परीक्षा का परिणाम नही, बल्कि परीक्षा के खत्म होने का जश्न है; ईद-उल-फितर।

एज़ाज़ क़मर, एसोसिएट एडिटर-ICN
नई दिल्ली: स्नातकोत्तर कक्षा की वार्षिक परीक्षा के दौरान कठिन प्रश्नपत्रो वाले सत्र के समाप्त होने के बाद जो राहत महसूस होती है,वही राहत और खुशी एक रोज़दार को रमज़ान रूपी इस्लाम के सालाना परीक्षा सत्र के खत्म हो जाने के बाद होती है।
अभी तो परिणाम नही आया है, फिर इतना खुश क्यो हो रहे हो? जब यह प्रश्न परीक्षार्थी छात्र से पूछा जाता है तो वह कहता है;
“कर्म कर फल की चिंता ना कर!”
मेरा काम अच्छे से परीक्षा देना था और अब परिणाम परिस्थितियो विशेषकर भाग्य पर निर्भर करता है, क्योकि मैंने परीक्षा को पीठ नही दिखाई, ना ही मैंने किसी फिल्म की कहानी उत्तर पुस्तिका मे लिखी, ना ही मैंने उत्तर पुस्तिका खाली छोड़ी,बल्कि जितना मेरे लिये संभव था उससे अधिक अच्छा उत्तर मैने लिखने का प्रयास किया।
ठीक ऐसा ही जवाब रोज़दार तब देता है, जब “ईद के जश्न” पर रोज़दार से सवाल पूछा जाता है,वह कहता है रमज़ान मे मुझे मौका मिला था,कि मैं अल्लाह का इम्तिहान दूं और ‘मुसलमान से मोमिन’ बन जाऊं, मैने अपनी तरफ से भरसक प्रयत्न किया कि मैं मुसलमान से मोमिन बनने के इंतिहान मे कामयाब हो जाऊ,लेकिन अब फैसला अल्लाह को करना है,कि वह मेरे कर्म (अम्ल) रूपी जवाब से संतुष्ट है या नही?
मैं अगले साल भी खुशी-खुशी दोबारा इंतिहान दूंगा और जीवन भर मेरा यही प्रयास होगा कि मैं अल्लाह की नज़र मे कामयाब हो जाऊं।
प्रश्न होगा कि क्या मुसलमान की परीक्षा सिर्फ एक ही महीने होती है, बाकि साल भर की छुट्टी होती है?
नही!
ऐसा बिल्कुल नही है, मुसलमान के जीवन का हर क्षण परीक्षा है,किंतु यदि हम साल भर लगातार किसी विषय की परीक्षा देते रहते है,तो उसका महत्व कम हो जाता है और “ऑनलाइन टेस्ट” जैसी साधारण परीक्षा समझी जाने लगती है।
मुसलमानो के जीवन मे एक बार हज, वर्ष मे एक बार रोज़ा और जक़ात तथा दिन मे पाँच बार नमाज़ के अतिरिक्त कोई फर्ज़ नही है,वास्तव मे इस्लाम पंथ के अंदर कर्मकांडो की बहुलता नही है,बल्कि सारा ध्यान चरित्र निर्माण पर ही दिया गया है,इसलिये सहनशीलता और त्यागशीलता की हर क्षण परीक्षा होती रहती है।
इस्लाम यह आदेश नही देता,कि रमज़ान मे किसी इंसान को गाली मत दो और रमज़ान के बाद जी-भरके गाली देना है या एक के बदले चार गाली देना,बल्कि इस्लामानुसार हर लम्हा गाली देना एक गुनाह है।
इस्लाम यह नही सिखाता, कि रमज़ान मे किसी को थप्पड़ मत मारो और रमज़ान के बाद एक के बदले चार थप्पड़ मारो और मौका मिले तो उसके हाथ-पैर तोड़ दो, बल्कि इस्लाम अंतिम सांस तक किसी को शारीरिक कष्ट ना देने का आदेश देता है।
