अमिताभ दीक्षित ,लिटरेरी एडिटर-ICN ग्रुप
तमाम उम्र
ज़िन्दगी की ख़ाक छानता
वक़्त से बातें करता
एक बूढ़ा झुर्रियोंदार चेहरा
उदासी की देहरी लांघती आंखों में
सपने जैसा बसा
यह शहर अलवर
अंधियारी रात में
दूर टिमटिमाता दिया
एक पूरी दास्तान छिपाये है
अपने पीछे एक अलसाये लावण्य की,
वीरता की और रंगभरी मस्तियों की
ख़ामोशी जब ख़ुद से बातें करती है
तभी यह शहर अचानक नींद से जाग उठता है
सुर्खियां इसकी आदत में शुमार नहीं
सुबह की पहली किरण के साथ
तेज़ हो जाती हैं कुयें की धिर्री की आवाज़ें
फिर ज़िन्दगी की मोटी रस्सी पर
चूड़ियों से सजी कलाइयों की पकड़
मज़बूत होने लगती है
सिरों की परवाह किए बगैर
यह शहर ज़िन्दगी से सीधे बतियाता है
कहते हैं यह शहर बूढ़ा हो गया
पर मुझे तो अभी भी जवान लगता है
एकदम तरोताज़ा – उम्र में बूढ़ा होने के बावज़ूद