लखनऊ। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वर्तमान सरकारी नियमों में नियुक्ति प्राधिकरी को यह अधिकार नहीं है कि जनहित के नाम पर किसी सरकारी कर्मी को स्वैच्छिक सेवानिवृति लेने से रोक सके।स्वैच्छिक सेवानिवृति चाहने वाले 05 डॉक्टरों द्वारा दायर अलग-अलग मुकदमों की एक साथ डॉ अचल सिंह तथा अन्य नाम से सुनवाई करते हुए जस्टिस देवेन्द्र कुमार अरोरा तथा जस्टिस रजनीश कुमार की बेंच ने आदेशित किया कि राज्य सरकार को जनहित या डॉक्टरों की कमी के नाम पर उन्हें स्वैच्छिक सेवानिवृति देने से मना करने का विधिक अधिकार नहीं है। इनमे से 02 मुकमदों में अधिवक्ता डॉ नूतन ठाकुर के अनुसार कोर्ट ने कहा कि जिन 03 मामलों में डॉक्टरों की स्वैच्छिक सेवानिवृति का प्रार्थनापत्र सरकार द्वारा अस्वीकृत किया गया है, उनमे वे 30 नवंबर 2017 से सेवानिवृत माने जायेंगे और जिन 02 मामलों में अभी निर्णय लिया जाना शेष है, उनमे वे डॉक्टर 31 दिसंबर 2017 से सेवानिवृत माने जायेंगे, यदि उनके खिलाफ कोई विभागीय कार्यवाही नहीं हो. कोर्ट ने इन सभी मामलों में 03 माह में समस्त सेवा संबंधी लाभ भी देने के आदेश दिए। इसके साथ ही हाई कोर्ट ने प्रदेश के स्वास्थ्य सेवा पर कड़ा प्रहार करते हुए कहा कि सरकार को आम लोगों के लिए स्वास्थ्य सेवाएँ तथा बेहतर सरकारी अस्पतालों की सुविधा उपलब्ध कराने की दिशा में वास्तविक प्रयास करने चाहिए और यह भी देखना चाहिए कि आखिर सरकारी डॉक्टर स्वैच्छिक सेवानिवृति क्यों ले रहे हैं। कोर्ट ने कहा कि सरकार को सोचना होगा कि जहाँ अन्य क्षेत्रों में सरकारी सेवा में आने की मारामारी है वहीँ डॉक्टर सरकारी सेवा में क्यों नहीं आ रहे हैं और आने पर स्वैच्छिक सेवानिवृति क्यों मांग रहे हैं।कोर्ट ने डॉक्टरों को उनकी योग्यता के काम की जगह प्रशासकीय कार्यों में नियुक्त किये जाने पर भी गहरा चिता व्यक्त किया और सरकार को इनके कैडर व्यवस्था को बेहतर करने की बात कही गयी।
डॉक्टरों की स्वैच्छिक सेवानिवृति नहीं रोक सकते : हाई कोर्ट