इस्लाम कहता है,कि तीन दिन से ज़्यादा किसी से बैर-भाव मत रखो,उसे माफ कर दो, उसके गले लगा लो, सारी नफरत, गुस्से और ग़म को भुला कर प्यार-मोहब्बत बांटो,तुम यहां लड़ने और शर फैलाने नही आये हो,बल्कि तुम तो यहां अमन कायम करके प्यार-मोहब्बत का पैग़ाम देने आये हो,तुम तो यहा इंसान के साथ-साथ जानवरो की भी खिदमत करने आये हो,हरे-भरे पेड़ो को कटने से बचाने आये हो और पानी के स्रोतो की रखवाली करने आये हो।
धर्मशास्त्र की बाते सिर्फ किताबो तक ही सीमित रह जाती है,इसलिये धर्मगुरु का कर्तव्य होता है,कि वह आदर्शवादी जीवन जीकर धार्मिक शिक्षा को व्यवहारिक बनाये।
पैगंबर हजरत मुहम्मद साहब (ﷺ) ने त्यागपूर्ण जीवन जीते हुये सहनशीलता का बेमिसाल नमूना पेश किया है,आपकी यहूदी पड़ोसन आपके ऊपर रोज़ कूड़ा फेकती थी, कई दिन उसने कूड़ा नही फेका तो पैगंबर साहब को उसकी चिंता हुई और वह उसके घर उसका हाल-चाल पूछने गये, पैगंबर साहब के व्यवहार को देखकर उस महिला को बहुत पश्चाताप हुआ और वह मुसलमान बन गई।
एक बार पैगंबर साहब मक्का मे अपने घर के अंदर नमाज़ पढ़ रहे थे,तब उनके विरोधी चाचा ‘अबू लहब’ के इशारे पर ‘उक़ाबा बिन अबु मुईत’ ने एक कटे हुये जानवर का खून बहता मृत शरीर आपकी कमर के ऊपर रख दिया, फिर आपकी पांच वर्षीय बेटी ‘बीबी फातमा’ ने वह मृत शरीर आपकी कमर के ऊपर से हटाया ताकि पैगंबर साहब अपनी नमाज़ पूरी कर ले।
पैगंबर साहब के नवासे और आध्यात्मिक उत्तराधिकारी “इमाम हसन” ने राजनीति से संयास ले लिया था, क्योकि वह सत्ता के लिये खून-ख़राबा नही चाहते थे,पैगंबर साहब उनसे बहुत प्रेम करते थे और उन्होने कहा था;कि “जिसने हसन को दुख दिया उसने मुझे दुख दिया”, “मैं हसन से और हसन मुझसे है”।
इमाम हसन को उनकी किसी पत्नी ने ज़हर दे दिया, जिससे उनके जिगर (यकृत) के 72 टुकड़े होकर उल्टी (वमन) के द्वारा मुंह से बाहर निकले, इतना कष्ट सहने के बावजूद भी उन्होने अपने हत्यारे का नाम ना बताकर सहनशीलता का बेमिसाल नमूना पेश किया।
पैगंबर साहब के छोटे नवासे और उस वक्त के उनके आध्यात्मिक उत्तराधिकारी “इमाम हुसैन” को उनके परिवार और मित्रो सहित खलीफा ने इराक मे कर्बला के स्थान पर कैद कर दिया था,इमाम हुसैन के परिवार के छोटे-छोटे बच्चे 3 दिन से भूखे-प्यासे थे।
जब उन बच्चो की तकलीफ देखी ना गई तो इमाम हुसैन सैनिको के पास अपने 6 माह के बेटे “इमाम असग़र” को लेकर गये और उनसे कहा;कि “इस 6 महीने के मासूम को पानी दे दो”, तब एक सैनिक ने एक तीर 6 महीने के मासूम असग़र के गले मे मारकर उनकी हत्या कर दी,फिर भी इमाम हुसैन ने सहनशीलता नही छोड़ी और चुपचाप अपने मासूम बेटे का मृत शरीर लेकर वापस अपने ख़ेमे मे आ गये।
पैगंबर साहब ने जीवन भर कष्टो को सहन किया,फिर दूसरे, तीसरे और चौथे खलीफा की हत्या कर दी गई,उसके बाद पैगंबर साहब के दोनो उत्तराधिकारी नवासो की भी हत्या कर दी गई।
