लाचार मजदूर की पीड़ा बनाम ईद की खुशी

मोहम्मद सलीम खान, सीनियर सब एडिटर-आईसीएन ग्रुप

सहसवान/बदायूं: ज़िला बदायूँ  तथा नगर सहसवान की आदर्श जनता ने जिलाधिकारी कुमार प्रशांत वरिष्ठ पुलिस, अधीक्षक अशोक कुमार त्रिपाठी, एसपीआरए डॉ सुरेंद्र सिंह,उप जिलाधिकारी लाल बहादुर तथा सीओ सहसवान रामकरन व कोतवाल हरेंद्र सिंह के कुशल नेतृत्व में तथा पुलिस प्रशासन के अथक प्रयासों के कारण लॉक डाउन का पूरी तरह से पालन किया। नगर की आदर्श जनता ने पवित्र रमजान महीने के चलते भी लॉक डाउन को कामयाब करने में नगर सहसवान के प्रशासन का पूरी तरह से सहयोग किया ।बदायूं जिला करोना मुक्त हो जाने के बाद जिलाधिकारी बदायूं कुमार प्रशांत ने बाजार की कुछ दुकानों को कुछ शर्तों के साथ खोलने के आदेश दिए लगभग 2 महीने के लंबे अंतराल के बाद जब बाजार की कुछ दुकानें खोलने के आदेश जारी हुए नगर की जनता में खुशी की लहर दौड़ गई। हालांकि बाजार दोपहर 2:00 बजे तक ही खुलने के आदेश थे मगर फिर भी 2 महीने के बाद बाजार से रूठी हुई रौनक एक बार फिर किसी हद तक वापस आ गई। लॉक डाउन की अवधि के दौरान बाजार में चारों ओर सन्नाटा ही सन्नाटा पसरा रहता था और ऐसा प्रतीत होता था कि शायद यहां कभी दुकानें खुलती ही नहीं थी। लोग खुशी खुशी अपने और अपने बच्चों के लिए सामान लेने के लिए आते ही नहीं थे। कोरोना वायरस के प्रकोप ने आम जनता के जीवन को इतना भयभीत कर दिया है कि अब वह सोचने लगा है कि क्या हमारे जीवन में अब वह फिर से खुशियां लौट कर आएंगी भी या नहीं। बाज़ार का सर्वेक्षण करने के बाद इस बात का एहसास हुआ कि लोग बाजार में  सोशल डिस्टेंसिंग का पालन पूरी तरह से करते हुए ईद के त्यौहार के लिए आवश्यक खाद्य सामग्री व अपने बच्चों के लिए कपड़े व जूते खरीदने की औपचारिकता पूरी कर रहे थे । खरीदारी करते वक्त जो हर्षोल्लास खुशी का भाव उनके चेहरे पर हुआ करता था वह बिल्कुल नहीं था। ईद मुसलमानों का सबसे प्रसिद्ध व महत्वपूर्ण त्यौहार है। पूरे 1 महीने के रोजे रखने के बाद व कठिन तपस्या तथा इबादत करने के बाद अल्लाह की तरफ से रोजेदारों के लिए ईद एक खूबसूरत तोहफा है। 15 रोजों के बाद बाजार बच्चों बुजुर्गों नव युवकों तथा महिलाओं की भीड़ से गुले गुलजार होता था। बच्चे खुशी खुशी अपने माता-पिता के साथ ईद की खरीदारी के लिए शाम को बाजार जाते थे और अपने माता-पिता से कुछ राज़ी से तथा कुछ जिद कर के अपने लिए जूते चप्पल नए कपड़े मौजे बनियान टाई बेल्ट इत्र इत्यादि की खरीदारी करते थे। ईद के त्यौहार का यदि कोई सबसे आकर्षक दिन है तो वह ईद से 1 दिन पहले का दिन जिसको हम चांद रात के नाम से जानते हैं। ज्यादातर लोग बाहर शहरों से अपने गांव अपने वतन ईद का त्यौहार मनाने के लिए चांद रात को ही अपना सफर तय करते हैं और ज्यादातर नौजवान तथा बच्चे भी चांद रात के इंतजार में ईद की खरीदारी नहीं करते वे पूरे महीने चांद रात का इंतजार करते हैं और इसी रात अधिकतर लोग खुशी-खुशी बाजार जा कर देर रात तक ईद की खरीदारी करते हैं मगर कोरोना नामक मनहूस महामारी ने तमाम देशवासियों की खुशियों पर बिजली गिरा दी। इस महामारी के कारण जहां एक और पूरा देश परेशान है वहीं दूसरी ओर इस कोरोना महामारी के प्रकोप से त्यौहार की भी सारी खुशियां जमीन दोज़ (दफ़न) हो गई। कोरोना महामारी के कारण पूरे भारत देश के लोगों के व्यापार ठप्प हो गए। एक मिडल क्लास फैमिली के मुखिया को दो वक्त की रोटी के लिए भी अब संघर्ष करना पड़ रहा है। मजदूरों का क्या हाल है उनकी दुर्दशा का वर्णन करने के लिए मेरे पास यकीनन शब्द नहीं है। अपने घर अपने वतन पहुंचने के लिए पदयात्रा पर निकलने को मजबूर उन मजदूरों की वास्तविक स्थिति से आप सभी लोग भली भांति वाकिफ है।