अमिताभ दीक्षित, एडिटर-ICN U.P.
हर तरफ हैं जुल्म की परछाइयां।
घेर लेती हैं हमें रुसवाइयाँ ।।
क्यों न बदलेगा लिबास-ए-जुस्तजू।
पूछती हैं गौर से तनहाइयाँ।।
पाँव में ले के हिनाई आरजू।
बेसबब क्यों फिर रही अंगड़ाइयाँ।।
रोज माथे की लकीरों से जिरह।
उम्र को आवाज़ दें रानाइयाँ।।
डूबने वाले को क्या क्या चाहिये।
पूछती हैं रिन्द की गहराइयाँ।।