मुसलमानो का इतिहास कुर्बानियो से भरा पड़ा है, उसके बावजूद भी एक मुसलमान को मोमिन बनने के लिये सहनशीलता के साथ त्याग करना पड़ता है,रमज़ान मे सहनशीलता और त्याग की वार्षिक परीक्षा होती है,इसलिये रमज़ान के समाप्त होने पर परीक्षा की समाप्ति का जश्न मनाया जाता है।
ईद का चाँद दिखने पर चारो तरफ खुशी का वातावरण छा जाता है,छोटे-बड़े सब एक दूसरे को गले लगाकर बधाई देते है,फिर पुरुष सदस्य रात भर खरीदारी करते है और महिला सदस्य पकवान बनाने की तैयारी करती है,सुबह फजर की नमाज़ के बाद खजूर खाकर ईद मनाने की शुरुआत की जाती है।
सभी लोग नहा-धोकर, नये वस्त्र पहनकर और खुशबू लगाकर ईद की नमाज़ के लिये तैयार हो जाते है,सबसे पहले घर का जिम्मेदार इंसान “सदका-उल-फितर” (दान) अदा करता है जो कि प्रति व्यक्ति ₹50 होता है,फिर घर का बुजुर्ग सदस्य नमाज़ के लिये मार्गदर्शन देकर पूजा (इबादत) की गतिविधियो की शुरुआत करता है,निम्नलिखित “तकबीर” (मन्त्र) बुलंद आवाज़ मे पढ़ते हुये मस्जिद या नमाज़ की जगह पर नमाज़ पढ़ने के इरादे से पहुंचे:-
“अल्लाहू अकबर, अल्लाहू अकबर, अल्लाहू अकबर। ला इलाहा इल्लल्लाह वल-लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर वलील-लाहिल हम्द
मस्जिद, मैदान या वह मुक़ाम जहां पर नमाज़ पढ़ी जानी है,
वहाँ नमाज़ शुरू करने का ऐलान हो जाए और जब इमाम साहब नीयत बांध ले :-
० तो अब सबसे पहले आप नीयत करे।
० पढ़े :-
[मै नीयत करता हूँ,
दो (2) रकात नमाज़ वाजिब ईद-उल-फितर की मय ज़ाहिद छह (6) तकबीरो के,
वास्ते अल्लाह तआला के,
पीछे इस इमाम के, मुंह मेरा काबा शरीफ के तरफ, अल्लाहु अकबर।]
० फिर जैसे ही इमाम साहब बोले,
आप भी “अल्लाहु अकबर” बोलकर, (तकबीर के साथ) दोनो हाथो को कानो तक उठाकर ले जाऐ (“Hands UP !” की मुद्रा मे)।
० फिर नाफ (नाभि) के ऊपर उल्टे हाथ की हथेली रखे,फिर उस उल्टे हाथ की हथेली के ऊपर सीधे हाथ की हथेली को रखकर बाँधने की मुद्रा बना ले।
० फिर आप निम्नलिखित “सना” पढ़े :-
“सुबहानका अल्लाहुम्मा व बिहम्दीका व तबारका इस्मुका व त-आला जद्दुका वा-ला-इलाहा ग़ैरुका”।
(अर्थ :- ए अल्लाह मैं तेरी पाकी बयां करता हु और तेरी तारीफ करता हूँ और तेरा नाम बरकतवाला है, बुलंद है तेरी शान और नहीं है माबूद तेरे सिवा कोई)।
० जब इमाम साहब पहली बार कहे;
“अल्लाहु अकबर!”,
तो आप “अल्लाहु अकबर!” कहते हुये फिर से अपने दोनो हाथो को उठा कर अपने कानो की तरफ ले जाऐ (“Hands UP !” की मुद्रा मे),उसके बाद हाथ छोड़कर सीधे खड़े रहे।
० एक बार फिर (दूसरी बार) जब इमाम साहब कहे;
“अल्लाहु अकबर!”,
तो आप “अल्लाहु अकबर!” कहते हुये फिर से अपने दोनो हाथो को उठा कर अपने कानो की तरफ ले जाऐ (“Hands UP !” की मुद्रा मे),उसके बाद हाथ छोड़कर सीधे खड़े रहे।