इंसानियत को झकझोरने वाली जिस तरह मजदूरों की पदयात्रा की दर्दनाक और दिल दहला देने वाली वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है उसे देखकर रूह कांप जाती है। संकट की स्थिति में जहां एक और हमारा भाई अपने वतन जाने के लिए 800 से लेकर 1500 किलोमीटर तक का असंभव सफर सर पर पोटली और कंधों पर  बच्चे बिठाकर पैदल तय करने के लिए निकल पड़ा है। उन मजदूरों की डबडबाती हुई आंखें और मायूसी के गर्त में डूबे हुए उनके चेहरे हमसे और हमारे नाकारा सिस्टम से यह पूछ रहे है कि आखिर हमारा कसूर क्या है? इंसान और जानवर में शायद यही एक अंतर है और वह अंतर यह के इंसान को इंसान और जानवर दोनों की तकलीफ का एहसास होता है ओर जानवर को ना तो जानवर की और ना ही इंसान की तकलीफ का एहसास  होता और यदि जब हम इंसानों में वह फर्क खत्म हो जाएगा तो हम भी अपने आपको इंसान कहलाने के हकदार नहीं होंगे। दिनांक  25.5.2020 दिन पीर को ईद का त्यौहार मनाया जाएगा।बच्चे बूढ़े और जवान सभी लोगों की जिंदगी में यह पहली ईद है जिसकी खुशी किसी भी भारतवासी को नहीं है और हो भी कैसे जहां एक और हमारे देश का किसान मजदूर भूख से तड़प रहा है और गर्मी की इस चिलचिलाती हुई धूप में नंगे पैर लड़खड़ाता हुआ अपने घर की ओर जा रहा है उनकी इस दुर्दशा को देखकर शायद ही किसी व्यक्ति को ईद की खुशी हो । मेरे महान देश भारत के नागरिक कितने महान हैं कि वह संकट की हर स्थिति में अपने देशवासियों के साथ बिना उसका धर्म जाति तथा संप्रदाय पूछें एक दूसरे की मदद करने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं और इसकी जिंदा मिसाल लॉक डाउन की अवधि के दौरान देखने को मिली। जहां एक और दिल्ली व अन्य शहरों से अपने घर जाने के लिए जो मजदूर गर्मी के इस मौसम में पैदल ही अपने घरों के लिए निकल गए हैं उन मजदूरों के लिए खाने-पीने जूता चप्पल तथा आर्थिक रूप से मदद करने के लिए भी मेरे इस महान देश के महान लोग हिंदू मुस्लिम सिख इसाई आपस में मिलकर एक दूसरे की मदद कर रहे हैं। यही वजह है  की अनेकता में एकता  मेरे इस महान देश भारत का आभूषण है। निसंदेह हमारे देश भारत पर कुछ परेशानी के बादल तो मंडरा सकते हैं मगर दुनिया की कोई भी ताकत इस देश का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती और ना ही इस देश के लोगों को एक दूसरे से जुदा नहीं कर सकती। कोरोना नामक दानव रूपी  महामारी से भी यूरोप व अन्य देशों के मुकाबले हमारे देश भारत के नागरिक इस महामारी से कहीं अधिक वीरता से मुकाबला कर रहे हैं। लेख के अंत में व्यक्तिगत रूप से मेरी तथा तमाम देशवासियों की ईद की तमाम खुशियां देश पर तथा  उन मजबूर और लाचार मजदूरों पर कुर्बान जो अपने वतन  जाने के लिए  पदयात्रा कर रहे हैं और उनकी इस भयानक स्थिति को देखकर शासन व प्रशासन में बैठे हुए उच्च अधिकारियों को चैन की नींद आ रही है तो हमेंं समझ लेना चाहिए कि हमारा जमीर (अंतरात्मा) किस स्तर पर पहुंच गई है। हमारे प्यारे नबी हजरत मोहम्मद मुस्तफा  सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम  ने इरशाद फरमाया  ईमान की  3 स्टेज है  नंबर 1 यदि किसी व्यक्ति या समाज पर  जुल्म हो रहा हो  तो हम उसको अपने हाथों से रोके हैं  और अगर अपने हाथों से नहीं रोक सकते तो अपनी जुबान से उसे रोकें और यदि  हमारी यह  भी हैसियत ना हो  कि हम  जुबान से कुछ कह सकें  तो सबसे कमजोर  ईमान की अलामत (स्थिति) यह है  कि हम उसे  अपने दिल में बुरा  समझे अब हम अपना अंदाजा लगा लें कि हमारा ईमान किस स्टेज का है।

यह लेखक के अपने व्यक्तिगत विचार हैं  यदि किसी शब्द से मेरे किसी सम्मानित पाठक को कोई कष्ट पहुंचा हो तो उसके लिए में, मैं क्षमा चाहता हूं।

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