मैक्स काण्ड: शक के घेरे में चिकित्सक, मरीज को बचाएं या खुद को ?

डॉ. प्रांजल अग्रवाल ( असिस्टेंट एडिटर-आई सी एन ग्रुप )

लखनऊ। हाल ही में देश की राजधानी नई दिल्ली के शालीमार बाग़ इलाके का एक बड़ा कॉर्पोरेट अस्पताल – मैक्स, समाचारों, व्हाट्स एप्प, और लोगों की जुबान पर चर्चा का विषय बना हुआ है | चर्चा हों भी क्यों न, हमारे देश में हर विषय पर राजनीति जो गरमाने लगती है | 

२० वर्षीय गर्भवती महिला ने २२ सप्ताह के जुडवा बच्चे जिसमे एक लड़का और एक लड़की थे, को जन्म दिया | लड़की की मृत्यु जन्म के तुरंत बाद ही हो गयी जबकि लड़का जन्म के वक़्त जीवित था | समाचार पत्रों के अनुसार, बच्चे के पिता को हॉस्पिटल द्वारा पहले ही बता दिया गया था की चुकी सिर्फ २२ हफ्ते के बच्चे हैं, इसलिए उनका जीवित रहना मुश्किल है |

समाचार पत्रों के मुताबिक़ कुछ समय बाद बच्चों के घरवालों को बताया गया की दूसरे बच्चे की भी मृत्यु हो गयी है | और बायो मेडिकल वेस्ट के निस्तारण के नियमों के अनुसार दोनों नवजात बच्चो के शवों को बायो मेडिकल पैकेट्स में पैक करके घर वालों को सौंप दिया गया |

अब समस्या कहाँ हुई ? ये समझने की ज़रूरत है |

मीडिया और राजनेताओं के बयानों के चलते आजकल की पब्लिक ने डॉक्टर और अस्पतालों को पैसा बनाने की मशीन समझ लिया है | यदि मरीज बच जाए तो डॉक्टर और अस्पताल को पैसा देना भारी लगता है, और यदि मर जाए तो डॉक्टर को मर्डरर, किलर, हैवान, शैतान, जैसे शब्दों से नवाज़ा जाता है | शायद यही पब्लिक कुछ समय पहले तक डॉक्टर को भगवान् का दर्ज़ा देती थे |

इस पूरे मेक्स काण्ड में केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार यहां तक की जनता तक सब ने पूरे तथ्यों को जांचे बिना, ओपिनियन बना लिया की मैक्स अस्पताल लुटेरा और लापरवाह है, और इसी कारण से दोनों बच्चों की मृत्यु हुई है | जबकि कुछ तथ्य इस प्रकार हैं :

१.  दोनों बच्चे गर्भ में ‘एज ऑफ़ वायाबिलिटी’ यानी गर्भधारण करने के बाद 28 सप्ताह से कम के थे | 28 सप्ताह से कम के गर्भ का जन्म लेने पर बच्चे का जीवित रहना बहुत मुश्किल होता है और यदि बच्चा जीवित रह भी गया तो ऐसे में उस बच्चे में शारीरिक और मानसिक विकारों के होने की संभावना कई गुना होती है |

२. कोई भी चिकित्सक कभी नहीं चाहता की उसके मरीज की मृत्यु हो जाए | मरीज की मृत्यु के बाद आरोप लगाना की डॉक्टर की लापरवाही से मरीज की मृत्यु हो गयी है, ये आजकल फैशन में आ चुका है |

३.  मैक्स अस्पताल ने प्रारम्भिक जांच में ही दोनों चिकित्सकों को छुट्टी पर भेज दिया | किसी भे सरकार ने ये जानने की ज़रूरत ही नहीं की, की एक मरीज के साथ कुछ समस्या होने से अन्य मरीजों पर इसका असर क्यूँ पढना चाहिए | यदि कोई एक ट्रेन पटरी से उतर जाती है, तो क्या उस हादसे के जांच होती है या पूरे रेल सेवा ठप्प कर दी जाती है ?

४. कुछ माह पहले उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के सरकारी बीआरडी मेडिकल कॉलेज के अस्पताल में कुछ बच्चों की मृत्यु का मामला सुर्ख़ियों में आया था | तब उत्तर प्रदेश की सरकार ने जांच के आदेश दे दिए थे | दिल्ली के निजी अस्पताल मैक्स में भी ऐसा ही मामला होने पर राजनीति होने लगी | ऐसा प्रतीत होता है की दिल्ली सरकार को लगा की यह मौका राजनीति करने के लिए सही है , तो केवल जनता को यह दर्शाने के लिए की उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार ने गोरखपुर बीआरडी हॉस्पिटल मामले में कोई ख़ास कदम नहीं लिया और दिल्ली की आप सरकार ने एक बच्चे का मामला होने पर भी अस्पताल का लाइसेंस तुरंत रद्द कर दिया | पर ये जानने की ज़रूरत है की यदि यही हादसा दिल्ली के किसी सरकारी अस्पताल में होता तो भी क्या आप सरकार उस अस्पताल का लाइसेंस रद्द कर देती, या उस समय केवल जांच का आदेश दे कर अन्य मरीजों के लिए स्वास्थय सेवा बहाल रहने देती ?

