देश के सबसे बड़े नाथपा झाकड़ी जलविद्युत स्टेशन में राजभाषा सम्मेलन सम्पन्न

झाकड़ी/ शिमला: आज समय की भी मांग है कि हम तथा-कथित अंगेजी की मानसिकता को छोड़कर भारतीयता के आदर्शों को अंगीकार करें तथा हिन्दी को भारतीय संस्कृति के विकास का संसाधन बनाए …. इन उद्गारों को व्यक्त करते हुए स्टेशन द्वारा आयोजित प्रथम एक दिवसीय राजभाषा सम्मेलन का उद्घाटन कर मुख्य-अतिथि श्री संजीव सूद ने साफ-साफ कहा कि हिन्दी को अपनी पहचान की ही भाषा बनाना होगा, यही हिन्दी हमारे, हमारे समाज राज्य व देश के सर्वागींण विकास के लिए वरदान सिद्ध होगी, ऐसा मेरा विश्वास है ।
इससे पूर्व श्री शैलेन्द्र सिंह, अपर महाप्रबन्धक ने फूलों का गुलदस्ता देकर मुख्य अतिथि महोदय श्री संजीव सूद का हार्दिकअभिनंदन किया । तदुपरान्त राजभाषा सम्मेलन के मुख्य-अतिथि श्री संजीव सूद ने  दोनों अतिथि-वक्ताओं प्रोफेसर डाॅ0 पुष्पेन्द्र कुमार आर्य एवं डाॅ0 चरणजीत सिंह सचदेव का इस दूरवर्ती क्षेत्र झाकड़ी में पधारने पर स्थानीय परम्परानुसार टोपी व स्मृति-चिन्ह देकर स्वागत किया ।
देश के सबसे बड़े नाथपा झाकड़ी जलविद्युत स्टेशन, झाकड़ी, जिला शिमला में एसजेवीएन लिमिटेड की परियोजनाओं एवं जलविद्युत स्टेशनों में स्थित कार्यालयों के कामकाज में राजभाषा हिन्दी के प्रयोग को सशक्त बनाने एवं उसके अधिकाधिक प्रयोग के प्रति जागरूकतापूर्ण सकारात्मक वातावरण बनाने हेतु मोनाल भवन, झाकड़ी में एक दिवसीय राजभाषा सम्मेलन का आयोजन दिनांक 27 अक्तूबर, 2017 को किया गया । इसमें ना.झा.ज.वि. स्टेशन, रामपुर जलविद्युत स्टेशन एवं लुहरी जलविद्युत परियोजना 35 कर्मचारियों/अधिकारियों ने भाग लिया ।
प्रारम्भिक सत्र में श्री चन्द्रकान्त पाराशर, मुख्य प्रबंधक ने राजभाषा अधिनियम, नीति एवं सांविधिक अपेक्षाओं का परिचय दिया एवं कार्यालयों में राजभाषा हिन्दी के उत्तरोतर बढ़ते प्रयोग को रेखांकित करते हुए कहा कि प्रबंधन विशेषकर परियोजना प्रमुख महोदय के नेतृत्व में आज स्टेशन स्थित सभी कार्यालयों में मूल हिन्दी पत्राचार  95 प्रतिशत से अधिक स्तर तक पहुंच गया है और गृह मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा दिए गए वार्षिक लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में तत्परता से अग्रसर है । मुख्य प्रबंधक ने आगे बताया कि हिन्दी एक नितान्त वैज्ञानिक भाषा है । यह जैसी बोली जाती है, वैसी ही लिखी भी जाती है । हमें नए शब्दों को भी गढ़ना चाहिए । हमें हिन्दी को लिखते समय किसी प्रकार की झिझक महसूस नहीं करनी चाहिए बल्कि इसका प्रयोग करते समय हमें गर्व का अनुभव होना चाहिए ।
आगामी मुख्य सत्र में प्रोफेसर डा0 पुष्पेन्द्र कुमार आर्य ने प्रतिदिन परिवर्तन की ओर उन्मुख हिन्दी और उसका समृद्ध शब्द भण्डार विषय पर विस्तारात्मक व्याख्यान दिया ।  प्रोफेसर आर्य ने कहा कि आज विश्व में 6809 भाषाएं हैं । इन भाषाओं में 90 प्रतिशत ऐसी हैं जिन्हें बोलने वाले एक लाख से भी कम संख्या में हैं । उन्होंने बताया कि 2500 के आसपास ऐसी मातृभाषाएं हैं जो विश्वभर में अपने अस्तित्व के संकट से जुझ रही है । 150 से 200 के बीच ऐसी भाषएं हैं जिन्हें दस लाख से अधिक लोग प्रयोग में लाते  हैं । 307 भाषाएं ऐसी हैं जिन्हें मात्र 50 व्यक्ति प्रयोग में लाते हैं जबकि 46 भाषाएं ऐसी हैं जिन्हें सिर्फ एक-एक व्यक्ति बोलता और इस्तेमाल करता है ।