० एक बार फिर (तीसरी बार) जब इमाम साहब कहे;
“अल्लाहु अकबर!”,
तो आप “अल्लाहु अकबर!” कहते हुये फिर से अपने दोनो हाथो को उठा कर अपने कानो की तरफ ले जाऐ (“Hands UP !” की मुद्रा मे),
अब एक बार फिर नाफ (नाभि) के ऊपर उल्टे हाथ की हथेली रखते हुये उसके ऊपर सीधे हाथ की हथेली रखकर अपने हाथ बाँध ले।
(नोट :- उल्टे हाथ की हथेली के ऊपर सीधे हाथ की हथेली को रखकर, सीधे हाथ के अंगूठे और अंतिम उंगली ‘कनिष्ठा’ से कड़ा/चूड़ी जैसी मुद्रा बनाने को “हाथ बाँधने” की मुद्रा कहते है)
० उसके बाद इमाम साहब सूराह फातिहा पढ़ेगे;
“बिस्मिल्ला-हिर्रहमा-निर्रहीम” “अल्हम्दु-लिल्लहि रब्बिल आला-मीन अर-रहमा निर रहीम, मा-लिके यौ-मिद्दीन, इय्या-का न-अबुदु व इय्या-का नस्तईन, इह-दि नस्सिरा-तल मुस्तक़ीम, सिरा-तल लज़ीना अन-अमता अलै-हिम,ग़ै-रिल मग़-दूबे अलै-हिम वलद दुअा-लीन”।
(अर्थ :- शुरू अल्लाह के नाम से जो बहुत बड़ा मेहरबान व निहायत रहम वाला है।
तमाम तारीफे उस अल्लाह ही के लिये है,जो तमाम क़ायनात का जो रहमान और रहीम है, जो सजा के दिन का मालिक है।हम तेरी ही इबादत करते है, और तुझ ही से मदद चाहते है।हमे सीधा रास्ता दिखा।उन लोगो का रास्ता जिन पर तूने इनाम फ़रमाया,उन लोगो का रास्ता नही जिन पर तेरा ग़ज़ब नाजि़ल हुआ और ना उन लोगो का जो राहे हक़ से भटके हुये है)।
० “अामीन!”
(बुलंद आवाज़ मे आप बोलिये)
० उसके बाद कोई और कुरआन शरीफ की सूराह पढ़ेगे;
(नोट :- हम यहाँ सूराह असर लिख रहे है)
बिस्मिल्ला-हिर्रहमा-निर्रहीम “वल अस्र, इन्नल इंसाना लफि खुस्र, इल्लल लज़ीना आ-मनु व अमि-लुस सालिहाति व तवासौ बिल हक्कि व-तवा-सौ बिस सब्र”।
(अर्थ :- गवाह है गुज़रता समय, कि वास्तव मे मनुष्य घाटे मे है, सिवाय उन लोगो के जो ईमान लाये और अच्छे कर्म किये और एक-दूसरे को हक़ की ताकीद की, और एक-दूसरे को धैर्य की ताकीद की)।
०उसके बाद इमाम साहब “रुकू” करेगे
(90 डिग्री का समकोण बनाते हुये इमाम साहब अपने हाथ, पैरो के घुटनो पर रख कर झुक कर खड़े रहकर खामोशी से तसबीह पड़ेगे)
अब आप “अल्लाहु अकबर!” कहते हुये अपने घुटनो के उपर अपने हाथ रखकर (90 डिग्री का कोण बनाकर) तसबीह पढ़े;
“सुबहान रब्बी अल अज़ीम”
(अर्थ:- पाक है मेरा रब अज़मत वाला)।
० इसके बाद इमाम साहब
“समीअल्लाहु लिमन हमीदा”
(अर्थ:- अल्लाह ने उसकी सुन ली जिसने उसकी तारीफ की, ऐ हमारे रब तेरे ही लिए तमाम तारीफे है)
कहते हुये रुकू से सीधे खड़े हो जायेगे।
० आप सीधे खड़े होने के बाद “रब्बना व लकल हम्द, हम्दन कसीरन मुबारकन फिही” जरुर पढ़े।
० इसके बाद इमाम साहब अल्लाहु अकबर कहते हुये सज्दे मे जायेगे,
आप भी “अल्लाहु अकबर!” कहते हुये सज्दे मे जाये,
० “सज्दे” (दोनो हाथ और पैर एक सीध मे अर्थात काबे की तरफ होना चाहिये, नाक और मत्था जमीन पर टिका होना चाहिए) मे फिर से अल्लाह की तस्बीह बयान करे;
