तीन प्रश्न-तीन उत्तर

तरुण प्रकाश श्रीवास्तव , सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप
भाग-1
अक्सर मन में यह प्रश्न उमड़ कर उठता है,
भावी पीढ़ी को हम क्या देने वाले हैं।
अवसाद, निराशा के अंधियारे जंगल में,
क्या‌ आशा के अब भी अवशेष उजाले हैं? (1)
कैसे कह दें बच्चों से सपने झूठे हैं,
कैसे कह दें इनके आधार नहीं होते।
कैसे बतलायें हम जीवन के सत्य इन्हें,
सपने बस सपने हैं, साकार नहीं होते।। (2)
परियाँ केवल कल्पना लोक की बातें हैं,
दादी-नानी बस झूठ यहाँ सब कहती हैं।
गुड्डे-गुड़िया बचपन की केवल नासमझी,
बुढ़िया, झाड़ू अब नहीं चाँद पर रहती हैं।। (3)
तितली के पर के रंग न जीवन में भरते,
चिड़ियों का कलरव पिंजरों में ही बंदी हेै।
पहले वाली दुनिया है अब इतिहास हुई,
इस दुनिया में हर सपने पर पाबंदी है।। (4)
यह युद्ध रचाती धरती, ये जंगी फितरत,
बंदूकों के ये खेत, खून के ये मौसम।
ये धूं धूं जलते हुये नगर, ये अग्निप्रलय
ये क्रूर मिसाइल, प्रलय मचाते फटते बम।।(5)
ये कटी-फटी सी लाशें, ढेर शरीरों के,
ये टैंक हाथियों के जैसे हैं डोल रहे।
बमवर्षक, भूखे झुंड विमानों के, सिर पर,
सब खा जाने को बार बार मुँह खोल रहे।।(6)
सोने चाँदी से खून यहाँ पर सस्ता है,
है स्वार्थ सजा हर ओर दुकानों में चमचम।
सूखा, अकाल, तूफान, महामारी पग-पग,
है पोर पोर में धरती के केवल मातम।। (7)
प्रतिभा हर पल अभिशिप्त, जीतती है ताकत,
प्रतिभा के पौधे उगते हैं, मुरझाते हैं।
फूलों पर पहरा सख़्त विषैले काँटों का,
हर दिन अभाव में सपने मरते जाते हैं।।(8)
टूटी बिखरी हैं सब तस्वीरें जीवन की,
आगत के द्वारों पर हैं जंग लगे ताले।
बच्चों का बचपन कैद हुआ है पिंजरों में,
अब इंद्रधनुष भी उगते हैं काले-काले।। (9)
दुनिया केवल है शुष्क गणित का प्रश्न सदा,
वंशी की धुन अब कहाँ सुनाई पड़ती है।
ये खिंचे हुये चेहरे, ये मुट्ठी भिंची हुई,
कब अधरों पर मुस्कान दिखाई पड़ती है।। (10)
इस तरह एक था प्रश्न उठाया था जीवन ने,
भावी पीढ़ी की खातिर क्या संरक्षित है?
क्या मार्ग और क्या शैली होगी जीवन की,
क्या सपनों का संसार अभी भी जीवित हेै?(11)
जीवन ने ही इसका उत्तर दे दिया हमें,
बोला- कुदरत से प्यार करो तो अच्छा है।
ये धूप, हवा, बारिश, पौधे, ये हरियाली,
कुदरत का इनमें रंग हमेशा सच्चा है।। (12)
भावी पीढ़ी जब तक उन्नति के साथ-साथ,
कुदरत के अमृत बोल स्वयं ही बोलेगी।
सुख सागर में स्नान करेगी वो, वरना,
वो द्वार स्वयं अपने विनाश के खोलेगी।। (13)

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