प्रोफेसर आर्य ने दुनिया के अनेक देशों का संदर्भ देते हुए स्पष्ट किया कि आज समूचे विश्व में हिन्दी के प्रति अनुराग-विस्तार ले रहा   है । उन्होंने भारत के बारे में कहा कि आज भारत में लगभग 1 लाख 10 हजार समाचार-पत्र प्रकाशित हो रहे हैं जिनमें हिन्दी के अखवारों की संख्या 45 हजार से भी अधिक है । दुनिया भर में 50 करोड़ लोग हिन्दी जानते समझते हैं । गूगल और अन्य वेब ठिकानों में हिन्दी की उपलब्धता से इसे किशोर और युवा वर्ग के बीच लोकप्रिय बनाने में सहयोग दिया है । आर्य ने कहा कि भाषा के विकास से हमारे संस्कार, हमारी संस्कृति और हमारे सरोकार समग्र रूप से पल्लवित होते हैं । उन्होंने कहा कि हमें अपने मौलिक और मूल सामाजिक मूल्यों को समझने और अपनाने की आवश्यकता है इससे भाषीय परिष्कार भी स्वतः ही होते चले जायेंगे । उन्होंने कार्यालयी कामकाज में आमफहम शब्दों का प्रयोग करने की भी बात कही ।
अपराह्नन बाद के सत्र में डाॅ0 चरणजीत सिंह सचदेव, एसो0 प्रोफेसर, गुरू तेग बहादुर खालसा काॅलेज, नई दिल्ली ने सरकारी कामकाज में सर्वमान्य भाषा के रूप में हिन्दी: समस्याएं व समाधान विषय पर अपने व्याख्यान में भाषायी पृष्ठभूमि को आधार बनाकर हिन्दी की अंतराष्ट्रीय व राष्ट्रीय अस्मिता की पहचान को पटल पर रखते हुए हिन्दी भाषा के मूल प्रयोजन पर प्रकाश डाला ।
तदोपरान्त यथाशक्ति राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रति सरकारी दृष्टिकोण को स्पष्ट करते हुए विभिन्न संभावनाओं, व्यवहारिक बाधाओं तथा योजनाओं से प्रबृद्ध श्रोताओं को अवगत   कराया । जिसके फलस्वरूप राजभाषा अनुभाग द्वारा आयोजित इस राजभाषा-सम्मेलन में कार्यरत कर्मचारियों एवं अधिकारियों में राजभाषा हिन्दी के प्रति आत्मीयता, प्रतिबद्धता व कटिबद्धता की ओर प्रेरित करने का प्रयास किया गया । इसके साथ-साथ रोजमर्रा की समस्याओं का समाधान-सहित विचार-विमर्श हुआ जो बहुत सारगर्भित रहा ।
सरकार द्वारा प्राप्त सुविधाओं के उचित प्रयोग पर भी बल दिया और नए-नए साधनों को उपलब्ध कराए जाने पर भी विचार हुआ जिससे सम्मेलन में हिन्दी भाषा के प्रति उचित वातावरण तैयार करने में सहायता प्राप्त हुई । इस सम्मेलन में अंतिम सोपान में प्रतिभागियों द्वारा उठाए गए विभिन्न प्रश्नों के संदर्भ सहित संतोषजनक उत्तर भी अतिथि-वक्ताओं द्वारा दिए गए ।
कार्यक्रम के समापन अवसर पर श्री मनोज कुमार, अपर महाप्रबन्धक ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत करते हुए दोनों विद्धतजनों का इस राजभाषा सम्मेलन में आने पर हार्दिक स्वागत, अभिनंदन व धन्यवाद किया और कहा कि दोनों अतिथि-वक्ताओं द्वारा राजभाषा हिन्दी के विषय में जो ज्ञान सुन्दर ढंग से वितरित किया गया,  इस प्राप्त ज्ञान का हम सभी अपने-अपने कार्यालयी कामकाज के साथ-साथ व्यक्तिगत जीवन में भी सदुपयोग करेंगे ।

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