आप तस्बीह पढ़े;
“सुबहान रब्बी अल आला”
(अर्थ :- “पाक है मेरा रब बड़ी शान वाला है”)।
० इसके बाद इमाम साहब “अल्लाहु अकबर” कहते हुये सज्दे से उठकर बैठेगे।
फिर दोबारा इमाम साहब “अल्लाहु अकबर” कहते हुये सज्दे मे जायेगे।
आप भी “अल्लाहु अकबर!” कहते हुये सज्दे से उठे फिर “अल्लाहु अकबर!” कहते हुये दोबारा सज्दे मे जाये,सज्दे मे फिर से अल्लाह की तस्बीह पढ़े;
“सुबहान रब्बी अल आला”
फिर उठकर सीधे खड़े हो जाएं।
०० (इस तरह पहली रकात मुकम्मल हो गई)
० उसके बाद इमाम साहब सूराह फातिहा पढ़ेगे;
“बिस्मिल्ला-हिर्रहमा-निर्रहीम” “अल्हम्दु-लिल्लहि रब्बिल आला-मीन अर-रहमा निर रहीम, मा-लिके यौ-मिद्दीन, इय्या-का न-अबुदु व इय्या-का नस्तईन,इह-दि नस्सिरा-तल मुस्तक़ीम, सिरा-तल लज़ीना अन-अमता अलै-हिम,ग़ै-रिल मग़-दूबे अलै-हिम वलद दुअा-लीन”।
(अर्थ :- शुरू अल्लाह के नाम से जो बहुत बड़ा मेहरबान व निहायत रहम वाला है।
तमाम तारीफे उस अल्लाह ही के लिये है,जो तमाम क़ायनात का जो रहमान और रहीम है।जो सजा के दिन का मालिक है।हम तेरी ही इबादत करते है, और तुझ ही से मदद चाहते है।हमे सीधा रास्ता दिखा।उन लोगो का रास्ता जिन पर तूने इनाम फ़रमाया,उन लोगो का रास्ता नही जिन पर तेरा ग़ज़ब नाजि़ल हुआ और ना उन लोगो का जो राहे हक़ से भटके हुये है)।
० “अामीन!”
(बुलंद आवाज़ मे आप बोलिये)
० उसके बाद कोई और कुरआन शरीफ की सूराह पढ़ेगे;
(नोट :- हम यहाँ सूराह कौसर लिख रहे है)
बिस्मिल्ला-हिर्रहमा-निर्रहीम “इन्ना आतय नाकल कौसर, फसल्लि लिरब्बिका वन्हर, न्ना शानिअका हुवल अब्तर”।
{(अर्थ :- निश्चय ही हमने तुम्हे कौसर (अमृत की नदी) प्रदान किया, अतः तुम अपने रब ही के लिए नमाज़ पढ़ो और (उसी के लिए) क़ुरबानी करो, निस्संदेह तुम्हारा जो वैरी है वही जड़कटा है)}।
० इसके बाद जब इमाम साहब कहे;
“अल्लाहु अकबर”
तो आप “अल्लाहु अकबर!” कहते हुये फिर से अपने दोनो हाथो को उठा कर अपने कानो की तरफ ले जाऐ (“Hands UP !” की मुद्रा मे),उसके बाद छोड़कर सीधे खड़े रहे।
० एक बार फिर (दूसरी बार) जब इमाम साहब कहे;
“अल्लाहु अकबर!”,
तो आप “अल्लाहु अकबर!” कहते हुये फिर से अपने दोनो हाथो को उठा कर अपने कानो की तरफ ले जाऐ (“Hands UP !” की मुद्रा मे), उसके बाद छोड़कर सीधे खड़े रहे।
० एक बार फिर (तीसरी बार) जब इमाम साहब कहे;
“अल्लाहु अकबर!”,
तो आप “अल्लाहु अकबर!” कहते हुये फिर से अपने दोनो हाथो को उठा कर अपने कानो की तरफ ले जाऐ (“Hands UP !” की मुद्रा मे),उसके बाद छोड़कर सीधे खड़े रहे।
एक बार फिर (चौथी बार) जब इमाम साहब कहेगे;
“अल्लाहु अकबर!”,
तो अब इस बार इमाम साहब “रुकू” करेगे (90 डिग्री का समकोण बनाकर इमाम साहब अपने हाथ, पैरो के घुटनो पर रख कर झुक कर खड़े रहकर खामोशी से तसबीह पड़ेगे)।
