डीयर महतारी….

आकृति विज्ञा ‘अर्पण’, असिस्टेंट ब्यूरो चीफ-ICN U.P.

गोरखपुर: असही डांट के सुबेरे जगाती रहो ,दिन बन जाता है मेरा। असल में महतारी शब्द जादुई शब्द है ये प्लेसेंटल रिलेशन बाकमाल है ,बिना कहे बूझने वाली जादूगर कहो या फिर बड़ा से बड़ा झूठ ट्रेस करने वाली डिटेक्टर।
हम तो भैया हरदम असही लड़ते भिड़ते मनाते मनवाते रिसियाते कोहाते मोहाते मनुआते देखना चाहते हैं।
कब्बो कब्बो हम गजबे कुंभकर्ण अवस्था में जाते हैं और इस अप्रतिम दृश्य को बस महतारिये झेल सकती हैं ,बाकि कौनो तकिया पर भउरा रख देगा।
अनकंडीशनल रिश्ता है माई बाऊजी का ,जहाँ वफादारी ,बेवफाई ,रिटर्न गिफ्ट अस बात ही नहीं।
पिरितिया खिसियाई काहेंकि झूमका के बदले झूमका न दिये ,आशिक खिसियायेगा काहेंकि टेम पर फोन न उठा ,समधी खिसियाते हैं काहें कि उनका स्टैंडर्ड नहीं मेंटेन किये ,बहू खिसियाती है कि जोर जोर से बोलते हैं ,बीबी खिसियाती है कि देर से आये ,हसबैंड जी खिसियाते हैं कि सामान नहीं सही जगह रखा लेकिन माई बाऊजी का खिसियाना! का कहीं यार बस इसलिये खिसियाना कि टाइम से खैका नहीं खाये ,दुबरा रहे हो , आँख के किनारे करिक्का गोला हो रहा है।
एक दिन तो तुम्हरी है नहीं ,तुम्हरी तो फुलटाइम जाब रहती है जबतक समधन न बन जाओ तब तक सिरजती हो सबकुछ ।
उसके बाद नातीयो पोता का टिंशन तुम लेती हो और हाँ खाली तुम्ही नहीं बाऊओजी ओतने लेते हैं।
असल में तू आ बाऊजी अर्थात् पापा दूनो हमरे हीरो हो जिनकी नाक में हम दम किये रहते हैं लेकिन कौनो शिकाइत नहीं और शिकाइत है भी तो बस इतना कि सुबह उट्ठा करो।
मानते हैं कि दुनिया का कुल रिश्ता का आपन महत्व है लेकिन जो भी हमरा होने का क्रेडिट बस तुम्हे है देवी काहें कि जब जमाने को बेटा चाहिये था तो हम तीसरी बेटी के रूप में तुम्हरे पुत्रीप्रधान जननी होने की पुष्टि कर रहे थे और देवी आपने धैर्य नहीं खोया ।हमरे पापा ने भ्रूणहत्या का खयाल भी नहीं लाये जबकि उस समय यह नयी परंपरा बहुत आस पास थी ।हमरे बाबा दादी ने ताने नहीं दिये ,हमरी फूआ ने मुँह नहीं बिचकाया ,हमरी नाना मिठाई लेकर पहुँचे ,हमरी नानी ननिऔरे बईठ के सोहर गा रही थी।
सबका कारण बस इतना था कि महतारी के चेहरे पर तनिको शिकन नहीं था ,इसके बावजूद कि डाक्टर ने खतरा बता दिया था ।जून का महीना ,तबीयत ख़ूब खराब लेकिन जन्म देने का धैर्य ।
बिटिया होने की खबर से तनिको मातम नहीं था घर में।दू महीना पहले चाची को भी बेटी ।
घर में लगातार बेटियां ही बेटिया और हमरे बाबा मस्त थे, अजिया ईया मस्त थी ,आजा बाबा खुश थे ,हमरी दादी खुश थीं बुआ सोंठ पीस रही थीं।
का हे कि सबकुछ लिखा कहा नहीं जा सकता लेकिन इतना तो है कि जो भी होऊँ उसमें सर्वश्रेष्ठ योगदान महतारी का ही है ।
चाहे बेलन झाड़ू झापड़ से सेवा हो चाहे पिछड़े गांव के मध्यम वर्ग की लड़की को खुद्दारी का चैप्टर पढ़ाकर शहर के बीचोबीच खड़ा होने का हौसला देने ,चाहे पुलिया छाप आशिकों को पीटने पर ऐप्रिशियेट करना ,चाहे क्लास बंक करके समाज के वंचित तबकों के विजिट पर पकड़े जाने पर न डांटना सब महतारिये की कृपा है।
कभी कभी मन असहीं बौराता है लगता है कि मम्मी मुझे नहीं समझतीं लेकिन इसका उत्तर बस इतना है
  “जब खुद माई बनोगी तब समझ में आयेगा।”
ख़ैर हैप्पी मदर्स डे, एवरी दिन इज महतारी’ज दिन।
और बतियन की भाषा अनलिमिटेड हे एसे आज के लिये बस एतना ही।
       चलो एमे कहना क्या है फिर भी लभ यू महतारी।
                               तुम्हरी सूतक्कड़ बेटी
                    …..      अर्पण (आकृति विज्ञा)

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