स्वच्छ भारत हेतु कटघरे में नागरिक योगदान

सत्येन्द्र कुमार सिंह ( एसोसिएट एडीटर-ICN ग्रुप )

यूँ तो इंसानी सोच का कलयुगी सत्य तो कलुषित है जिसमे भौतिकवाद का तड़का बड़ा ही कष्टकारक है किन्तु अपने आसपास का भौगौलिक वातावरण स्वच्छ रहे इसकी बात तो सब करते है| अगर आप किसी गली या मोड़ के पास से गुज़र जाए तो कहीं न कहीं आपको गन्दगी मिल ही जाएगी|

किसे नहीं पता कि इस गन्दगी से बीमारियाँ फैलती हैं किन्तु सारा ठीकरा तो सरकार पर फोड़ने की आदत ही अपने आप में सरकारी तंत्र जैसा व्यवहार है| वर्षों से इस बावत जन जागरूकता अभियान आदि चलते रहे हैं किन्तु परिणाम वही ढाक के तीन पात|

कुछ ऐसी आदत ही हो गयी है अपनी कि एक प्रधानमंत्री लालकिले की प्राचीर से स्वच्छता अभियान हेतु देश का आह्वाहन करता है और हम उसे दल और व्यक्ति विशेष से जोड़ देते हैं| कष्ट इस बात का कि बहुत से अभियान केवल कैमरे के लिए किये गए प्रतीत होते हैं|

सवाल एक छोटा सा कि क्या उस विशेष दल के समर्थक भी अपने आस पास स्वच्छता रखते हैं? अगर कोई भूले बिसरे ‘हाँ’ में जवाब देता है तो क्या वो अन्य लोगों को इसके लिए प्रेरित करता है? कठिन सवाल किन्तु सरल जवाब ‘नहीं’!

अगर आप इसे दलगत नीति से ऊपर उठ कर सोचे तो समझ में स्वत: ही आ जाएगा कि बिमारी दलगत राजनीती से अलग है और वो बिना भेद भाव के सबको बीमार कर देती है| ज़िन्दगी हमारी और दोष सरकार को! होते रहिये बीमार और कराहते स्वर से कोसते रहिये सरकारी तंत्र को|

जय हिन्द!

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