नीर भरे हैं,

चिंतित ‘होनी’ के भय से।।(1)

 

तूफानों में ज्यों नैया,

पतवार रहित हो डोले।

यह दशा देख अर्जुन की,

मधुसूदन उनसे बोले।।(2)

 

श्रीकृष्ण : (श्लोक 2-3)

 

कौंतेय, उचित क्या अवसर,

इस भाँति आचरण का है?

जब प्रश्न युद्ध में केवल,

विश्वास जागरण का है।।(3)

 

हे वीर सखा, यह क्रंदन,

उस पर है नहीं सुहाता।

जिसके बाणों के आगे,

है अखिल विश्व थर्राता।।(4)

 

अर्जुन : (श्लोक 4-8)

 

हे मधुसूदन, बतलाओ,

किस भाँति बाण चल पाये।

गुरु और पितामह दोनों,

हैं वंदनीय कहलाये।।(5)

 

इनका वध कैसे संभव,

अपराध बड़ा क्या इससे।

जन्मों तक मित्र कभी क्या,

उन्मुक्ति मिलेगी जिससे।। (6)

 

भिक्षा है श्रेष्ठ हमेशा,

यह नीच कृत्य करने से।

ले हाथ रक्तरंजित धन,

क्षण क्षण पल पल मरने से।।(7)

 

क्रमशः

 

-तरुण प्रकाश श्रीवास्तव

 

विशेष: गीत-गीता, श्रीमद्भागवत गीता का काव्यमय भावानुवाद है तथा इसमें महान् ग्रंथ गीता के समस्त अट्ठारह अध्यायों के 700 श्लोकों का काव्यमय भावानुवाद अलग-अलग प्रकार के छंदों में  कुल 700 हिंदी के छंदों में किया गया है। संपूर्ण गीता के काव्यमय भावानुवाद को धारावाहिक के रूप में अपने पाठकों के लिये प्रकाशित करते हुये आई.सी.एन. को अत्यंत प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है।

 

Share and Enjoy !

Shares

Related posts