तरुण प्रकाश श्रीवास्तव, सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप ‘ज़िंदगी’ एक बहुत ही खूबसूरत अहसास है और शायद इंसान की सबसे बड़ी ज़रुरत भी। सारी दुनिया इसी ‘ज़िंदगी’ नाम की एक शय के बदौलत ही चल रही है। सच कहा जाये तो इस ‘दुनिया’ रूपी गाड़ी में ‘ज़िंदगी’ नाम का ही ईंधन का प्रयोग होता है। और इसकी खूबी भी देखिये, हज़ारों शिकायतों के बावजूद भी हर इंसान अपने दोनों हाथों से अपनी ज़िंदगी को कस कर पकड़े हुये है कि वक़्त के बहाव में वह उसके हाथों से कहीं छूट न…
Read MoreDay: May 13, 2020
चेहरे पे आरज़ू के अजब रंगो नूर था
By: Suhail Kakorvi सुहेल काकोरवी की ग़ज़ल (ज़मीने ग़ालिब पर) चेहरे पे आरज़ू के अजब रंगो नूर था इख़फ़ा का आज वादए हुस्ने ज़हूर था Upon the face of desire, there were unique colors and light The Latent Divine intends to expose what is excessively bright कुछ भी कहे वो इसलिए उलझन में ही रहा वो चाहता नहीं था मगर मुझसे दूर था Let her say anything bit different is the reality Remains away from me when does not wish she उसके करम से दीद हुई मेरी कामयाब हिम्मत शिकन…
Read Moreसमय का गीत: 5
तरुण प्रकाश श्रीवास्तव, सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप मैं समय के सिंधु तट पर आ खड़ा हूँ, पढ़ रहा हूँ रेत पर, मिटते मिटाते लेख, जो बाँचे समय ने। शेक्सपीयर, जॉन मिल्टन, कीट्स, शैली बोलते हैं। आज भी वुड्सवर्थ अपनी पुस्तकें खुद खोलते हैं।। गोर्की की “माँ” अभी भी जागती है पुस्तकों में। गू़ँजते हैं शेर ग़ालिब के अभी तक महफ़िलों में।। ‘सूरसागर’ सूर गाते, गूँजते कबिरा के ‘निर्गुन’। और मीरा के पदों में कृष्ण वंशी की सहज धुन।। सौंपते ‘मानस’ जगत को,भक्त तुलसी राम के हैं। छंद तो…
Read Moreअल्लाह का इस्लाम और मुल्लाह का इस्लाम के बीच मे रस्साकशी
एज़ाज़ क़मर महान भूमि भारत का चुनाव अल्लाह ने प्रथम मनुष्य के निवास स्थान के लिये किया,फिर अपने प्रथम पैगंबर हज़रत आदम (स्वयंभू मनु) को जन्नत से पृथ्वी के इस स्थान पर उतारा। अल्लाह ने खेती करने के लिये बाबा आदम को एक बैल भी दिया,फिर बैल के अधिकार भी तय कर दिये,ताकि उसे कष्ट ना दिया जाये,बल्कि बैल को खाने-पीने और आराम करने का स्थान और समय दिया जाये। बाबा आदम अपने साथ जन्नत से कुछ पत्तियां लाये थे,उसे उन्होने भारत भूमि पर बो दिया और जिससे इत्र जैसे…
Read Moreकुछ ऐसे ही चलते चलते वो रुक गए होंगे
By : श्रेय शेखर कुछ ऐसे ही चलते चलते वो रुक गए होंगे पैदल चल कर यक़ीनन थक गए होंगे,, कल फिर से कुछ दूर निकल जाएंगे ये सोच कर रात में ठहर गए होंगे।। कोई दहलीज़ नहीं लांघी थी कोई घर द्वार नहीं भूला था,, वो माँ जो गाँव में रह रही है उसके बाँहों में आख़िरी बार झूला था।। आज भी सब याद करते होंगे उसकी ही बात करते होंगे,, अभी कल ही तो बात हुई होगी यह सोच कर विलाप करते होंगे।।
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