इंटरनेट, मोबाईल और ऑनलाइन गेम से बच्चो और युवाओं में अवसाद और हिंसा

डॉ सौम्य प्रकाश, मेडिकल कोरेस्पोंडेंट-ICN
मोबाईल नेटवर्क कंपनियां आजकल आपसी स्पर्धा से इंटरनेट की दुनिया को इतना आसान और सस्ता बना दिया है, की हर घर में ये एक घर की बाकी जरूरत की चीजों की तरह हो गया है।
हर घर में आपको स्मार्ट फ़ोन , 4 जी नेटवर्क और वाईफाई करीब करीब मिल ही जाएगा।साथ ही डिजिटल भारत ने मुफ्त वाईफाई सुविधा सार्वजनिक स्थानों पर भी उपलब्ध करा रखी है।जिसके फायदों से ज्यादा लोगों को नुकसान ज्यादा हो रहा है।इंटरनेट तो जानकारी का ख़ज़ाना है,पर उस जानकारी के साथ आज कल आसानी से इंटरनेट पर गेम और ऑनलाइन चैनल ने युवाओं और बच्चों को अपने तरफ खींचना शुरू किया है। बच्चों को उनके उम्र से परिपक्व और हिंसक बना रहे हैं।उनका वक्तित्व बदल रहा हैं। आज कल बच्चे और युवा परिवार के साथ कम और इंटरनेट की दुनिया में ज्यादा वक्त बिताते हैं।बाहर की दुनिया तो दूर बगल में कौन है,उनको वो भी पता नहीं चलता।पबजी, ब्लू व्हेल , मोमो ,पोकेमन तरह के गेम ने लोगों में हिंसा अवसाद पैदा करना शुरू कर दिया है। जो कि उनमें आत्महत्या तक की बातो को भी भर दिया है।दुनिया के कई कोनो से ऐसे बातें सामने आयी, जिसमें बच्चों और युवाओं ने आत्महत्या की तथा उनमें अवसाद के लक्षण पाए गए।आज कल आप हर जगह पबजी गेम का नाम देखेंगे और सुनेंगे,लोगों को खेलते हुए भी पाएंगे।इस गेम से भी बच्चों मैं हिंसा की समस्या सुनने में सामने आ रही।इसी तरह बेलगाम हो चली वेब सीरीज के नाम से बिना किसी सेंसर के अश्लीलता और गालियों वाले चलचित्र और धारावाहिक देखे जा रहे । जिनमें बेइंतहा नग्नता , हिंसा और गालियां बड़ी आसानी से परोसी जा रही हैं।जिसे युवा और बच्चे क्या हर पीढ़ी के लोग देख रहे।इनको देखना ना देखना अपने विवेक की बात है।पर ऐसी गेम धारावाहिक चलचित्र आसानी से उपलब्ध होने से तथा उनके एक दूसरो से लेने देने से ये एक बीमारी की तरह समाज को बिगाड़ सकती हैं, बिगाड़ रही हैं।अब बच्चे व युवा वर्ग ज्यादा से ज्यादा वक्त मोबाईल पर इन चीजों में बिताते हैं।जिससे ना वो मानसिक अपितु शारीरिक रूप से भी बीमार हो रहे।क्योंकि अब बच्चों मैं बाहर जा के खेलने से अच्छा मोबाईल में गेम खेलना ज्यादा अच्छा लगता है।अब तो एक या दो वर्ष के बच्चो को भी आप हाथ में मोबाईल लिए देख सकते हैं। जिसमें वो गेम और ऑनलाइन वीडियो देखते हैं।कितने बच्चें कम उम्र में ही आंखो की कमजोरी से ग्रस्त हो जाते हैं। मोबाईल फोन के रेडिएशन से कैंसर तक का ख़तरा बढ़ जाता हैं।इसके अलावा सोशल मीडिया जैसे फ़ेसबुक, इंस्टाग्राम, वॉट्सएप पर भी कम उम्र के बच्चे अपनी उम्र को बढ़ा के समय व्यतीत करते हैं।इन सोशल मीडिया में अकाउंट बनाने के लिए 13 वर्ष से अधिक उम्र होनी चाहिए। पर आज कल 8 से 9 वर्ष के बच्चे झूठी जानकारियां दे कर अकाउंट बना रहे।