12 साल तक खतरनाक बीमारी से लड़ते हुए बना विश्व चैंपियन

नई दिल्ली। जब कोई खिलाड़ी चोटिल होता है तो वह आराम करना ही पसंद करता है, लेकिन भारत का एक ऐसा स्टार खिलाड़ी भी है जिसने 12 साल तक खतरनाक बीमारी से लड़ते हुए विश्व चैंपियन बनकर देश का नाम रोशन किया।  भारत के नंबर वन, दो बार के विश्व चैंपियन और चार बार के राष्ट्रीय चैंपियन पावरलिफ्टर मुकेश सिंह गहलोत ने हमेशा से अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करते हुए कई स्वर्ण पदक जीते। वह 12 साल तक मिर्गी के दौरे जैसी बीमारी के शिकार रहे और डॉक्टरों के मना करने के बावजूद चैंपियनशिपों में हिस्सा लेते रहे और कई पदक अपने नाम किए। बॉडीबिल्डिंग से करियर शुरू करने वाले मुकेश अब जाने-माने पावरलिफ्टर हैं। दैनिक जागरण से खास बातचीत में उन्होंने बताया कि 2005 से मुझे यह बीमारी शुरू हुई जो इस साल जाकर खत्म हुई। शुरुआत में मेरे डॉक्टर और कोच भूपेंद्र धवन को इस बारे में पता था, लेकिन डॉक्टर ने मुझे कहा कि अगर इस बीमारी से ठीक होना है तो इस खेल को छोडऩा होगा लेकिन मैंने हार नहीं मानी और खेलना जारी रखा। इस दौरान मैं चार बार मिस्टर इंडिया (राष्ट्रीय खिताब) बना और दो बार विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक हासिल किया। मैं इस बीमारी को अपने खेल से ही हरा पाया, क्योंकि मेरा सारा ध्यान अपने खेल पर होता था।  आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने की वजह से मुकेश ककरौला से आजादपुर ट्रेनिंग करने के लिए लगभग 40 किलोमीटर तक साइकिल से जाते थे। पिता जी कहने पर दिल्ली विश्वविद्यालय से मैकेनिकल इंजीनियर की। अपने सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने रेलवे में स्पोट्र्स कोटे से मिली क्लर्क की सरकारी नौकरी भी छोड़ दी। वह पावरलिफ्टिंग में 780 किग्रा का कुल वजन उठा चुके हैं और उनका लक्ष्य 1000 किग्रा वजन उठाने का है। उन्होंने इस साल मिस्टर ओलंपिया का खिताब जीतकर इतिहास रचा था। वह भारत के पहले पावरटिफ्टर थे जिन्होंने यहां क्वालीफाई करने के साथ पदक  जीता। 39 वर्षीय मुकेश ब्रिटिश ओपन पावरलिफ्टिंग, यूरोपियन पावरलिफ्टिंग चैंपियनशिप, दक्षिण एशिया बॉडीबिल्डंग और इंग्लैंड ओपन में स्वर्ण पदक जीते हैं।

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