अपने-अपने दांव

17वीं लोकसभा के लिए हो रहे चुनाव की कमी या खासियत यह है कि इस बार किसी की लहर नहीं है। जनता का रुझान भी स्पष्ट नहीं है। किसी भी दल या गठबंधन की जीत को लेकर कोई दावा करना मुश्किल है।
कई नेता किसी चुनाव पूर्व मोर्चे को स्पष्ट बहुमत न मिलने की स्थिति के लिए अभी से तैयारी करने लगे हैं। उन्हें लगता है कि नतीजों से पहले ही कुछ अंडरस्टैंडिग बना ली जाए ताकि बाद में आसानी हो। ऐसा सोचने वालों में वे क्षेत्रीय नेता सबसे आगे हैं जो किसी भी गठबंधन का हिस्सा नहीं हैं। चुनाव की तारीखों की घोषणा के पहले से ही वे एक तीसरा विकल्प बनाने की कोशिश करते रहे हैं। जैसे, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने सोमवार को डीएमके प्रमुख एमके स्टालिन से मुलाकात की। कुछ समय पहले वे केरल के मुख्यमंत्री पी विजयन से भी मिले थे।कोलकाता में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से राव ने पिछले साल बात की थी। उनकी पूरी कोशिश है कि एक गैर-बीजेपी, गैर-कांग्रेस मोर्चा बने और वही केंद्र में सत्ता संभाले। लेकिन उन्हें भी इस बात का पूरा अंदाजा है कि क्षेत्रीय पार्टियां अपने दम पर सरकार नहीं बना पाएंगी। अब तक तीसरे मोर्चे की जो भी सरकारें बनी हैं, उन्हें कांग्रेस का और उससे पहले बीजेपी और लेफ्ट पार्टियों का समर्थन हासिल रहा है, हालांकि वे अल्पजीवी ही सिद्ध हुईं। जहां तक कांग्रेस का प्रश्न है तो उसने खुद को बीजेपी के विकल्प के रूप में पेश किया है और कई क्षेत्रीय दलों के साथ समझौता किया है, इस अलिखित शर्त के साथ कि बहुमत मिलने पर राहुल गांधी ही प्राइम मिनिस्टर होंगे। इन दलों के नेताओं, जैसे डीएमके के स्टालिन और आरजेडी के तेजस्वी यादव ने समय-समय पर इसकी पुष्टि भी की है। ऐसे में कांग्रेस से तीसरे मोर्चे को समर्थन देने की अपेक्षा करना अभी के लिए ज्यादती है। पार्टी के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद ने कह भी दिया है कि जो पार्टियां कांग्रेस के साथ नहीं है, वे उसके समर्थन की अपेक्षा न करें। कांग्रेस शायद यह उम्मीद कर रही है कि यूपीए के बहुमत से थोड़ी दूर रह जाने पर क्षेत्रीय दल उसे अपना समर्थन दे देंगे। उधर बीजेपी ने भी संकेत दिया है कि अगर सीटें कम पड़ीं तो वह साथियों के सहयोग से सरकार बना लेगी। साथियों से उसका मतलब ऐसे दलों से हैं, जो एनडीए में नहीं हैं। यानी क्षेत्रीय दलों का समर्थन दोनों गठबंधनों के राडार पर है। शायद इसीलिए केंद्र सरकार ने इधर ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से संबंध सुधारने की कोशिश की है। उसे लगता है कि जरूरत पडऩे पर नवीन पटनायक, के. चंद्रशेखर राव और जगनमोहन रेड्डी उसका साथ दे सकते हैं। सच यह है कि ये तीनों नेता संख्याबल देखकर ही कोई निर्णय करेंगे क्योंकि केंद्र से नजदीकी इन्हें क्षेत्रीय राजनीति में मजबूत बनाएगी।

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