एक फ़िल्म जिसमें एक गीतकार निर्माता बन कर परेशान हो गया

फिल्मों में साहित्य का प्रयोग लम्बे समय से हो रहा हैं , एक फ़िल्म फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी मारे गए गुलफाम पर बनी नाम था  तीसरी कसम ।

गीतकार शैलेंद्र को यह कहानी बहुत पसंद आई और उन्होंने इस पर फ़िल्म बनाने की सोची । इस कहानी को लेकर वो राजकपूर के पास गए उन्हें कहानी तो बहुत पसंद आई लेकिन वो इसकी सफलता के प्रति आस्वस्त ना थे उन्होंने शैलेंद्र को चेताया की इसमें जोखिम हैं लेकिन शैलेन्द्र ठान चुके थे राजकपूर को न चाहते हुए भी शैलेंद्र के साथ रिश्तों के कारण यह फ़िल्म करनी पड़ी और नायिका के रूप में वहीदा रहमान को चुना गया।


तीसरी कसम का निर्देशन बसु भट्टाचार्य थे कहा जाता है कि राजकपूर फ़िल्म के अंत से खुश नही थे वो नायक नायिका को अंत मे मिलाना चाहते थे लेकिन निर्माता शैलेंद्र इसके लिए तैयार न थे जब बात राजकपूर और शैलेंद्र में बिलकुल ठन गयी तो रेणु जी को मुंबई बुलाया गया जिसका सारा खर्च फायनेंसरों ने उठाया था रेणु इसके लिए तैयार न हुए उन्होंने कहा अंत बदला गया तो उनका नाम भी हटा दिया जाए । रेणु को शैलेंद्र का साथ मिला।कहा जाता हैं पूरी बम्बइया फ़िल्म उधोग इस फ़िल्म के पीछे पड़ गया था क्योंकि ये फ़िल्म उनके निर्माण के स्टायल पर प्रहार करते हुए साहित्य पर बनी थी।


फ़िल्म के पूरा होते होते गीतकार शैलेंद्र बुरी तरह कर्ज में डूब गए थे और फ़िल्म के रिलीज होने से पहले ही घाटे के सदमें से उनकी मौत हो गयी। फिर फिल्म को उस तरह से रिलीज नही किया गया जैसी वो हक़दार थीं।

फ़िल्म तो उतनी सफल न हो सकी लेकिन इसके गीत आम लोगों को खूब पंसद आये जबकि समीक्षकों ने इसे खूब सराहा । इस फिलन को अवार्ड की झड़ी लग गई यहाँ तक कि फ़िल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला लेकिन अफसोस ये सब देखने को शैलेंद्र जीवित न रह सके , इस फ़िल्म को आज क्लासिक फिल्मों में शुमार किया जाता हैं।

राजकपूर और वहीदा दोनों ही इसे अपनी सर्वश्रेस्ठ फ़िल्म में गिनते थे।

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