महाराणा प्रताप : एक अजेय योद्धा

सुरेश ठाकुर
(महाराणा प्रताप की जयंती पर विशेष) 
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बरेली: महाराणा की उपाधि और ‘क्षत्रिय शिरोमणि’ के सम्मान से अलंकृत प्रताप सिंह जिन्हें हम सब महाराणा प्रताप के नाम से जानते हैं, मेवाड़ के शासक उदय सिंह के ज्येष्ठ पुत्र थे |यद्यपि महाराणा प्रताप के जन्म के वर्ष और तिथि को लेकर इतिहासकार एकमत नहीं हैं किंतु उनसे जुड़ी घटनाओं के तार्किक विश्लेषण के उपरांत 9 मई 1549 को महाराणा प्रताप के जन्म की तिथि और वर्ष के रुप में सर्वाधिक समर्थन मिला |
राणा सांगा की मृत्यु के उपरांत उनके पुत्र उदय सिंह मेवाड़ की गद्दी पर आसीन थे | 28 फरवरी 1572 को उदय सिंह की मृत्यु के उपरांत राव चूड़ा की पहल पर प्रताप सिंह का राज्याभिषेक हुआ | प्रताप सिंह के सत्ता संभालने के समय मेवाड़ की स्थिति अच्छी नहीं थी | चित्तोड़ सहित मेवाड़ के एक बड़े हिस्से पर अकबर का पहले से ही अधिकार था और शेष मेवाड़ को भी वह अपने आधीन कर लेने की महत्वाकांक्षा रखता था | अनेक राजाओं ने तो युद्ध के भय और विलासिता के जीवन के निमित्त स्वेच्छा से ही अकबर की आधीनता स्वीकार कर ली थी |
महाराणा प्रताप ने अपने मंत्रिमण्डल कर पुनर्गठन कर मेवाड़ को आर्थिक और सैन्य दृष्टि से सुदृढ़ बनाने के लिए अनेक सुपरिणामप्रद योजनायें आरम्भ कीं |अकबर तक जब उनकी राज नीति और योजनाओं की जानकारी पहुँची तो वह समझ गया कि महाराणा एक दूरदर्शी और सूझ बूझ वाले शासक हैं |
अकबर की निगाह में महाराणा प्रताप के व्यक्तित्व की कुछ ऐसी प्रभावी छवि बन चुकी थी कि भारी भरकम सेना और तोपखाने के होते हुए भी वह युद्ध के माध्यम से मेवाड़ को हासिल करने का यकायक साहस नहीं जुटा पा रहा था | यही कारण था कि बार बार अस्वीकार कर देने के बाद भी उसने धैर्य न खोते हुए महाराणा प्रताप के पास संधि के चार चार प्रस्ताव भेजे | ये चारों संधि प्रस्ताव सितम्बर 1572 से दिसम्बर 1573 के मध्य जलाल खाँ कोरची, मान सिंह, मान सिंह के पिता भगवान दास और टोडरमल के माध्यम से भेजे गए थे | परन्तु महाराणा प्रताप ने सभी प्रस्ताव अस्वीकार कर लौटा दिए | उन्होंने अकबर को स्पष्ट संदेश भिजवा दिया कि मेवाड़ को अकबर की आधीनता किसी भी कीमत पर स्वीकार्य नहीं है |
महाराणा प्रताप जानते थे कि उन्होंने अकबर के पास अब युद्ध के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प शेष नहीं छोड़ा है अतः वह किसी भी समय आक्रमण कर सकता है | इधर महाराणा प्रताप ने भी अपनी तैयारियाँ शुरू कर दीं | पड़ोसी राजाओं को संगठित किया, वनवासी भीलों को उनके अनुरोध पर युद्ध प्रशिक्षण देना आरम्भ कर दिया | लोहारों ने बरची, भाला, कवच और तलवारें ढालनी शुरू कर दीं |
3 अप्रैल 1576 को मान सिंह के नेतृत्व में मुग़ल सेना ने मेवाड- पर आक्रमण कर दिया | महाराणा प्रताप ने एक योजना के तहत मोर्चावंदी के लिए हल्दी घाटी को चुना | भयंकर युद्ध हुआ किंतु राजपूतों की वीरता के कारण अकबर को अपेक्षित परिणाम नहीं मिला | मात्र ‘गौगूंदा’ पर अधिकार करके उसे संतुष्ट होना पड़ा | किंतु इस संतुष्टि की उम्र भी मात्र 2-3 माह ही रही | जुलाई 1576 में ही महाराणा प्रताप ने मुगल सेना को खदेड़ कर ‘गौगूंदा’ पर पुनः अधिकार कर लिया |
