अधिकारों का टकराव

अपनी कार्यशैली के चलते अक्सर विवादों में रहने वाली पूर्व आईपीएस अधिकारी व पुडुचेरी की उपराज्यपाल को मद्रास हाईकोर्ट ने नसीहत दी है कि वह जनता द्वारा चुनी गई सरकार के दैनिक कामकाज में हस्तक्षेप नहीं कर सकती।
चुनी गई विपक्षी दलों की सरकारों को केंद्र में सत्तारूढ़ दल की शह प्राप्त उपराज्यपाल व राज्यपालों की विवादित कार्यशैली के किस्सों की लंबी परंपरा रही है। इसके बावजूद किरण बेदी की कार्यशैली विगत में भी ऐसी ही रही है कि अधिकारों का टकराव गाहे-बगाहे सामने आता ही रहा है। जो उनकी क्रेन बेदी वाली छवि के  इर्दगिर्द ही रहा है। दरअसल लंबे समय से किरण बेदी और केंद्रशासित प्रदेश पुडुचेरी के मुख्यमंत्री वी. नारायणसामी के बीच अधिकार क्षेत्र को लेकर विवाद चल रहा था। सरकारी कामकाज में अवरोध पैदा करने का आरोप लगाते हुए नारायणसामी अपने मंत्रियों व सहयोगी दलों के विधायकों के साथ राजभवन के बाहर धरने पर बैठ गये थे। कांग्रेस के विधायक के. लक्ष्मीनारायण ने मद्रास हाईकोर्ट में उपराज्यपाल द्वारा सरकार के कार्य में अनावश्यक हस्तक्षेप के खिलाफ याचिका दायर की थी। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै बेंच ने स्पष्ट किया कि इस केंद्रशासित प्रदेश में वित्तीय व प्रशासनिक फैसले लेने का अधिकार यहां की चुनी सरकार के पास ही है। दरअसल, मुख्यमंत्री व उपराज्यपाल के बीच काफी समय से घमासान चल रहा था। इतना ही नहीं, सार्वजनिक मंचों पर भी यह कड़वाहट देखने को मिलती थी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उपराज्यपाल का दखल संघ शासित प्रदेश प्रतिनिधित्व अधिकार के खिलाफ है, जिसके चलते इस पर रोक लगायी है। कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि उपराज्यपाल को केंद्रशासित प्रदेश सरकार से दस्तावेज मांगने का अधिकार भी नहीं है। इसके अलावा कोर्ट ने केंद्र द्वारा उपराज्यपाल की शक्तियों पर दिये गये दो स्पष्टीकरण आदेशों को भी रद्द कर दिया। इन दो आदेशों में स्पष्टीकरण दिया गया था कि राज्यपाल के पास स्वतंत्र रूप से कार्य करने की शक्तियां हैं, जिसके लिये वह मंत्रिपरिषद की सलाह के लिये बाध्य नहीं है। यानी जिन कार्यों की जिम्मेदारी मंत्रिपरिषद की है, उनसे जुड़े दस्तावेज के बारे में पूछने का अधिकार राज्यपाल को है।उल्लेखनीय है कि जब गत फरवरी में मुख्यमंत्री वी. नारायणसामी ने राजभवन के बाहर धरना दिया था तो उपराज्यपाल पर लोककल्याण की योजनाओं में अवरोध पैदा करने का आरोप लगाया था।  उन्होंने राशनकार्डधारकों को मुफ्त चावल व पोंगल बोनस देने, वित्त पोषित निजी स्कूलों में योजनाएं लागू करने के कार्यक्रमों को रोकने का आरोप लगाया था। मुख्यमंत्री ने 36-चार्टर मांगों को पूरा करने की मांग उपराज्यपाल से की थी, फिर अनुमति न मिलने पर धरना देने का फैसला लिया। दरअसल, केंद्रशासित प्रदेशों में उपराज्यपाल व मुख्यमंत्रियों के बीच टकराव का सिलसिला पुराना है। दिल्ली में भी आप सरकार व उपराज्यपाल नजीब जंग के बीच लंबा टकराव चला। उसके बाद नये उपराज्यपाल अनिल बैंजल के साथ भी टकराव की खबरें आती रही। केजरीवाल केंद्र सरकार के इशारे पर चुनी सरकार को काम न करने देने का आरोप लगाते रहेे। उपराज्यपाल के बहाने केजरीवाल प्रधानमंत्री व गृहमंत्री पर हमला करने का मौका तलाशते रहे। कालांतर उपराज्यपाल और आप सरकार के बीच चला विवाद देश की शीर्ष अदालत पहुंचा। हालांकि, सुप्रीमकोर्ट ने दिल्ली के मामले में राज्यपाल के अधिकारों को माना, मगर पुडुचेरी के मामले में मद्रास हाईकोर्ट ने उपराज्यपाल के मुकाबले चुनी सरकार के अधिकारों को मान्यता दी है। यानी स्पष्ट कर दिया है कि असली ताकत जनता द्वारा चुनी गई सरकार में निहित है। यानी उपराज्यपाल का काम सिर्फ मंत्रिमंडल की सलाह पर अमल करना ही है। जाहिर है इस फैसले के बाद उपराज्यपाल किरण बेदी द्वारा सरकारी फाइलों को अपने पास मंगाने और सरकारी अधिकारियों तो निर्देश देने की रिवायत पर रोक लगेगी। कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि प्रशासनिक व वित्तीय अधिकार सिर्फ चुनी गई सरकार के पास ही हैं। जाहिर-सी बात है कि कोर्ट के निर्देश के बाद उपराज्यपाल की दैनिक गतिविधियों पर हस्तक्षेप की प्रवृत्ति पर रोक लग सकेगी। कह सकते हैं कि सुशासन और फैसलों के शीघ्र क्रियान्वयन में अधिकारों की स्पष्ट व्याख्या लोककल्याणकारी नीतियों के अनुपालन में सहायक होगी। कोर्ट के इस फैसले के आलोक में भविष्य में अन्य केंद्रशासित प्रदेशों में अधिकारों के अतिक्रमण से जुड़े विवादों को निपटाने में मदद मिलेगी।

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