कार्तिक पूर्णिमा का महत्व

कार्तिक पूर्णिमा धार्मिक ग्रंथों के अनुसार हिन्दुओं का सबसे पवित्र पूर्णिमा माना गया है और इसकी महत्ता भी बताई गई है। कहा जाता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से आरोग्य की प्राप्ति तथा उसकी रक्षा होती है। वैसे  कार्तिक मास में प्रतिदिन गंगा स्नान को लाभप्रद माना गया है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही सिख संप्रदाय के संस्थापक गुरु नानक जी की जयंती बड़े ही धूमधाम से मनाई जाती है। इसी दिन संवत् 1536 को गुरु नानक जी का जन्म हुआ था।

ऐसी मान्यता है कि इस दिन महादेवजी ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का संहार किया था, इसीलिए इस दिन को त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन यदि कृतिका नक्षत्र हो, तो इसकी महत्ता और बढ़ जाती है, जिससे यह महाकार्तिकी कहलाती है और भरणी होने पर विशेष फल देती है। लेकिन, रोहिणी होने पर इसका महत्व बहुत अधिक बढ़ जाता है।

दीप दान का है महत्व

मत्स्य पुराण के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही संध्या के समय मत्स्यावतार हुआ था। इस दिन गंगा स्नान के बाद दीप-दान आदि का फल दस यज्ञों के समान होता है। इसलिए इस दिन ब्राह्मणों को विधिवत आदर भाव से निमंत्रित करके भोजन कराना चाहिए।

ऐसा माना जाता है कि इस दिन संध्या काल में त्रिपुरोत्सव करके दीप दान करने से पुर्नजन्मादि कष्ट नहीं होता। इस तिथि में कृतिका में विश्व स्वामी का दर्शन करने से ब्राह्मण सात जन्म तक वेदपाठी और धनवान होता है। कार्तिक पूर्णिमा की रात्रि के वक्त व्रत करके वृषदान करने से शिवप्रद प्राप्त होता है। गाय, हाथी, घोड़ा, रथ, घी आदि का दान करने से सम्पति बढ़ती है। कार्तिक पूर्णिमा से आरंभ करके प्रत्येक पूर्णिमा को रात्रि में व्रत और जागरण करने से सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं।

स्नान का महत्व

कार्तिक पूर्णिमा के दिन स्नान का बड़ा ही महत्व है। आरोग्य प्राप्ति तथा उसकी रक्षा के लिए भी प्रतिदिन स्नान लाभदायक होता है। फिर भी माघ वैशाख तथा कार्तिक मास में नित्य दिन के स्नान का खास महत्व है। खासकर गंगा स्नान से।

यह व्रत शरद पूर्णिमा से आरंभ होकर कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा को संपन्न किया जाता है। इसमें स्नान कुआं, तालाब तथा नदी आदि में करना ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है। कुरुक्षेत्र, अयोध्या तथा काशी आदि तीर्थों पर स्नान का और भी अधिक महत्व है।

भारत के बड़े-बड़े शहरों से लेकर छोटी-छोटी बस्तियों में भी अनेक स्त्रीपुरुष, लड़के-लड़कियां कार्तिक स्नान करके भगवान का भजन तथा व्रत करते हैं। सायंकाल के समय मंदिरों, चौराहों, गलियों, पीपल के वृक्षों और तुलसी के पौधों के पास दीप जलाये जाते हैं। लंबे बांस में लालटेन बांधकर किसी ऊंचे स्थान पर कंडीलें प्रकाशित करते हैं। इन व्रतों को स्त्रियां तथा अविवाहित लड़कियां बड़े मनोयोग से करती हैं। ऐसी मान्यता है कि इससे कुवांरी लड़कियों को मनपसंद वर मिलता है। तथा विवाहित स्त्रियों के घरों में सुख-समृद्धि आती है। 

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