५. राजनीति ने इस देश को प्रगति से रोक रखा है | ऐसा प्रतीत हो रहा है की कल तक राजनीति बदलने का दावा करने वाली आप सरकार भी अब बाकी दलों की तर्ज़ पर मौजूदा राजनीति में रमने लगी है | किसी भी सरकार ने यह जानने की कोशिश किये बिना की रोज़ शालीमार बाग़ स्तिथ इस मैक्स अस्पताल में कितने मरीजों का इलाज किया जाता है, कितने ओपीडी में दिखाते हैं और कितने भर्ती रहते हैं | किसी ने हिसाब नहीं लगाया की अस्पताल ने आज तक कितने मरीजों की जान बचाई है | किसी ने हिसाब नहीं लगाया की अस्पताल बनाने और चलाना कितना मुश्किल कार्य है और उसमे कितने धन का व्यय होता है | किसी ने हिसाब नहीं लगाया की क्या होगा उन मरीजों का जो अपना अपॉइंटमेंट पूर्व में ही उस अस्पताल में दिखाने या ऑपरेशन का ले चुके है  या उस हॉस्पिटल में कार्यरत सैकड़ों स्टाफ और उनके परिवारों का |

किसी ने ठीक कहाँ है की आजकल डॉक्टर की हालत सर्कस में रस्से पर चलने वाले जोकर जैसी हो गयी है | चारों तरफ देख कर चलने के बावजूद, ज़रा से असावधानी से किसी भी समय जमीन पर गिर सकता है | सर्कस में तो रस्सी से गिरने पर जोकर एक जाल पर गिरता है जो उसे संभावित दुर्घटना से बचा लेता है, लेकिन डॉक्टर जब जमीन पर गिरता है तो उसे बचाने वाला कोई नहीं होता | सर्कस  के जोकर को मालूम होता है कि जब वो गिरेगा तो उसे लगेगी नहीं क्यों कि सरकस के मालिकों ने उसकी जान की कीमत समझ उसे बचाने के लिए जाल की सुरक्षा बना रखी है!शायद इसीलिए जोकर पूरे आत्मविश्वास के साथ रस्सी पर चल पाता है। इसके विपरीत डॉक्टर को पता है कि सरकार रूपी सरकस के कर्ण धारों ने उसे बचाने के लिए कोई जाल नहीं बनाया हुआ है बल्कि उसके गिरकर किस्मत से बच जाने पर,उसे जाल में उलझाने के लिए कानूनों के “जाल”बन दिए हैं!

अब ऐसी स्थिति में देखना है कि कब तक “डॉक्टर”नाम का यह जोकर तनी हुई रस्सी पर चल कर अपना करतब दिखा पाता है जहाँ हर व्यक्ति न्यायविद होहर व्यक्ति इतना ज्ञानी हो कि तुरंत पता लगा ले कि मौत डॉक्टर की लापरवाही से हुई है!

मेडिकल की किताबों में उल्लेखित हर बीमारी और उसके उपचार में निहित जटिलतायेंउपचार के प्रति प्रतिक्रियाएंहर बीमारी की प्रोग्नोसिस,  सब बेमानी सिध्द होती जा रही हो तो ऐसे में डॉक्टरी पेशा एक सरकस के जोकेरनुमा कार्य जैसा ही हो जायेगाजहाँ हर “दर्शक” के हाथ में एक हंटर होगाऔर पूछेगा-

22 साल की उम्र में हृदयाघात कैसे हुआ?

ये कैंसर का मरीज जिसे अभी 25 साल और जीना था कैसे मर गया?

शराब पी पी कर मजबूत बनाये लिवर का रोगी,लीवर फेल होने से कैसे मर गया?

किसी भी ऑपरेशन के बाद मरीज को 100% फायदा क्यों नहीं हुआ?

 ऐसे ही अनगिनत प्रश्न हैं!!

अब यह सरकस भी राजनीतिक कार्यों के लिए जनता को लुभाने का एक खेल बनता जा रहा हैजहाँ जनता को खुश करने के लिएबगैर वैज्ञानिक तथ्यों का परीक्षण किएडॉक्टर और अस्पतालों पर कार्यवाही की जाने लगी है!

साथ ही इस तमाशे में मीडिया भी अपनी टीआरपी  बढ़ाने के लिए, अतिरंजित आंखों देखा हाल सुनाने लगा है, और मुख्य कारण परोक्ष में अनुत्तरित रह जाते हैं!!

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