मुंबई। टैक्स हैवन और ब्लैक मनी को लेकर माहौल में गरमी आने के बीच आरबीआई लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम (एलआरएस) के तहत होने वाली डीलिंग्स की जांच कर रहा है। एलआरएस के तहत भारतीयों को विदेश में सालभर में ढाई लाख डॉलर तक निवेश करने की इजाजत है। आरबीआई को शक है कि इस सुविधा का उपयोग मनी लॉन्ड्रिंग में किया गया है।
कई लोगों से एलआरएस के तहत विदेश में बनाई गईं अनलिस्टेड कंपनियों में हुए ट्रांजैक्शंस के बारे में सवाल किए गए हैं। ये सवाल इन कंपनियों को दिए गए लोन, विदेश में खरीदी गई प्रॉपर्टी और ऐसी कंपनियों से भारत लाई गई रकम के बारे में पूछे गए हैं। कुछ मल्टिनैशनल बैंक अपने कस्टमर्स से यह हलफनामा मांगने लगे हैं कि एलआरएस के तहत विदेश में खोले गए फॉरेन करंसी अकाउंट में जमा की गई रकम का उपयोग विदेश में दूसरे निवेशों में नहीं किया जाएगा।
सीनियर चार्टर्ड अकाउंटेंट दिलीप लखानी ने कहा, आरबीआई हर मामले के तथ्यों के आधार पर सवाल कर रहा है। एलआरएस के जरिए किए गए निवेश होने वाली इनकम इंडिया में टैक्सेबल है। टेक्निकली देखा जाए तो जिस विदेशी कंपनी में निवेश किया गया हो, उस कंपनी की आमदनी का स्रोत आरबीआई के अधिकार क्षेत्र से बाहर है, बशर्ते मनी लॉन्ड्रिंग का कोई सबूत न हो।
एलआरएस को फरवरी 2004 में शुरू किया गया था। मकसद था अमीर लोगों को अपनी सेविंग्स को विदेश में निवेश करने का मौका देना। हालांकि कुछ लोगों ने इसका दुरुपयोग इस तरह किया है: उन्होंने किसी विदेशी बैंक खाते में ढाई लाख डॉलर जमा किए, टैक्स चुकाने से बचने की सहूलियत देने वालों की ओर से किसी टैक्स हैवन में बनाई गई अनलिस्टेड कंपनी में 1००0 डॉलर के शेयर खरीदे, बाकी 15०० डॉलर उस टैक्स हैवन कंपनी को बतौर लोन दे दिए जिसने उस रकम को अपनी कमाई में से लौटा दिया। सवाल यह है कि कंपनी को कमाई कैसे हुई? इसी बिंदु पर लॉन्ड्रिंग होती है।
विदेश में छिपाई गई अघोषित संपत्ति इस कंपनी में डाली जाती है, जो इसे किसी ट्रेडिंग ऐक्टिविटी से आमदनी के रूप में दिखाती है। कंपनी इस कमाई से लोन री-पेमेंट करती है और इस तरह 15०० डॉलर एलआरएस बैंक खाते में लोन री-पेमेंट अमाउंट के रूप में आ जाते हैं। यह हालांकि विदेश में अघोषित संपत्ति को वाइट करने के कई तरीकों में से एक है।टैक्स हैवन से ब्लैक मनी को वैध तरीके से इंडिया लाने के दूसरे रास्ते भी हैं। लॉ फर्म खेतान ऐंड कंपनी के पार्टनर मोइन लाढ़ा ने बताया, फर्ज कीजिए कि आपने एलआरएस के तहत मामूली रकम से एक कंपनी बनाई। अघोषित रकम इसमें डालकर इस विदेशी इकाई से इनकम होती हुई दिखाई जाएगी, ताकि इसका वैल्यूएशन बढ़े। इसके बाद विदेशी इकाई संबंधित व्यक्ति से शेयर वापस खरीद लेगी और मोटी रकम इंडिया में चली आएगी।