शिक्षा व समाज के वास्तविक शिल्पकार थे डॉ. राधाकृष्णनन

राणा अवधूत कुमार, ब्यूरो चीफ-ICN बिहार 

पटना। पांच जनवरी को लखनऊ के एक होटल में आयोजित समारोह में आईसीएन के मंच पर देश के छह महान शख्सियतों को सम्मानित किया गया। समारोह देश की इन छह वैश्विक व्यक्तित्व को समर्पित रहा। जिसमें दूसरा नाम देश के पहले उपराष्ट्रपति व दूसरे राष्ट्रपति रहे डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का था। पेशे से शिक्षक व बाद में राष्ट्रपति का पद संभालने वाले डॉ. राधाकृष्णनन को आईसीएन मीडिया ग्रुप के मुख्य सलाहकार प्रो. केवी नागराज ने श्रद्धांजलि दी। एक शिक्षक होने के बावजूद राष्ट्र के प्रति उनके समर्पण व राष्ट्रपति के रूप में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की उपलब्धियों को प्रो. केवी नागराज ने बङे सरल-सहज शब्दों में व्यक्त किया।वस्तुत: शिक्षक समाज के ऐसे शिल्पकार होते हैं जो बिना किसी मोह के समाज को तराशते हैं  शिक्षकों का काम सिर्फ किताबी ज्ञान देना ही नहीं बल्कि सामाजिक परिस्थितियों से छात्रों को परिचित कराना होता है। शिक्षकों की महत्ता को सही स्थान दिलाने के लिए देश में राधाकृष्णन ने पुरजोर कोशिशें की। जो खुद एक बेहतरीन शिक्षक थे। इस अहम योगदान को देखकर पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन पांच सितंबर को देश में शिक्षक दिवस के रूप में मनायी जाती है। पांच सितंबर 1888 को चेन्नई से 200 किलोमीटर दूर एक कस्बे तिरुताणी में उनका जन्म हुआ था। पिता का नाम सर्वपल्ली वी. रामास्वामी व माता का नाम सीता झा था। वे एक  गरीब ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे। राधाकृष्णन पिता की दूसरी संतान थे।चार भाई व एक छोटी बहन थी। छह बहन-भाईयों व माता-पिता के आठ सदस्यीय परिवार की आय अत्यंत कम थी।  सीमित आय में राधाकृष्णन ने साबित किया कि प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती। उन्होंने  महान शिक्षाविद के रूप में ख्याति प्राप्त कर देश के सर्वोच्च राष्ट्रपति पद को सुशोभित किया।स्वतंत्र भारत के पहले उपराष्ट्रपति व दूसरे राष्ट्रपति डॉ. एस राधाकृष्णन को बचपन में ही कई  कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। शुरुआती जीवन तिरूतनी-तिरुपति जैसे धार्मिक स्थलों पर  बीता। पिता धार्मिक विचारों वाले इंसान थे। फिर भी राधाकृष्णन को पढ़ने के लिए क्रिश्चियन मिशनरी संस्था लुथर्न मिशन स्कूल, तिरुपति में भेजा। बाद में वे वेल्लूर व मद्रास कॉलेजों में शिक्षा प्राप्त किए। शुरू से एक मेधावी छात्र थे। विद्यार्थी जीवन में उन्होंने बाइबल के महत्वपूर्ण अंश याद किए थे। जिसके लिए उन्हें विशिष्ट योग्यता का सम्मान दिया गया था। वीर सावरकर व विवेकानंद के आदर्शों का गहन अध्ययन किया था। 1902 में मैट्रिक की परीक्षा अच्छे अंकों में उत्तीर्ण करने पर छात्रवृत्ति मिली। कला संकाय में स्नातक परीक्षा में प्रथम आए।दर्शनशास्त्र में स्नातकोत्तर किया व जल्द मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र के सहायक प्राध्यापक नियुक्त हुए। डॉ.राधाकृष्णन ने अपने लेखों-भाषणों से विश्व को भारतीय दर्शनशास्त्र से परिचित कराया। उस समय मद्रास के ब्राह्मण परिवारों में कम उम्र में शादी होती थी। 1903 में 16 वर्ष की आयु में उनका विवाह सिवाकामू से हुआ। उस समय पत्नी की आयु मात्र 10 वर्ष थी।