सोशल मीडिया पर अकाउंट बनाने पर उसमें अपनी ख़तरनाक सेल्फ़ी खींच के डालना आम बात सी हो चली हैं। कई लोग चलती ट्रेन ,बाइक , ट्रेन की पटरी नदी और ऊंची जगह से अपनी सेल्फ़ी लेते हैं।जो की बहुत भयंकर साबित होता है, कई बार ऐसा करते वो दुर्घटनाग्रस्त हो जाते है, कई जगह उनकी मौत की खबरें भी आती हैं।धूम्रपान तथा मदिरापान करते हुए बड़े होटल रेसतरां में होते हुए अपनी फोटो शेयर करते हैं। जो दूसरो को भी वैसा करने के लिए प्रभावित करते हैं।इसके अलावा दूसरो को देख उनके कपड़ों ,जूतों, घड़ी एवम् मोबाईल को देख उन जैसा समान मांगने की ज़िद्द आज हर घर में आम हो चली हैं।ये ज़िद्द पूरी ना होने पर गलत संगति और काम तक करने लगते हैं। जिनसे उनकी ये जरूरत चलती रहे।इन सोशल मीडिया पर कई बार संदिग्ध व्यक्ति अपनी फर्जी अकाउंट बना कर बच्चो युवाओं से मित्रता कर उन्हें गलत काम करने के लिएप्रेरित करते हैं। बाद में उन बातो का फ़ायदा उठा कर उनको ब्लैमेलिंग और शोषण का शिकार बनाते है,उन्हें गलत रास्ते पर डाल देते हैं।आज कल युवा जन में पुरुष मित्र और महिला मित्र बनाना एक जरूरी काम सा होता जा रहा हैं। आजकल के युवक युवती अपने मित्रो के साथ की फोटो सोशल मीडिया पर शेयर करते हैं।मनोचकित्सको के पास ऐसे बहुत से कम उम्र के युवाजन अवसाद की समस्या ले कर आ रहे हैं।जिसमे उनको लगता है,की उनकी महिला या पुरुष मित्र नहीं है, तो वो अपने को दूसरो से कम देखते हैं।जो कि उनके मानसिक तनाव को और बढ़ा देता है जिससे वे अपने रोजमर्रा के काम , पढ़ाई, नौकरी तक में पिछड़ रहे हैं।इसके अलावा आए दिन मोबाईल फोन का फटना भी सुनने को मिलता रहता हैं।जिसका एक कारण मोबाइल को चार्जिंग में लगा कर बात करना है।
इन बातों का भी ध्यान देना जरूरी है।
इंटरनेट की दुनिया जितनी आसान है, उतनी ही ज्यादा चालाक, हम लोग किसी भी चीज़ की जानकारी लेते वक्त अपनी सारी जानकरिया इंटरनेट पर दे देते हैं, हमें मालूम भी नहीं होता और हमारी सारी जानकारियां इंटरनेट पर तुरन्त फैल जाती है, हमारा नाम पता नंबर सब एक जगह से दूसरी जगह भेज दी जाती है, कम्पनी द्वारा दूसरे कम्पनी को बेच दी जाती हैं।इन सब बातो से बचना चाहिए, बच्चों और युवाओं पर अभिभावकों को नज़र रखना चाहिए। उन को बुरी अच्छी की समझ एक मित्र की तरह बैठ के समझाना चाहिए। ना कि एक माता पिता या बुज़ुर्ग की तरह।बच्चो का मन कोमल होता है, उनको अपने अनुभव और इन चीजों की जानकारी वक्त वक्त पर देना चाहिए।सरकार ने भी कई गेम पर प्रतिबंध लगाने की पहल की है, पर नियमो में और बदलाव की जरूरत है।और सबसे बड़ा बदलाव खुद को बचा कर सुरक्षित और इंटरनेट के इस्तेमाल को सीमित करने से करना होगा।

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