हल्दी घाटी का ये वही प्रसिद्ध युद्ध था जिसमें महाराण प्रताप के घोड़े ‘चेतक’ की बहादुरी और सूझ बूझ के अनेक किस्से हमें सुनने को मिलते हैं | ये ‘चेतक’ ही था जो घायल महाराणा प्रताप को बड़ी हुशियारी के साथ युद्ध क्षेत्र से बचाकर दूर ले जाता है और उनकी प्राण रक्षा करता है | जीता हुआ ‘गौगूंदा’ हाथ से निकल जाने पर अकबर बुरी तरह बौखला जाता है और अक्तूबर 1576 में स्वयं मुगल सेना का नेतृत्व करते हुए पूरी शक्ति के साथ मेवाड़ पर आक्रमण कर देता है | महराणा प्रताप इस बार युद्ध नीति में बदलाव करते हैं और मुगल सेना पर छापामार युद्ध की तर्ज पर आक्रमण करते हैं | अकबर किसी भी कीमत पर महाराणा को पकड़ना चाहता है | इसके लिए वो अपनी सारी शक्ति झोंक देता है | किंतु महाराणा उसके हाथ नहीं लगते हैं | ‘गौगूंदा’ और ‘उदयपुर’ जीत चुका अकबर सात माह के बाद ‘फतेहपुर सीकरी’ वापस लौट जाता है | अकबर के वापस लौटते ही महाराणा प्रताप पुनः सक्रिय हो जाते हैं और ‘गौगूंदा’ और ‘उदयपुर’ को पुनः अपने अधिकार में ले लेते हैं | यही वो समय होता है जब महाराणा को जंगलों की ख़ाक छाननी पड़ती है और घास की रोटियां खानी पड़ती हैं |
अक्तूबर 1577 में शाहवाज़ खान के नेतृत्व में एक बार पुनः मुगल सेना का मेवाड़ पर आक्रमण हुआ | अकबर के प्रति अपनी वफादारी दिखाने की होड़ में शहवाज़ खान नें महाराणा प्रताप को मेवाड़ और चित्तोड़ के कोने कोने में खोज डाला | प्रजा पर भी अमानवीयता की पराकाष्ठा तक अत्याचार किए | किंतु महाराणा फिर भी उसके हाथ नहीं लगे | तीन माह तक खोजने के बाद शाहवाज़ वापस चला गया | उसके जाते ही महराणा प्रताप नें उसके जीते हुए क्षेत्र हमीरसरा, कुम्भलगढ़, जावर, छप्पन, बागड़ और चावड़ पुनः अपने अधिकार में ले लिए |
महाराणा प्रताप को पकड़ने की प्रबल आकांक्षा को देखते हुए अकबर ने शाहवाज़ खान को दो और मौके दिए दिसम्बर 1578 और नवम्बर 1579 | किंतु दोनों ही बार शाहवाज़ खान को मुँह की ही खानी पड़ी | इसके पश्चात अकबर की ओर से मेवाड़ जीतने और महाराणा को पकड़ने का एक और विफल प्रयास हुआ जब मुगल सेना ने दिसम्बर 1584 में जगन्नाथ कछवाहा के नेतृत्व में मेवाड़ पर आक्रमण किया | इस आक्रमण का परिणाम मेवाड़ और चित्तोड़ के कुछ इलाके मुगल सेना के अधिकार में चले जाने से अधिक कुछ नहीं निकला | किंतु एक वर्ष के अंदर ही महाराणा प्रताप नें अपने खोये हुए इलाके उदयपुर, मोही, गौगूंदा, माण्डल, पिण्डवाड़ा, बाँसवाड़ा और डूँगरपुर वापस ले लिए |
अकबर जान चुका था कि महाराणा से पार पाना उसके बस की बात नहीं है अतः उसने मेवाड़ की ओर से अपना ध्यान हटा लेने में ही भलाई समझी | मेवाड़ एक बार पुनः महराणा प्रताप के कुशल नेतृत्व में उन्नति और खुशहाली के सोपान चढ़ना आरम्भ कर देता है |
भारत के गौरवशाली इतिहास के इस महानायक का 15 जनवरी 1597 को मात्र 48 वर्ष की अवस्था में देहावसान हो जाता है | किंतु  इस महायोद्धा की वीरता, साहस और समर्पण के लिए इतिहास ने इन्हें स्वर्ण अक्षरों में स्थान दिया है | महाराणा प्रताप चाहते तो अन्य राजाओं की तरह वे अकबर की आधीनता स्वीकार कर के विलासिता का जीवन बिता सकते थे किंतु वे स्वतंत्रता का मूल्य समझते थे | इसलिए उन्होंने अपने और अपनी प्रजा के स्वाभिमान के साथ कोई समझौता नहीं किया | ऐसे युग पुरुष को उनकी जयंती के अवसर पर शत्-शत् नमन |

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