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारतीय संस्कृति के ज्ञानी, एक महान शिक्षाविद, महान दार्शनिक, महान वक्ता होने के साथ विज्ञानी हिन्दू विचारक थे। उन्होंने जीवन के 40 वर्ष एक शिक्षक के रूप में बिताए। वह एक आदर्श शिक्षक थे। उनके पुत्र डॉ. एस गोपाल ने 1989 में उनकी जीवनी का प्रकाशन किया। उनके पुत्र ने एक सम्मेलन में माना था कि पिता की व्यक्तिगत ज़िदंगी के विषय में लिखना बड़ी चुनौती थी। लेकिन डॉ. एस. गोपाल 1952 में न्यूयार्क में लाइब्रेरी ऑफ़ लिविंग फिलासफर्स के नाम से एक श्रृंखला पेश की। जिसमें राधाकृष्णन के बारे में आधिकारिक रूप से लिखा गया था। 1940 तक डॉ. राधाकृष्णन अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुके थे। राधाकृष्णन की योग्यता को देख उन्हें संविधान निर्मात्री सभा का सदस्य बनाया गया था। देश को स्वतंत्रता मिली तो जवाहरलाल नेहरू ने उनसे आग्रह किया कि विशिष्ट राजदूत के रूप में सोवियत संघ रूस के साथ राजनयिक कार्यों को संपन्न करें। 1952 तक वह राजनैयिक रहे। इसके बाद उन्हें उपराष्ट्रपति के पद पर नियुक्त किया गया।

संसद के सभी सदस्यों ने उनके कार्य व्यवहार के लिए काफी सराहना की। 1962 में डॉ. राजेंद्र प्रसाद का कार्यकाल खत्म होने के बाद राधाकृष्णन ने राष्ट्रपति का पद संभाला। राजेंद्र प्रसाद की तुलना में इनका कार्यकाल चुनौतियों भरा था। एक ओर भारत के चीन व पाकिस्तान के साथ युद्ध हुए। जिसमें चीन के साथ भारत को हार का सामना करना पड़ा। तो दो प्रधानमंत्रियों नेहरू व शास्त्री जी का देहांत इन्हीं के कार्यकाल में हुआ था। 1967 के गणतंत्र दिवस पर राधाकृष्णन ने देश को संबोधित करते हुए कहा कि वह किसी सत्र के लिए राष्ट्रपति नहीं बनना चाहेंगे। बाद में कांग्रेस नेताओं ने उन्हें मनाने की कोशिशें की लेकिन उन्होंने घोषणा पर अमल किया।

शिक्षा व राजनीति में उत्कृष्ट योगदान देने के लिए भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने महान दार्शनिक शिक्षाविद व लेखक डॉ. राधाकृष्णन को देश का सर्वोच्चअलंकरण भारत रत्न प्रदान किया। राधाकृष्णन के मरणोपरांत उन्हें मार्च 1975 में अमेरिकी सरकार द्वारा टेम्पलटन पुरस्कार से सम्मानित किया गया। जो कि धर्म के क्षेत्र में उत्थान के लिए मिलता है। इसे लेने वाले वे प्रथम गैर-ईसाई सम्प्रदाय के व्यक्ति थे।

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन सामाजिक बुराइयों को हटाने के लिए शिक्षा को ही कारगर हथियार मानते थे। शिक्षा को मानव व समाज का सबसे बड़ा आधार मानने वाले राधाकृष्णन का शैक्षिक जगत में अविस्मरणीय व अतुलनीय योगदान रहा है। जीवन के उत्तरार्द्ध में उच्च पदों पर रहने के दौरान शैक्षिक क्षेत्र में उनका योगदान सदैव बना रहा। 17 अप्रैल 1975 को राधाकृष्णन ने लंबी बीमारी के बाद अपना देह त्याग दिया। लेकिन शिक्षा के क्षेत्र में उनके कार्यों की वजह से आज भी उन्हें एक आदर्श शिक्षक के रूप में याद किया जाता है।

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