इरादे तो न थे मिलने के हमारे पर क्यूँ मिल जाते थे वो बहाने से: सत्येन्द्र

सत्येन्द्र कुमार सिंह ( सहायक संपादक-ICN हिंदी ) 

1

इरादे तो थे मिलने के हमारे

पर क्यूँ मिल जाते थे वो बहाने से,

था मज़बूत दिल से भी बहुत मैं,

क्यूँ होश उड़ गए नज़रों के निशाने से,

चाहत भी थी, मुहब्बत भी थी

दिल मुस्कुराने लगा खुद के तराने से,

फिर जाने क्या हुआ कि

वो सरकने लगे कुछ बेगाने से

दिल को आहत किया करते रहे

वो बन कर जानेजाने किन्तु अनजाने से

कष्ट हुआ पर आँसू गिरा सका

कि अफ़सोस हो उन्हें इस दीवाने से

है दुआ कि हँसे और मुस्कुराए वे,

पर रोकें हमें वो छद्म मुस्कुराने से।

2

पीपल

के सरसराते

पत्ते

सुनाते मधुमय संगीत

मीनारों पर

बैठे पंक्षी गाते समूह गीत। 

दूर

शिवालय

से आती ध्वनि

वापस बुलाती

मेरे स्वयं को।

3

जिन दीवारों

 को लांघ सके

बचपन में,

आज 

उससे भी

ऊँचे 

बंदिशें 

बना

करते है 

रक्षा

धनादि की,

और

बाँट

लेते हैं

इंसानी

रिश्तों को…..

 

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