चुनाव के दौर में गैर राजनीतिक इंटरव्यू की आवश्यकता क्यों ?

राणा अवधूत कुमार 
पटना।  बॉलीवुड के मशहूर कलाकार अक्षय कुमार ने हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू लिया। घोषित तौर पर यह गैर राजनैतिक इंटरव्यू था. लेकिन किसी देश के प्रधानमंत्री का इंटरव्यू बीच चुनाव में एक फिल्मी कलाकार का लेना देश के विद्वान पत्रकारों के लिए भी दुखद है. अक्षय कुमार एक बेहतरीन कलाकार हैं, और इंटरव्यू की चर्चा देश-विदेश में हुई है. जहां विश्व के तमाम बड़े पत्रकारों ने अपने कॉलम में लिखा है. इसके बाद इस इंटरव्यू की परिकल्पना भी साफ़ नहीं हैं. मसलन इंटरव्यू के लिए कैमरा किसका था? तकनीकि सहयोग किसका था? क्या इंंटरव्यू के अंत में किसी प्रोडक्शन कंपनी का क्रेडिट रोल आपने देखा? इन सवालों पर बात नहीं हो रही है। लेकिन पत्रकारिता और प्रधानमंत्री के पद पर बैठे दोनों के यह जानना जरूरी है. सोचिए ग़ैर राजनीति के नाम पर देश के लोगों को गैर राजनीती के नाम पर और दर्शकों के भरोसे के साथ राजनीति की गई। क्विंट वेबसाइट ने सूत्रों के आधार पर लिखा है कि अक्षय कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गैर- राजनीतिक इंटरव्यू की तैयारी ज़ी न्यूज़ की संपादीयक टीम के सहयोग से किया है. अक्षय के निर्देशन में ज़ी न्यूज़ की संपादकीय टीम ने शूट किया, शूटिंग के बाद पोस्ट प्रोडक्शन और एडिटिंग की। तैयार होने के बाद न्यूज़ एजेंसी एएनआई ने इसे जारी किया। जिसे सारे चैनलों पर दिखाया गया. क्विंट की स्टोरी में इस इंटरव्यू में ज़ी न्यूज और एएनआई का सीधा संबंध दिखाया गया है.
प्रधानमंत्री का चुनाव में इंटरव्यू देना या अपनी उपलब्धियों को रखना कोई नई बात नहीं है. लेकिन सवाल यहां अक्षय कुमार द्वारा इंटरव्यू लेने और ऐसे गैर राजनैतिक इंटरव्यू का नाम देना कहां तक उचित है. सही मायनों में तो यह पत्रकारिता के इथिक्स के खिलाफ है. यदि यह इंटरव्यू किसी एक चैनल पर प्रसारित किया जाता तो बात कुछ जंचती। यह सीधा सीधा पोलिटिकल प्रोपेगैंडा है। ज़ी न्यूज़ के तैयार कंटेंट को सारे चैनलों पर चलवाया गया. क्या सारे चैनलों को नहीं बताना चाहिए था कि यह कटेंट किसका है? क्या एएनआई का है जो इसे जारी कर रहा है? अगर आप मीडिया के बारे में कुछ जानकारी या इसके बेसिक्स जानते होंगे, मीडिया के इतिहास से वाक़िफ़ हैं तो इन बातों से भली-भांति समझ सकते हैं. यदि आप मोदी के साथ हैं तो आपको सतर्क हो जाना चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी के घोर समर्थक हैं, तब तो आपको और भी सतर्क होना चाहिए। क्या आप मोदी का सपोर्ट इसलिए करते हैं कि मीडिया आपकी आंखों में धूल झोंके। सपोर्ट आप करते हैं, तो मीडिया क्यों खेल करता है, किसी दूसरे और को मोहरा बना कर.
यहां सवाल इस पर भी उठता है कि इस देश में दूरदर्शन जैसे सरकारी चैनल की काबिल टीम है. कई बार सरकार अपनी बातों को रखने के लिए इसका उपयोग करती रही है. सवाल है कि देश के पीएम का विशेष इंटरव्यू दूरदर्शन ने क्यों नहीं शूट किया, संपादित किया, और इसका प्रकाशन किया? क्या देश के प्रधानमंत्री को सरकारी संस्थानों में भरोसा नहीं है? वैसे एक पेशेवर पत्रकार होने के नाते बताना चाहूंगा कि अक्षय कुमार का बाल नरेंद्र का वीडियो वर्जन बहुत ही ख़राब शूट हुआ था. प्रधानमंत्री जहां बैठे हैं, जहां से अपने बचपन की बातें बता रहे थे तो उनके पीछे शीशे में टेक्निकल स्टाफ की छाया स्पष्ट रूप से से आ रही थी। इंटरव्यू के दौरान बीच में कभी किसी का सर तो कभी किसी का हाथ आ जाता था. इससे अच्छा तो दूरदर्शन के कैमरामैन शूट कर देते। कोई पूछने वाला नहीं है। विपक्ष में तो सही कहे तो नैतिक बल नहीं है। यदि होती तो राहुल गांधी समेत तमाम बड़े विपक्षी नेताओं द्वारा इस इंटरव्यू पर सवाल जरूर उठाया जाता। डरपोक और कामचोर विपक्ष को इस इंटरव्यू से संबंधित मूल सवाल उठने चाहिए थे.