अब आप “अल्लाहु अकबर!” कहते हुये अपने घुटनो के उपर अपने हाथ रखकर (90 डिग्री का कोण बनाकर) तसबीह पढ़े;
“सुबहान रब्बी अल अज़ीम”
(अर्थ:- पाक है मेरा रब अज़मत वाला)।
० इसके बाद इमाम साहब
“समीअल्लाहु लिमन हमीदा”
(अर्थ:- अल्लाह ने उसकी सुन ली जिसने उसकी तारीफ की, ऐ हमारे रब तेरे ही लिए तमाम तारीफे है)
कहते हुये रुकू से सीधे खड़े हो जायेगे।
० आप सीधे खड़े होने के बाद “रब्बना व लकल हम्द, हम्दन कसीरन मुबारकन फिही” जरुर पढ़े।
० इसके बाद इमाम साहब अल्लाहु अकबर कहते हुये सज्दे मे जायेगे,
आप भी “अल्लाहु अकबर!” कहते हुये सज्दे मे जाये,
० “सज्दे” (दोनो हाथ और पैर एक सीध मे अर्थात काबे की तरफ होना चाहिये, नाक और मत्था जमीन पर टिका होना चाहिए) मे फिर से अल्लाह की तस्बीह बयान करे;
आप तस्बीह पढ़े;
“सुबहान रब्बी अल आला”
(अर्थ :- “पाक है मेरा रब बड़ी शान वाला है”)।
० इसके बाद इमाम साहब “अल्लाहु अकबर” कहते हुये सज्दे से उठकर बैठेगे।
फिर दोबारा इमाम साहब “अल्लाहु अकबर” कहते हुये सज्दे मे जायेगे।
आप भी “अल्लाहु अकबर!” कहते हुये सज्दे से उठे फिर “अल्लाहु अकबर!” कहते हुये दोबारा सज्दे मे जाये,सज्दे मे फिर से अल्लाह की तस्बीह पढ़े;
“सुबहान रब्बी अल आला”
फिर उठकर सीधे तशहुद मे बैठ जाये।
० तशहुद मे बैठकर (घुटनो को मोड़कर बैठिये) सबसे पहले अत्तहिय्यात पढ़िए;
“अत्ताहियातु लिल्लाहि वस्सलवातु वत्तैयिबातू अस्सलामु अलैका अय्युहन नाबिय्यु रहमतुल्लाही व बरकताहू अस्सलामु अलैना व आला इबादिल्लाहिस सालिहीन, अशहदु अल्ला इलाहा इल्ललाहू व अशहदु अन्न मुहम्मदन अब्दुहु व रसुलहू”
० इसके बाद दरूद पढ़े;
“अल्लाहुम्मा सल्ली अला मुहम्मद व आला आली मुहम्मद कमा सल्लैता अाला इब्राहिम वा आला आली इब्राहिमा इन्नका हमिदुम माजिद”।
०”अल्लाहुम्मा बारीक़ अला मुहम्मद व आला आली मुहम्मद कमा बारकता आला इब्राहिम वा आला आली इब्राहिमा इन्नका हमिदुम मजिद”।
० इसके बाद (अपने पसंद की) “दुआ-ए-मसुरा” पढ़े;
“अल्लाहुम्मा इन्नी अस’अलुका इलमन नाफिया व रिज्क़न तैय्यिबा व अमलम मुतक़ब्बला”।
(जिसका मतलब है;
(“ऐ अल्लाह मैं तुझसे इसे इल्म का सवाल करता हु जो फायदेमंद हो, ऐसे रिज्क़ का सवाल करता हु तो तय्यिब हो और ऐसे अमल का सवाल करता हु जिसे तू कबूल करे”)।
० इस तरह से दो रकात नमाज़ पढ़ कर आप सलाम फेर सकते है,
पढ़े;
 “अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह” कहकर आप सीधे और उलटे जानिब सलाम फेरे।
००० आपकी ईद-उल-फितर की नमाज़ पूरी हो गई।
ईद-उल-फितर की नमाज़ के बाद इमाम साहब ईद का खुत्बा पढ़ते है :-
० अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, ला इलाहा इल्लल लाहू वल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, वलिल्ला हिल हम्दअलहम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन, वस्सलातु वस्सलामु अला सय्यिदिना मुहम्मदिन ख़ातमिन नबिय्यीन व अला आलिही व अस हाबिही अजमईन, अम्मा बअ’द फ़क़द क़ालल लाहु तआला, क़द अफ्लहा मन तज़क्का, व ज़करस्मा रब्बिही फ़सल्ला बल तुअ’सिरूनल हयातद दुनिया, वल आखिरतु खैरुव व अब्क़ा।इन्ना हाज़ा लफ़िस सुहुफ़िल ऊला सुहुफि इबराहीमा व मूसा वक़ाला रसूलुल्लाहि सल्ललल्लाहू अलैहि वसल्लम : इन्ना लिकुल्लि क़ौमिन ईदन, वहाज़ा ईदुना बारकल लाहू लना व लकुम फ़िल क़ुर आनिल अज़ीम, व नफ़अ’ना व इय्याकुम बिहदयि सय्यिदिल मुरसलीन।
०० अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, ला इलाहा इल्लल लाहू वल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर, वलिल्ला-हिल हम्द अलहम्दु लिल्ल्लाहि नहमदुहू, व नस्तईनुहू, व नस्तग्फिरुहू, व नुअ’मिनु बिही व नतवक्कलू अलैह, व न ऊजु बिल्लाहि मिन शुरूरि अन्फुसिना, वमिन सय्यिआति आमालिना वनश हदू अल ला इलाहा इल्लल लाहू वनश हदू अन्ना मुहम्मदर रसूललल्लाह व अला आलिही व अस हाबिही व बारका वसल्लम अम्मा बअ’द ! क़ाला रसूलुलल्लाहि सल्ललल्लाहू अलैहि वसल्लम : ज़कातुल फ़ितरि तुहरतुन लिस साइम मिनल लग्वी वर रफसि व तुअ’मतुल लिल मसाकीन अव कमा क़ाला अलैहिस सलातु वस सलाम वक़ाला तआला: इन्नल लाह यअ’मुरु बिल अदलि वल इह्सानि व ईताइ ज़िल क़ुर्बा व यन्हा अनिल फहशाइ वल मुनकरि वल बग्यि यइज़ुकुम ल अल्लकुम तज़क्करून व लज़िक रूल लाहि अकबर।
नमाज़ के बाद इमाम साहब मानव जाति और विश्व कल्याण के लिये दुआ करते है,दुआ के बाद नमाज़ी आपस मे एक दूसरे से गले मिलकर ईद की मुबारकबाद देते है।
मस्जिद से बाहर आकर भिखारियो को दान दिया जाता है,उसके बाद कब्रिस्तान जाकर अपने पूर्वजो की आत्मा की शांति के लिये दुआ की जाती है,फिर किसी गरीब संबंधी या विकलांग के घर जाकर और उसे कुछ उपहार देकर अपने घर वापस आया जाता है।
घर मे सबसे पहले आकर मिठाई विशेषकर सिवईया खाई जाती है, उसके बाद बच्चो और घर की महिलाओ को उपहार दिये जाते है,फिर सामूहिक भोजन होता है,इसके बाद से रिश्तेदारो के घर आने-जाने का सिलसिला शुरू हो जाता है और यह तीन दिन तक चलता रहता है।
ईद की खुशी मनाते वक्त अपने ग़रीब, कमज़ोर और लाचार भाइयो का भी ध्यान रखे,क्योकि ध्यान रहे, कि सिर्फ परीक्षा खत्म हुई है और अभी तक परीक्षा फल नही आया है।
हो सकता है कि परीक्षक आपके व्यवहार और आचरण से खुश ना हो,इसलिये उत्तर पुस्तिका मे अच्छा जवाब देने के बावजूद वह आपको अनुत्तीर्ण (फेल) कर दे,इस दुष्परिणाम से बचने के लिये,आप हमेशा परीक्षक से डरते रहिये और सहनशीलता के साथ त्यागपूर्ण जीवन जीते रहिऐ!
एज़ाज़ क़मर (रक्षा, विदेश और राजनीतिक विश्लेषक)

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