यहां पत्रकारिता के इथिक्स से जुड़ा दूसरा सवाल है कि इस इंटरव्यू को क्या वाकई ज़ी न्यूज़ की टीम ने शूट किया और इसकी एडिटिंग की? तो फिर यह पूरा इंटरव्यू ज़ी न्यूज़ का प्रोग्राम हुआ। फिर यह बात क्यों नहीं ज़ाहिर की गई. इसमें प्रधानमंत्री मोदी या सरकार या ज़ी न्यूज़ द्वारा क्या अंधेरे में रखकर सारे चैनलों को ज़ी न्यूज़ के बनाए कटेंट को दिखाने के लिए मजबूर किया गया? क्या अब आगे भी सबको ज़ी न्यूज़ ही सरकार की ओर से कटेंट सप्लाई करेगा? क्या यह इंटरव्यू पेड न्यूज़ के दायरे में नहीं आती है? ज़ी न्यूज़ के कई बिजनेस हैं। वह क्यों सारे चैनलों के लिए फ्री में कटेंट तैयार करेगा? क्या चुनाव बाद इसका लाभ मिलेगा? और यदि ज़ी न्यूज़ ने इस इंटरव्यू को फ्री में तैयार किया है तो इसका खर्च किसने दिया। विशेष रूप से सुपर स्टार अक्षय कुमार के कीमती वक्त का पारिश्रमिक किसने दिया? अक्षय कुमार अपनी टीम लेकर आते तो कोई बात नहीं थी. क्विंट की साइट पर ज़ी न्यूज़ की टीम की तस्वीरें हैं. एक निजी चैनल के साथ मिलकर शूटिंग प्लान किया गया, दूसरी एजेंसी से सारे चैनलों के लिए जारी किया गया. जो किसी भी लिहाज़ से उचित प्रतीत नहीं होता। प्रधानमंत्री को बताना चाहिए कि यह इंटरव्यू किसका था. ज़ी न्यूज़ का या एएनआई का. हैरत कि बात है कि चैनलों ने एएनआई से नहीं पूछा कि इसे किसने शूट किया है?
2019 के लोकसभा चुनाव में भारत निर्वाचन आयोग की भूमिका कई मायनों में संदिग्ध नज़र आ रही है. चुनाव आयोग स्वायत्त और निर्भिक संस्था की तरह काम नहीं कर रहा है. इस आयोग से उम्मीद बेकार तो नहीं कहा जा सकता लेकिन लोगों में निराशा है. प्रधानमंत्री के इस हालिया इंटरव्यू को ही लिया जाए तो यह पेड न्यूज़ का यह मामला बनता है. बड़े आश्चर्य की बात है कि प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया और देश के बड़े संपादकों का समूह भी चुप है। चैनलों और पत्रकारों की पक्षधरता वाली संस्था ब्राडकास्ट एसोसिएशन का संगठन (एनबीएसए) की खामोशी भी कई सवाल खड़े करती है. भारत की सबसे बड़ी समाचार एजेंसी में शामिल एएनआई का थॉम्पसन रॉयटर से करार है. सेना के अलग-अलग विंगों से रिटायर हुए कई अफसरों ने रॉयटर को पत्र लिखा है. उन्होने लिखा है कि समाचार एजेंसी एएनआई ने भारत की सत्ताधारी पार्टी की तरफ से प्रधानमंत्री के बयानों को गलत संदर्भ में पेश किया है. जिस पर जवाब देने की आवश्यकता ना तो सरकार के पास है और ना विपक्ष इस पर सवाल खड़े कर रहा है. अभी चुनावी माहौल में तो देश में पक्ष -विपक्ष दोनों ओर के नेता आपस में जूतम-पैजार में फंसें हुए हैं. नैतिकता को टाक पर एक दूसरे पर गलत आरोप-प्रत्यारोप करने और बदज़ुबानी में ही बिता रहे हैं.
इस पूरे आलेख को लिखने का तात्पर्य है कि आज के ज़माने में चैनलों के साथ सोशल मीडिया का दौर है. आप बेशक मोदी के समर्थक या  सकते हैं. लेकिन एक देशवासी होने के नाते मीडिया में जो हो रहा है, उसे आप भाजपा समर्थक या विरोधी के नाते खारिज मत कीजिए। देश की मीडिया का एक बड़ा वर्ग नरेंद्र मोदी को चुनाव जीतवाने में ही मदद नहीं कर रहा है बल्कि चुनाव के बाद आपकी हार का इंतज़ाम भी कर रही है. मीडिया और अपने राजनीतिक समर्थन को अलग रखिए। प्रधानमंत्री होने के नाते देश के साथ मीडिया को लेकर चलने की दृष्टि भी होनी चाहिए। यदि इस इंटरव्यू को दूरदर्शन करती तो गरीबी और उपेक्षा की शिकार हुई दूरदर्शन का भी कुछ नाम हो जाता। लेकिन रिलायंस के जियो जैसे कंपनी का प्रचार तो प्रधानमंत्री करते हैं लेकिन सरकारी कंपनी बीएसएनएल आपकी आंखों के सामने जो बर्बाद हो रहा है, उसे भी एक बार देख लेते। यह किसी एक कंपनी या एक्टर पर सवाल नहीं है, यह प्रधानमंत्री पर भी सवाल नहीं है, यह सवाल पत्रकारिता के मूलभूत सिद्धांत पर है. एक पत्रकार होने के नाते इतना हक़ तो बनता ही हैं.

Share and Enjoy !

Shares

Related posts